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This Article is From Jun 03, 2021

‘ब्लैक कार्बन’ जमा होने से हिमालय की चोटियों पर तेजी से पिघल रहे ग्‍लेशियर और बर्फ : वर्ल्‍ड बैंक

हालिया साक्ष्यों से यह संकेत मिले हैं कि तापमान और बारिश की प्रवृत्ति को प्रभावित करने के अलावा मानव जनित ब्लैक कार्बन की वजह से इन पर्वत श्रृंखलाओं में हिमनद और बर्फ के पिघलने की गति और बढ़ गई है

‘ब्लैक कार्बन’ जमा होने से हिमालय की चोटियों पर तेजी से पिघल रहे ग्‍लेशियर और बर्फ : वर्ल्‍ड बैंक
ब्लैक कार्बन की वजह से हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में ग्‍लेशियर-बर्फ के पिघलने की गति बढ़ी है (प्रतीकात्‍मक फोटो)
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
वर्ल्‍ड बैंक ने अपने अहम अध्‍ययन में किया खुलासा
इससे तापमान और बारिश की प्रवृत्ति बदल रही
वायुमंडल का तापमान बढ़ाते हैं ब्‍लैक कार्बन
वॉशिंगटन:

इंसानी गतिविधियों के कारण ‘ब्लैक कार्बन' (Black carbon) बढ़ने से संवेदनशील हिमालयी श्रृंखला में ग्‍लेशियर (हिमनदी) और बर्फ तेजी से पिघल रहे हैं और इससे तापमान बदल रहा है तथा बारिश की प्रवृत्ति (पैटर्न) बदल रही है. विश्व बैंक (World Bank)ने गुरुवार को प्रकाशित अपने एक अहम अध्ययन में यह बात कही.हालिया साक्ष्यों से यह संकेत मिले हैं कि तापमान और बारिश की प्रवृत्ति को प्रभावित करने के अलावा मानव जनित ब्लैक कार्बन की वजह से इन पर्वत श्रृंखलाओं में ग्‍लेशियर और बर्फ के पिघलने की गति और बढ़ गई है.ब्लैक कार्बन दरअसल जीवाश्व और अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन की वजह से उत्सर्जित कणिकीय पदार्थ (पर्टिकुलेटेड मैटर) हैं, जो वायुमंडल का ताप बढ़ाते हैं.

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विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के उपाध्यक्ष हार्टविग शाफर के मुताबिक, यह दक्षिण एशिया के अंदर और बाहर मानवीय गतिविधियों से पैदा होता है. यह हवा में मौजूद कणों का बड़ा हिस्सा है जो जलवायु परिवर्तन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है.‘ग्लेशियर ऑफ द हिमालयाज' अध्ययन इस बात के नए साक्ष्य प्रदान करता है कि बदलती वैश्विक जलवायु के संदर्भ में दक्षिण एशियाई देशों की ब्लैक कार्बन को कम करने की नीतियों का हिमालय, कराकोरम और हिंदु कुश पर्वत श्रृंखलाओं में ग्‍लेशियर के बनने और पिघलने पर किस हद तक प्रभाव पड़ता है.शाफर ने कहा कि यह जल संसाधनों की सीमा और नदी घाटियों पर ग्‍लेशियर के इस नुकसान के संभावित प्रभाव का भी आकलन करता है. 

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करीब 140 पन्नों के इस अध्ययन में तर्कपूर्ण नीति बनाने के उद्देश्य से 2040 तक के परिदृश्य को भी पेश किया गया है.
शाफर ने कहा, “हिमालय में एक ग्‍लेशियर टूटने से अचानक आई हालिया विनाशकारी बाढ़ जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव और उन खतरों को लेकर हमें आगाह करती है जिनसे हमें बचना है.”उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे ग्‍लेशियर सिकुड़ते हैं नीचे की ओर कई लोगों का जीवन व आजीविका जलापूर्ति के प्रवाह में बदलाव के कारण प्रभावित होते हैं. हम बर्फ को तेजी से पिघलाने के लिये जिम्मेदार ब्लैक कार्बन को जमा होने से रोकने के लिये सामूहिक प्रयास कर ग्‍लेशियर के पिघलने की गति को धीमा कर सकते हैं. इस संसाधनों को बचाने के लिये क्षेत्रीय सहयोग क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिये महत्वपूर्ण रूप से लाभदायक होगा.”विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र के मुख्य अर्थशास्त्री और अध्ययन के मुख्य लेखक मुथुकुमार मणि ने कहा, “जल संसाधन प्रबंधन नीतियां अवश्य बनाई जानी चाहिए क्योंकि हम जिन प्रवृत्तियों को देख रहे हैं वे एक अलग और अधिक चुनौतीपूर्ण भविष्य की तरफ इशारा कर रही हैं.”
 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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