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This Article is From Oct 10, 2014

भारत के सत्यार्थी, पाकिस्तानी की मलाला को शांति का नोबेल पुरस्कार

भारत के सत्यार्थी, पाकिस्तानी की मलाला को शांति का नोबेल पुरस्कार
ओस्लो:

भारत और पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ताओं क्रमश: कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई ने शुक्रवार को 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से जीता। दोनों को यह पुरस्कार संकटग्रस्त उपमहाद्वीप में बाल अधिकारों को प्रोत्साहित करने के उनके कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा।

इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के तौर पर अपनी नौकरी छोड़ने के बाद बच्चों को बंधुआ मजदूरी और शोषण से बचाने के लिए भारत में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) चलाने वाले 60 वर्षीय सत्यार्थी और लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने पर दो साल पहले तालिबान के घातक हमले में बाल-बाल बची पाकिस्तान की 17 वर्षीय मलाला के नामों की घोषणा नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने इस प्रतिष्ठित वैश्विक पुरस्कार के लिए की।

इस पुरस्कार की घोषणा ऐसे समय की गई है जब दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारी गोलीबारी और मोर्टार गोले दागे जा रहे हैं और यह सीमा पर तनाव कम करने की जरूरत पर बल देता है।

ज्यूरी ने कहा, 'नार्वे की नोबेल समिति ने निर्णय किया है कि 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ उनके संघर्ष तथा सभी बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिए उनके प्रयासों के लिए दिया जाए।' ज्यूरी ने साथ ही घोषणा की कि 11 लाख डॉलर का यह पुरस्कार दिसंबर में प्रदान किया जाएगा।

एनजीओ 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाने वाले सत्यार्थी ने इस घोषणा पर खुशी जताते हुए कहा कि यह पुरस्कार उन्हें भारत में बाल दासता को खत्म करने के लिए और प्रयास करने के लिए प्रेरित करेगा।

अस्सी हजार से अधिक बच्चों को बंधुआ मजदूरी और शोषण से बचाने वाले संगठन के प्रमुख सत्यार्थी ने सहविजेता मलाला को भी बधाई दी।

उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें जानता हूं। मैं उन्हें फोन करूंगा और बधाई दूंगा। हमें और आगे जाना है और हम दोनों देशों (भारत, पाकिस्तान) के बीच शांति के लिए काम करेंगे।' राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सहित कई नेताओं ने दोनों विजेताओं को बधाई दी।

राष्ट्रपति मुखर्जी ने एक बयान में कहा, 'इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्याओं के समाधान में भारत के नागरिक समाज के योगदान को मान्यता देने और देश से बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने में सरकार के साथ सहयोग की उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिए।'

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'पूरे राष्ट्र को उनकी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर गर्व है। कैलाश सत्यार्थी ने अपना पूरा जीवन सारी मानवजाति के अत्यधिक प्रासंगिक उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। मैं उनकी प्रतिबद्धतता को सलाम करता हूं।'

पाकिस्तान की मलाला को बधाई देते हुए मोदी ने कहा कि उनकी (मलाला) जीवन यात्रा अपार साहस और धैर्य से भरी है। सत्यार्थी और मलाला को मिले सम्मान पर खुशी जताते हुए सोनिया ने कहा कि यह पुरस्कार 'पूरे दक्षिण एशिया के लिए गर्व' की बात है। नोबेल समिति ने कहा कि सत्यार्थी ने महात्मा गांधी की परंपरा को बरकरार रखा और 'वित्तीय लाभ के लिए होने वाले बच्चों के गंभीर शोषण के खिलाफ विभिन्न प्रकार के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है।'

समिति ने कहा कि वह 'एक हिंदू और एक मुस्लिम तथा एक भारतीय और एक पाकिस्तानी के शिक्षा और चरमपंथ के खिलाफ साझा संघर्ष में शामिल होने को एक महत्वपूर्ण बिंदू मानती है।'
मलाला को शांति पुरस्कार श्रेणी में गत वर्ष भी नामांकित किया गया था। मलाला ने तालिबान के हमले के बाद भी तब जबर्दस्त साहस दिखाया था जब उन्होंने विशेष तौर पर पाकिस्तान जैसे देश में बाल अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना अभियान जारी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।

मलाला सबसे कम आयु की नोबेल पुरस्कार विजेता बन गई हैं।

सत्यार्थी मदर टेरेसा के बाद शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। सत्यार्थी और मलाला उन अंतरराष्ट्रीय हस्तियों की विशिष्ट सूची में शामिल हो गए हैं जिन्होंने विश्व शांति और अन्य क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय कार्य के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार साझा किया।

गोली लगने के बाद घायल मलाला को बेहतर इलाज के लिए बर्मिंघम स्थित क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया था। वहां उनका इलाज किया गया था। वह लड़कियों की शिक्षा का अपना अभियान जारी रखे हुए हैं।

मलाला ने गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र में संबोधन दिया, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की तथा 'टाइम' पत्रिका ने उन्हें 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में एक नामित किया। गत वर्ष मलाला ने अपना संस्मरण 'आई एम मलाला' लिखा। समिति ने एक बयान में कहा, 'युवावस्था में ही मलाला यूसुफजई ने लड़कियों की शिक्षा के अधिकार लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया तथा मिसाल पेश की कि बच्चे और युवा लोग अपनी स्थिति में सुधार करने के लिए योगदान दे सकते हैं।'

समिति ने कहा, 'उन्होंने यह सबसे खतरनाक स्थितियों में किया। वह अपने वीरतापूर्ण संघर्ष से लड़कियों की शिक्षा के अधिकार की प्रमुख पैरोकार बन गई हैं।' इस वर्ष रिकॉर्ड 278 नामांकित होने वाले लोगों में पोप फ्रांसिस और कांगो के स्त्रीरोग विशेषज्ञ डेनिस मुकवेगी भी शामिल थे। यद्यपि इस पूरी सूची को गुप्त रखा गया था।

वर्ष 1993 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद शासन के आखिरी राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू डी क्लार्क और नेल्सन मंडेला को रंगभेद समाप्ति के लिए किए उनके काम के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। उसके बाद के वर्ष इस्राइली नेता शिमोन पेरेज और यासिर अराफात को पश्चिम एशिया में तनाव कम करने के लिए किए गए उनके प्रयासों के लिए इस पुरस्कार से नवाजा गया था।

वर्ष 1997 में जॉन ह्यूम (उत्तरी आयरलैंड) और डेविड ट्रिम्बले (ब्रिटेन) ने उत्तरी आयरलैंड में संघर्ष का शांतिपूर्ण हल खोजने के उनके प्रयासों के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार जीता।

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