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This Article is From Aug 12, 2015

सुरक्षा परिषद सुधार वार्ताओं पर अमेरिका, रूस और चीन के विरोध से भारत को झटका

सुरक्षा परिषद सुधार वार्ताओं पर अमेरिका, रूस और चीन के विरोध से भारत को झटका
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र की विस्तारित सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी को एक गहरा झटका लगा है क्योंकि अमेरिका, रूस और चीन ने सुधार से जुड़ी वार्ताओं का विरोध किया है और सुधार की दीर्घ प्रक्रिया का आधार बनने वाले मजमून में योगदान देने से इनकार कर दिया है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा ने सुरक्षा परिषद में सुधार से जुड़ी वार्ताओं का आधार बनने वाले दस्तावेज को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच प्रसारित करके उपलब्धि हासिल की थी। कुटेसा ने सुरक्षा परिषद सुधार के मुद्दे पर अंतरसरकारी वार्ताओं की अध्यक्षता उनकी ओर से करने के लिए जैमेका के स्थायी प्रतिनिधि कोर्टने रैट्रे को नियुक्त किया था।

कुटेसा ने 31 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों को लिखे पत्र में कहा कि वह उन समूहों और सदस्य देशों के रुख को दर्शाने वाले पत्रों को भी प्रसारित कर रहे हैं, जिन्होंने ये संकेत दिए थे कि वे अपने प्रस्तावों को वार्ता से जुड़े दस्तावेज में शामिल नहीं करना चाहते। इन देशों में अमेरिका, रूस और चीन शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थाई प्रतिनिधि समांथा पावर ने कुटेसा को लिखे पत्र में कहा कि अमेरिका ‘‘सैद्धांतिक’’ तौर पर स्थायी और अस्थायी दोनों सदस्यों की संख्या में ‘‘थोड़ा’’ विस्तार के लिए तैयार है लेकिन शर्त यह है कि ‘‘स्थायी सदस्य संख्या को विस्तार देने पर विचार करते हुए अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के रखरखाव में और संयुक्त राष्ट्र के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में देशों की योग्यता और तत्परता पर गौर किया जाना चाहिए।’’

पावर ने कहा कि ‘‘हमारा मानना है कि नए स्थायी सदस्यों के नामों पर गौर किया जाना देश विशेष के आधार पर होना चाहिए।’’ उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अब भी ‘‘वीटो में किसी तरह के बदलाव या उसके विस्तार के खिलाफ है।’’

सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि चूंकि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए और भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने के संदर्भ में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है, ऐसे में संशोधन प्रक्रिया के पहलुओं पर अमेरिका का विरोध एक ‘छलावा’ माना जा सकता है।

स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन कर चुके रूस ने कुटेसा को लिखे पत्र में कहा, ‘‘सुरक्षा परिषद के मौजूदा स्थायी सदस्यों के विशेषाधिकारों को परिषद के सुधार के किसी भी पहलू के तहत जस का तस रखा जाना चाहिए। इसमें वीटो अधिकार भी शामिल है।’’

रूस ने कहा, ‘‘सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतरसरकारी वार्ताएं एक शांतिपूर्ण, पारदर्शी और समावेशी माहौल में होनी चाहिए, जो कि कृत्रिम समय सीमाओं से मुक्त हो।’’ भारत यह कह चुका है कि संयुक्तराष्ट्र की इस संस्था विस्तार की प्रक्रिया को ‘‘अनंतकाल तक चलने वाली प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा जा सकता।’’ ठोस नतीजा हासिल करने के लिए परिणाम आधारित समयसीमा जरूरी है।

संयुक्तराष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक कुमार मुखर्जी ने कहा था, ‘‘जो लोग कृत्रिम समय सीमाएं न लगाने के लिए कहते हैं, उन्हें इस प्रक्रिया में कृत्रिम देरी न करने के लिए कहा जा सकता है।’’

सूत्रों ने कहा कि भारत का मानना है कि इस साल संयुक्त राष्ट्र की 70वीं वर्षगांठ इस सुधार प्रक्रिया को शुरू करने के लिहाज से एक उपयुक्त अवसर है। इस प्रक्रिया को अगले एक साल में पूरा कर लिया जाना चाहिए। चीन ने सुधार प्रक्रिया के लिए सभी सदस्यों में सर्वसम्मति की बात न होने का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सुरक्षा परिषद में सुधार सदस्य देशों की एकता की कीमत पर नहीं किए जाने चाहिए। सभी सदस्यों को अंतरसरकारी वार्ता प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। उन्हें एक लचीला रवैया अपनाते हुए आपस में विश्वास बहाल करना चाहिए। चीन ऐसे किसी हल का समर्थन नहीं करेगा, जिसपर सदस्य देशों में गंभीर विभाजन हो या विभाजन हो सकता हो।’’

भारत को इस संस्था के शेष दो स्थायी सदस्यों फ्रांस और ब्रिटेन का समर्थन प्राप्त है। कजाकस्तान और रोमानिया के साथ-साथ ये दोनों देश वार्ता दस्तावेज में विशेष तौर पर ब्राजील, जर्मनी, भारत, जापान और एक अफ्रीकी प्रतिनिधत्व को संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के बाद स्थायी सदस्यों के रूप में शामिल करने की बात कह चुके हैं।

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