वाशिंगटन:
पाकिस्तान को एफ-16 बेचने की अमेरिका की तैयारियों के बीच एक पूर्व राजनयिक ने कांग्रेस को आगाह किया है कि इस तरह के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल अंतत: भारत के खिलाफ किया जाएगा, न कि आतंकियों के खिलाफ।
इस तरह के सैन्य उपकरणों की बिक्री और कथित असैन्य परमाणु संधि को पाकिस्तानी सेना के प्रति एक तुष्टीकरण की नीति के रूप में परिभाषित करते हुए पाकिस्तान के शीर्ष राजनयिक ने अमेरिका से अपील की है कि वह पाकिस्तान के नेताओं को बताए कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता करने की उनकी महत्वाकांक्षा ठीक वैसी ही है, जैसे बेल्जियम फ्रांस या जर्मनी के साथ प्रतिद्वंद्विता करने की कोशिश कर रहा है।
यह दक्षिण एशिया में विवाद को हवा देगा
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हुसैन हक्कानी ने कहा, कुछ माह पहले लगभग एक अरब डॉलर मूल्य के अमेरिका निर्मित हेलीकॉप्टरों, मिसाइलों और अन्य उपकरण पाकिस्तान को बेचे जाने के फैसले की ही तरह, ओबामा प्रशासन द्वारा पाकिस्तान के साथ परमाणु संधि पर विचार किया जाना दक्षिण एशिया में विवाद को हवा देगा और इस दौरान इस्लामी चरमपंथियों से लड़ने में देश की मदद करने या उसके परमाणु हथियारों को सीमित करने के लक्ष्य की भी पूर्ति नहीं हो सकेगी।
पाकिस्तान दुनिया को देखने को नजरिया नहीं बदलता
‘पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु सहयोग: संभावनाएं एवं परिणाम’ पर आयोजित कांग्रेस की सुनवाई में विदेशी मामलों की समिति की आतंकवाद, परमाणु अप्रसार और व्यापार उपसमिति के समक्ष हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान की जिहादी चुनौती से निपटने में विफलता हथियारों की कमी के कारण नहीं है, बल्कि यह उसकी इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है। उन्होंने कहा, यदि पाकिस्तान दुनिया को देखने का अपना नजरिया नहीं बदलता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर अपने से कहीं अधिक बड़े पड़ोसी के साथ जबरन प्रतिद्वंद्विता में उलझना नहीं छोड़ता, तो अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल अंतत: भारत और कथित घरेलू शत्रुओं से लड़ने या उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता रहेगा, जिहादियों के खिलाफ नहीं। अमेरिका के शीर्ष थिंक टैंक हड्सन इंस्टीट्यूट में दक्षिणी एवं मध्य एशिया मामलों के मौजूदा निदेशक हक्कानी ने कहा कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता को पाकिस्तान की विदेशी और घरेलू नीतियों में प्रमुखता से स्थान दिया जाता है।
यह तर्कसंगत लक्ष्य नहीं
उन्होंने कहा, वर्षों तक पाकिस्तान की मदद कर अमेरिका ने पाकिस्तान के भारत की क्षेत्रीय सेना के बराबर हो जाने के मुगालते को ही पोषित किया है। एक बेहद बड़े पड़ोसी से सुरक्षा की चाहत रखना एक तर्कसंगत लक्ष्य है, लेकिन उससे सतत समानता रखने की इच्छा तर्कसंगत लक्ष्य नहीं है। हक्कानी ने लिखा, पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु संधि पर चर्चा करने या उसे और अधिक सैन्य उपकरण बेचने के बजाय अमेरिकी अधिकारियों को पाकिस्तान को यह कहना चाहिए कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता की उसकी महत्वाकांक्षाएं ठीक वैसी ही हैं जैसे बेल्जियम फ्रांस या जर्मनी से प्रतिद्वंद्विता की कोशिश कर रहा है।
इस तरह के सैन्य उपकरणों की बिक्री और कथित असैन्य परमाणु संधि को पाकिस्तानी सेना के प्रति एक तुष्टीकरण की नीति के रूप में परिभाषित करते हुए पाकिस्तान के शीर्ष राजनयिक ने अमेरिका से अपील की है कि वह पाकिस्तान के नेताओं को बताए कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता करने की उनकी महत्वाकांक्षा ठीक वैसी ही है, जैसे बेल्जियम फ्रांस या जर्मनी के साथ प्रतिद्वंद्विता करने की कोशिश कर रहा है।
यह दक्षिण एशिया में विवाद को हवा देगा
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हुसैन हक्कानी ने कहा, कुछ माह पहले लगभग एक अरब डॉलर मूल्य के अमेरिका निर्मित हेलीकॉप्टरों, मिसाइलों और अन्य उपकरण पाकिस्तान को बेचे जाने के फैसले की ही तरह, ओबामा प्रशासन द्वारा पाकिस्तान के साथ परमाणु संधि पर विचार किया जाना दक्षिण एशिया में विवाद को हवा देगा और इस दौरान इस्लामी चरमपंथियों से लड़ने में देश की मदद करने या उसके परमाणु हथियारों को सीमित करने के लक्ष्य की भी पूर्ति नहीं हो सकेगी।
पाकिस्तान दुनिया को देखने को नजरिया नहीं बदलता
‘पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु सहयोग: संभावनाएं एवं परिणाम’ पर आयोजित कांग्रेस की सुनवाई में विदेशी मामलों की समिति की आतंकवाद, परमाणु अप्रसार और व्यापार उपसमिति के समक्ष हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तान की जिहादी चुनौती से निपटने में विफलता हथियारों की कमी के कारण नहीं है, बल्कि यह उसकी इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती है। उन्होंने कहा, यदि पाकिस्तान दुनिया को देखने का अपना नजरिया नहीं बदलता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर अपने से कहीं अधिक बड़े पड़ोसी के साथ जबरन प्रतिद्वंद्विता में उलझना नहीं छोड़ता, तो अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल अंतत: भारत और कथित घरेलू शत्रुओं से लड़ने या उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता रहेगा, जिहादियों के खिलाफ नहीं। अमेरिका के शीर्ष थिंक टैंक हड्सन इंस्टीट्यूट में दक्षिणी एवं मध्य एशिया मामलों के मौजूदा निदेशक हक्कानी ने कहा कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता को पाकिस्तान की विदेशी और घरेलू नीतियों में प्रमुखता से स्थान दिया जाता है।
यह तर्कसंगत लक्ष्य नहीं
उन्होंने कहा, वर्षों तक पाकिस्तान की मदद कर अमेरिका ने पाकिस्तान के भारत की क्षेत्रीय सेना के बराबर हो जाने के मुगालते को ही पोषित किया है। एक बेहद बड़े पड़ोसी से सुरक्षा की चाहत रखना एक तर्कसंगत लक्ष्य है, लेकिन उससे सतत समानता रखने की इच्छा तर्कसंगत लक्ष्य नहीं है। हक्कानी ने लिखा, पाकिस्तान के साथ असैन्य परमाणु संधि पर चर्चा करने या उसे और अधिक सैन्य उपकरण बेचने के बजाय अमेरिकी अधिकारियों को पाकिस्तान को यह कहना चाहिए कि भारत के साथ प्रतिद्वंद्विता की उसकी महत्वाकांक्षाएं ठीक वैसी ही हैं जैसे बेल्जियम फ्रांस या जर्मनी से प्रतिद्वंद्विता की कोशिश कर रहा है।