लाहौर:
भारत में जन्मे उर्दू के लघु कहानी लेखक, शायर और पत्रकार इंतिजार हुसैन का बुधवार को एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 93 साल के थे। पिछले सप्ताह उनकी स्थिति खराब होने के बाद उन्हें डिफेंस हॉस्पिटल लाहौर में स्थानांतरित किया गया था। दोपहर में उन्होंने अंतिम सांसें ली।
मशहूर लेखक इंतिजार हुसैन कहानी प्रेमियों के बीच बेहद सुपरिचित नाम है। उनका नाम पाकिस्तान के साथ ही भारत में भी बेहद अदब से लिया जाता रहा है। दोनों देशों के समकालीन उर्दू लेखकों के साथ उपन्यास और कहानीकार के रूप में भी वह पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय थे।
इंतिजार साहब कहा कहते थे कि उर्दू कथा के निर्माण में तीन तत्व या धाराएं हैं, जिनमें प्राचीन भारतीय कथाएं, अरब और फ़ारस की कहानी कहने और आधुनिक पश्चिमी दुनिया की बौद्धिक परंपरा शामिल है।
उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आधारशिला' का आधार यही तीन रहे। अपनी एक मकबूल कहानी मोरनामा (मोरकथा) के बारे में उन्होंने बताया कि 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था। ख़बर पढ़ी कि उनके प्रभाव से उस क्षेत्र के मोर मरने लगे। मोरों को मैं बचपन से जानता हूँ। इसलिए तकलीफ़ हुई और फिर मैं मोरों के साथ महाभारत के युग में चला गया। मुझे लगा जैसे यह दो देशों की नहीं, कौरवों-पाण्डवों की लड़ाई है।
भारत के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के दिबाई में हुआ उनका जन्म
भारत के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के दिबाई में 7 दिसंबर 1923 को इंतिजार का जन्म हुआ था। 1947 में वह लाहौर चले गए थे। 1946 में उन्होंने मेरठ कॉलेज से एमए (उर्दू) किया। 1988 में ‘डेली मशरीक’ से सेवानिवृत्त होने से पहले उन्होंने विभिन्न अखबारों में काम किया।
उन्होंने 2013 में फिक्शन के मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार के लिए अंतिम दौड़ में 10 लेखकों की अंतिम सूची में जगह बनायी थी। अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाले वह पहले पाकिस्तानी और पहले उर्दू लेखक थे। उन्होंने ‘गली कूचे’, ‘कांकड़ी’, ‘दीन और दास्तान’, ‘शहर ए अफसोस’ ‘खाली पिंजरा’, ‘मोरेनामा’ ‘शहरजाद के नाम’ जैसी चर्चित किताबें लिखीं।
मशहूर लेखक इंतिजार हुसैन कहानी प्रेमियों के बीच बेहद सुपरिचित नाम है। उनका नाम पाकिस्तान के साथ ही भारत में भी बेहद अदब से लिया जाता रहा है। दोनों देशों के समकालीन उर्दू लेखकों के साथ उपन्यास और कहानीकार के रूप में भी वह पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय थे।
इंतिजार साहब कहा कहते थे कि उर्दू कथा के निर्माण में तीन तत्व या धाराएं हैं, जिनमें प्राचीन भारतीय कथाएं, अरब और फ़ारस की कहानी कहने और आधुनिक पश्चिमी दुनिया की बौद्धिक परंपरा शामिल है।
उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आधारशिला' का आधार यही तीन रहे। अपनी एक मकबूल कहानी मोरनामा (मोरकथा) के बारे में उन्होंने बताया कि 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था। ख़बर पढ़ी कि उनके प्रभाव से उस क्षेत्र के मोर मरने लगे। मोरों को मैं बचपन से जानता हूँ। इसलिए तकलीफ़ हुई और फिर मैं मोरों के साथ महाभारत के युग में चला गया। मुझे लगा जैसे यह दो देशों की नहीं, कौरवों-पाण्डवों की लड़ाई है।
भारत के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के दिबाई में हुआ उनका जन्म
भारत के उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के दिबाई में 7 दिसंबर 1923 को इंतिजार का जन्म हुआ था। 1947 में वह लाहौर चले गए थे। 1946 में उन्होंने मेरठ कॉलेज से एमए (उर्दू) किया। 1988 में ‘डेली मशरीक’ से सेवानिवृत्त होने से पहले उन्होंने विभिन्न अखबारों में काम किया।
उन्होंने 2013 में फिक्शन के मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार के लिए अंतिम दौड़ में 10 लेखकों की अंतिम सूची में जगह बनायी थी। अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामांकित होने वाले वह पहले पाकिस्तानी और पहले उर्दू लेखक थे। उन्होंने ‘गली कूचे’, ‘कांकड़ी’, ‘दीन और दास्तान’, ‘शहर ए अफसोस’ ‘खाली पिंजरा’, ‘मोरेनामा’ ‘शहरजाद के नाम’ जैसी चर्चित किताबें लिखीं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
पाकिस्तान, भारत, शायर का निधन, Shayar Intizar Hussain, Poet Intizaar Hussain, Pakistan, India, श्ाायर इंतिजार हुसैन