अमेरिका (US) और भारत (India) के बीच मंगलवार को हुई बातचीत में भारत- अमेरिका ने विशेष व्यवसायिक बाधाओं ( Specific Trade Barriers) को दूर करने, आपसी व्यापार बढ़ाने और बाजार की बाधाओं को दूर करने और व्यापार करने में आसानी बढ़ाने (Ease of doing business) की बात की.. क्या दोनों देशों के बीच व्यापार की मुश्किलें घटाना आसान है? NDTV ने अमेरिका (US) के वॉशिंटगटन डीसी (Washington DC) में मौजूद भारत और एशिया एक्सपर्ट (India-US relations & Asia Expert) आत्मन त्रिवेदी (Atman Trivedi) से बात की जो वैश्विक रणनीतिक और व्यवसायिक सलाहकार कंपनी अल्ब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप (Albright Stonebridge Group) के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और को-लीड हैं. आत्मन को विदेश मामलों में करीब 20 साल का अनुभव है.
सवाल 1. भारत और अमेरिका के बीच विशेष व्यवसायिक बाधाएं क्यां हैं? क्या इन बाधाओं को आसानी से दूर किया जा सकता है?
जवाब. भारत और अमेरिका के लिए अपने व्यापारिक मुद्दों को सुलझाना आसान नहीं है लेकिन यह जरूरी है कि दोनों देश मुद्दे पर साथ में काम करें. पिछले साल मंत्री स्तरीय पहली व्यसायिक मुद्दों पर बात हुई थी उसमें कुछ सकारात्मक संकेत मिले. मुझे लगता है कि उसका कुछ असर हाल ही में हुई 2+2 बातचीत पर भी रहा. हमारा लक्ष्य साझा उन्नति है, इनोवेशन है. हमारा समाज यह काम करने में अग्रणी है. व्यवसायिक रिश्ते प्राकृतिक तौर पर बढ़ रहे हैं. राष्ट्रपति बाइडेन ने 500 बिलियन का दोनों तरफ से व्यवसाय रखने का लक्ष्य रखा है. हम यह लक्ष्य पा सकते हैं.
दोनों देशों के समाज में कंपनियां और अधिक सहयोग करना चाहती हैं लेकिन यह ज़रूरी है कि दोनों तरफ की सरकारें आधिकारिक बाधाओं (Official Barriers) को दूर करें जो टैरिफ बैरियर्स (Tariff Barriers) और नॉन टैरिफ बैरियर्स (Non Tariff Barriers) के तौर पर हैं. इसके लिए दोनों देशों के एक-दूसरे के देशों में मौके तलाशने की ज़रूरत है. खासकर अगर भारत क्षेत्रीय और वैश्विक वैल्यू चेन (Global Value Chain) का हिस्सा बनना चाहता है.
आज कई अमेरिकी कंपनियां हैं जो चीन (China) से हटना चाहती हैं, अब कई कंपनियां रूस (Russia) से भी हटना चाहती हैं. कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) का भी इसमें योगदान है. इन सभी फैक्टर्स की वजह से अमेरिकी कंपनियां भारत में संभावनाएं तलाश रही हैं. भारत में सॉफ्टवेयर की मदद है, लोकतंत्र है, कुशल कामगार हैं. भारत और अमेरिका के लिए जरूरी है कि वो इस मौके को हाथ से ना जाने दें जिससे भारत को ग्लोबल वैल्यू चेन का अहम हिस्सा बनने का मौका मिले.
सवाल 2. हाल ही में ऐसी खबरें थीं कि कुछ अमेरिकी कंपनियां भारत आने में हिचकिचा रही हैं और तकनीक के हस्तांतरण को लेकर कुछ कंपनियां सहज नहीं हैं और भारत में निवेश में झिझक रहीं हैं. क्या आपको लगता है कि जल्द ही इस मुद्दे का कुछ उपाय निकल सकता है?
उत्तर. अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश की इच्छुक हैं. कई मेक इन इंडिया में साझेदार हैं. कई क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियां भारत सरकार की सहयोगी भी हैं. लेकिन अलब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप में हम यह देखते हैं कि कंपनियां यह भी सुनिश्चित करना चाहती हैं कि जब वो तकनीक साझा करें तो उनकी बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) सुरक्षित रहे. उनकी कंडीशन बनी रहें ताकि वो अपने निवेश का अच्छा रिटर्न ले सकें. और यहां पर व्यापार करने में आसानी (Ease of doing business) काम आता है. इन्फ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) , अनुमतियां और संभावित बाधाओं के भी सवाल हैं जो व्यापार करना और महंगा बना देते हैं. कंपनियां इन सभी चीजों को देखती हैं.
हम एक ऐसी दुनिया में हैं जहां प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है. जो कंपनियां आपके यहां नौकरियां देने(Jobs) , पूंजी (Investment) और तकनीक साझा करने (Technology Transfer) का विचार करेंगी वो और भी विकल्प देखेंगी. भारत और अमेरिका, दोनों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा. इस लिस्ट में इसमें वियतनाम, मलेशिया, मैक्सिको इनमें से एक हैं. तो यह सवाल है कि हम अपनी प्रतिस्पर्धा की क्षमता को कैसे बढ़ाते हैं और हमारे नेतृत्व के बीच यह बातचीत का मुद्दा है.
सवाल 3. आप भारत-अमेरिका की साझेदारी को अगले कुछ सालों में कैसे बढ़ता हुआ देखते हैं?
जवाब: मैं देखता हूं कि अपने आप ही अमेरिका और भारत के रिश्तों में काफी बढ़त होगी. जब तक हमारे लोग एक साथ हैं और हम उन्हें अपने संबंधों के केंद्र में रखेंगे, तब तक सब अच्छा होगा. भारत और अमेरिका के बीच 4 मिलियन से अधिक का बड़ा भारतीय-अमेरिकी समुदाय है. हम एक साथ मिल कर बहुत कुछ कर सकते हैं. जिसमें क्लाइमेट चेंज, शिक्षा जैसे अहम मुद्दे हैं.
क्वाड (QUAD) से ज़रिए हम भारत (India) की वैक्सीन (Vaccine) दुनिया तक पहुंचा सकते हैं. हम सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) के क्षेत्र में बहुत कुछ कर सकते हैं. इस संबंध की आसमान की तरह कोई सीमा नहीं है. हमारे संबंधों की संपन्नता, विविधता और इनकी समग्रता को भारत-अमेरिका के ज्वाइंट स्टेटमेंट में शामिल करने की कोशिश की गई. सभी इस समय सबसे ज्वलंत मुद्दे यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं लेकिन हमें युद्ध का असर हमारे आपसी संबंधों और लोकतांत्रिक समुदायों (Democratic Communities) पर नहीं पड़ने देना चाहिए.
यह भी देखें:- Russia Ukraine War के अगले चरण में भारत-अमेरिका संबंधों की क्या होगी दिशा?
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