पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सरकार को अपने उस आदेश को लागू करने का अंतिम अवसर दिया जिसके तहत राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी समेत हजारों लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को दोबारा खोलना था। इन मामलों को आम माफी के तहत बंद कर दिया गया था लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे अमान्य घोषित कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति आसिफ सईद खान खोसा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अधिकारियों को राष्ट्रीय मेलमिलाप अध्यादेश को निरस्त करने वाले उसके आदेश को लागू करने का अंतिम अवसर दिया जा रहा है। पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने साल 2007 में इस अध्यादेश के जरिए भ्रष्टाचार के आरोपियों को आम माफी दी थी।
पीठ ने कहा कि अगर अधिकारी आदेश पर कार्रवाई करने में विफल रहे तो अदालत लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को बाध्य होगी और वे किसी के भी खिलाफ आदेश देगी भले ही वह कितना भी बड़ा प्राधिकारी हो।
उच्चतम न्यायालय के आज के आदेश से जरदारी और सरकार पर और दबाव बढ़ने की उम्मीद है। पाकिस्तान सरकार पहले ही मेमोकांड की उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच का आदेश दिए जाने से दबाव में है। इस मेमो में गत मई में अमेरिकी कार्रवाई में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद से देश में सेना द्वारा तख्तापलट किए जाने से रोकने के लिए अमेरिका से मदद मांगी गई थी। चूंकि शीर्ष अदालत ने दिसंबर 2009 में एनआरओ को निरस्त कर दिया था इसलिए वह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी नीत सरकार पर दबाव डाल रही है कि भ्रष्टाचार के मामलों को दोबारा खोले। इसमें राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ स्विट्जरलैंड में दर्ज किया गया धन शोधन का मामला भी शामिल है।
सरकार ने यह कहते हुए कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है कि जरदारी को अपने पद के कारण अभियोजन से छूट हासिल है।
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