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This Article is From Apr 09, 2020

चीन के वुहान में रह रहे भारतीयों की इन टिप्स से कोरोनावायरस को दी जा सकती है मात...

चीन के वुहान शहर से निकलकर पूरी दुनिया को अपनी जद में लेने वाले कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के संबंध में एपिसेंटर (केन्द्र) में मौजूद भारतीयों का कहना है कि लॉकडाउन का सख्ती से पालन और एक-दूसरे से दूरी ही इस जानलेवा बीमारी से बचाव के उपाय हैं.

चीन के वुहान में रह रहे भारतीयों की इन टिप्स से कोरोनावायरस को दी जा सकती है मात...
चीन के वुहान शहर से निकलकर कोरोनावायरस ने पूरी दुनिया को अपनी जद में ले लिया.
वुहान:

चीन के वुहान शहर से निकलकर पूरी दुनिया को अपनी जद में लेने वाले कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के संबंध में एपिसेंटर (केन्द्र) में मौजूद भारतीयों का कहना है कि लॉकडाउन का सख्ती से पालन और एक-दूसरे से दूरी ही इस जानलेवा बीमारी से बचाव के उपाय हैं. वुहान में मौजूद भारतीय नागरिकों ने कहा कि वे बहुत खुश हैं कि बुधवार को लॉकडाउन खुलने के साथ ही उनकी 76 दिन लंबी कैद का अंत हुआ है. चीनी अधिकारियों ने बुधवार को वुहान शहर से लॉकडाउन समाप्त किया था, इस शहर में करीब 1.1 करोड़ लोग रहते हैं.

वुहान में काम कर रहे हाइड्रोबायोलॉजिस्ट अरुणजित टी. सत्रजित ने बताया, ‘‘73 दिन तक मैं अपने कमरे में रहा. आज मुझे सही-सही बोलने में दिक्कत हो रही है, इतने सप्ताह से मैंने बात ही नहीं की है क्योंकि सब अपने-अपने घरों में बंद थे.'' भारत ने एअर इंडिया के दो विशेष विमानों की मदद से करीब 700 भारतीयों को बाहर निकाला लेकिन केरल के रहने वाले अरुणजित ने तय किया कि वह वुहान में ही रुकेंगे और इस परेशानी का सामना करेंगे क्योंकि परेशानी वाली जगह से ‘‘भागना भारतीयों के लिए आदर्श'' नहीं है.

वह उन कुछ भारतीयों में से हैं जो अपनी इच्छा से वुहान में रुके. अरुणजित को यह भी डर था कि उनके केरल लौटने से उनके माता-पिता, सास-ससुर, पत्नी और बच्चा सभी खतरे में पड़ जाएंगे. माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र से हाइड्रोबायोलॉजी में आये अरुणजित वुहान में एक अनुसंधान परियोजना पर काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि भारत ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाकर उचित कदम उठाया है, लेकिन असली चुनौती बरसात के दिनों में शुरू होगी जब लोगों की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आएगी.

उनका कहना है कि उस दौरान यह वायरस ज्यादा खतरनाक रूप लेगा. उन्होंने कहा कि अगर वुहान से कोई सीख लेनी है तो वह है सख्ती से लॉकडाउन का पालन और लोगों का अपने-अपने घरों में बंद रहना. संकट के दौर में अरुणजित के साथ ही वुहान में रुके एक अन्य वैज्ञानिक का भी यही सोचना है.

पहचान जाहिर नहीं करने के इच्छुक इस वैज्ञानिक ने फोन कहा, ‘‘करीब 72 दिन तक मैं अपने कमरे में बंद रहा. मेरे पड़ोसी के तीन छोटे बच्चे हैं. मैंने उन्हें अपने फ्लैट से एक बार भी बाहर निकले हुए नहीं देखा.'' उनका कहना है, ‘‘आज मैं खुश हूं, मुझे अच्छा लग रहा है कि मैं जीवित हूं, लेकिन अभी भी मैं बाहर जाने को इच्छुक नहीं हूं क्योंकि मैं वायरस से संक्रमित (बिना लक्षण वाले) व्यक्ति के संपर्क में आ सकता हूं.''

भारतीयों को लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने की सलाह देते हुए वैज्ञानिक ने कहा कि अगर वुहान में कुछ दिन पहले ही लॉकडाउन हो गया होता तो यह वायरस जंगल की आग की तरह नहीं फैलता. उन्होंने वुहान में रहने का फैसला लिया और घर लौटने की भारतीय दूतावास की पेशकश ठुकरा दी क्योंकि उन्हें अपने परिवार की चिंता थी.

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा जैसा आतिथ्य हुआ है, मुझे विश्वास था कि मेरा नियोक्ता और स्थानीय मित्र मेरा ख्याल रखेंगे और ऐसा ही हुआ.'' अरुणजित ने बताया कि उन्हें और उनके मित्रों को वुहान में किसी वायरस के फैलने की खबर दिसंबर के दूसरे सप्ताह से ही मिलने लगी थी, लेकिन हालात तब ज्यादा डरावने लगने लगे जब लोगों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया.

वुहान में लॉकडाउन समाप्त होने के बावजूद अभी ज्यादा संख्या में लोग बाहर नहीं निकल रहे हैं क्योंकि उन्हें ऐसे लोगों के संपर्क में आने का डर सता रहा है जो संक्रमित तो हैं लेकिन उनमें लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं. वैज्ञानिक का कहना है, ‘‘इस वायरस को समझना आसान नहीं है. इसे समझना तब तक आसान नहीं होगा जब तक इसके मामले मिलने बिल्कुल बंद नहीं हो जाते हैं, जो कि बहुत मुश्किल है. चीन को कार्रवाई करने में देरी हुई क्योंकि उन्हें इसके बारे में पहले नहीं पता चला, लेकिन पता चलते ही उन्होंने तेजी से काम किया.''

हुनान सीफूड मार्केट में बेचे जाने वाले जंगली जानवरों के मांस को ही इस महामारी का स्रोत माना जा रहा है. दुनिया में अभी तक 88,500 से ज्यादा लोगों की वायरस संक्रमण से मौत हुई है जबकि 15 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हुए हैं.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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