पोप फ्रांसिस (फाइल फोटो)
वेटिकन सिटी:
पोप फ्रांसिस ने कहा है कि रोम की कैथोलिक चर्च को समलैंगिकों के साथ किए बर्ताव के लिए माफी मांगनी चाहिए। 'बीबीसी' की सोमवार की रिपोर्ट के अनुसार, पोप फ्रांसिस ने रविवार को आर्मीनिया से लौटते वक्त अपने विमान में संवाददाताओं से कहा कि चर्च को समलैंगिक समुदाय को आंकने का कोई हक नहीं है और उसे उनके प्रति सम्मान का भाव दिखाना चाहिए।
उन्होंने कहा, "मैं फिर वही बात कहूंगा, जो चर्च के सिद्धांतों के सारांश में कही गई है कि समलैंगिकों को अपमानित नहीं करना चाहिए। उन्हें सम्मान देना चाहिए।" पोप फ्रांसिस ने कहा कि चर्च को उन लोगों से माफी मांगनी चाहिए, जिन्हें उसने अधिकारहीन कर दिया है।
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि चर्च को न केवल समलैंगिकों से क्षमा मांगनी चाहिए, जिन्हें उसने अपमानित किया है बल्कि गरीबों व महिलाओं से भी माफी मांगनी चाहिए, जिन्हें काम करने को मजबूर कर उनका शोषण किया गया है।"
पोप फ्रांसिस ने 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के उस विचार को दोहराया जिसके अनुसार, समलैंगिक गतिविधियां पापमय हैं, लेकिन समलैंगिक रूझान नहीं। उन्होंने कहा, "अगर एक व्यक्ति समलैंगिक है और ईश्वर को मानता है एवं उसमें दयाभाव है, तो मैं उसे आंकने वाला कौन होता हूं?"
पोप फ्रांसिस ने आर्मीनिया की राजधानी येरवान की यात्रा के दौरान प्रथम विश्वयुद्ध के वक्त तुर्की साम्राज्य के तहत आर्मीनिया वासियों के कत्लेआम को 'जनसंहार' करार दिया।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उन्होंने कहा, "मैं फिर वही बात कहूंगा, जो चर्च के सिद्धांतों के सारांश में कही गई है कि समलैंगिकों को अपमानित नहीं करना चाहिए। उन्हें सम्मान देना चाहिए।" पोप फ्रांसिस ने कहा कि चर्च को उन लोगों से माफी मांगनी चाहिए, जिन्हें उसने अधिकारहीन कर दिया है।
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि चर्च को न केवल समलैंगिकों से क्षमा मांगनी चाहिए, जिन्हें उसने अपमानित किया है बल्कि गरीबों व महिलाओं से भी माफी मांगनी चाहिए, जिन्हें काम करने को मजबूर कर उनका शोषण किया गया है।"
पोप फ्रांसिस ने 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के उस विचार को दोहराया जिसके अनुसार, समलैंगिक गतिविधियां पापमय हैं, लेकिन समलैंगिक रूझान नहीं। उन्होंने कहा, "अगर एक व्यक्ति समलैंगिक है और ईश्वर को मानता है एवं उसमें दयाभाव है, तो मैं उसे आंकने वाला कौन होता हूं?"
पोप फ्रांसिस ने आर्मीनिया की राजधानी येरवान की यात्रा के दौरान प्रथम विश्वयुद्ध के वक्त तुर्की साम्राज्य के तहत आर्मीनिया वासियों के कत्लेआम को 'जनसंहार' करार दिया।
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