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This Article is From May 22, 2011

काठमांडू में बंद से जन-जीवन प्रभावित

काठमांडू: छेत्री समुदाय द्वारा आहूत 48 घंटे के बंद से रविवार को नेपाल की राजधानी काठमांडू में जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित रहा। छेत्री समाज नए संविधान में खुद को देशी समुदाय के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग कर रहा है। इसके अलावा, छह वामपंथी दलों ने मंगलवार को राष्ट्रव्यापी बंद की घोषणा कर रखी है। ज्ञात हो कि छेत्री समाज ने अतीत में नेपाल पर शासन किया है। छेत्री समाज के बंद के कारण काठमांडू और उससे लगे ललितपुर व भक्तपुर शहरों में रविवार को जनजीवन थम-सा गया। छेत्री समाज के अध्यक्ष, दिल बहादुर छेत्री ने कहा, "छेत्री हजार वर्षों से नेपाल के निवासी रहे हैं। लेकिन अंतरिम संविधान हमें देशी नागरिक की मान्यता नहीं देता। यदि सरकार ने हमारी मांगें नहीं मानी तो हम अन्य तरीके के जोरदार प्रदर्शन करेंगे।" 2001 की पिछली जनगणना के अनुसार, नेपाल में छेत्रियों का सबसे बड़ा समुदाय था। उस समय छेत्रियों की 35 लाख की आबादी, कुल आबादी का 16 प्रतिशत थी। नेपाल पर पारम्परिक रूप से छेत्रियों और ब्राह्मणों का एक गठबंधन शासन करता रहा है। लेकिन 2006 के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के बाद ये दोनों समुदाय सत्ता से अलग-थलग हो गए। इस आंदोलन के कारण राजा ज्ञानेंद्र को गद्दी छोड़नी पड़ी थी, राजशाही का अंत हो गया था। तभी से इन दोनों समुदायों ने जवाबी हमले शुरू किए हैं। दोनों समुदाय अपने अधिकारों के संरक्षण की मांग कर रहे हैं। छेत्रियों ने प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल को एक ज्ञापन सौंपा था, और मांगों पर विचार करने के लिए उन्हें आठ मई तक समय दिया था। लेकिन अपनी कुर्सी बचाने के लिए संघर्षरत प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया। उसके बाद से छेत्रियों ने कई बार बंद आयोजित किया। छेत्रियों ने नौ मई से ही बंद के जरिए देश को ठप कर रखा है। उन्होंने चार बंद आहूत किए। रविवार से शुरू हुए 48 घंटे के बंद से उनका आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया है। छेत्रियों के 48 घंटे के बंद के बाद मंगलवार को 24 घंटे के राष्ट्रव्यापी बंद का एक अलग कार्यक्रम है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) के करीबी छह वाम दलों की संयुक्त राष्ट्रीय संघर्ष समिति ने इस 24 घंटे के बंद का आह्वान किया है। इसके अलावा, नेपाल में अगले सप्ताह कुछ बड़े संकट के संकेत हैं। प्रधानमंत्री को संसद में मतदान का सामना करना पड़ेगा, जिसमें उनकी कुर्सी जा सकती है।

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