
किसी देश के चुनाव अभियानों में वैश्विक मुद्दों का राजनीतिकरण होते देखना (India Canada Relations) सामान्य बात नहीं है. लेकिन कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कुछ ऐसा ही किया है. यह देखना दिलचस्प है कि निजी चुनावी फायदे के लिए वह कहां तक जा सकते हैं. उनकी कोशिश उस स्तर पर पहुंच गई है, जहां राजनयिक संबंधों पर "वोट-बैंक की राजनीति" का असर दिखाई दे रहा है.
ये भी पढ़ें-भारत को 'आंख' दिखाने की तैयारी में ट्रूडो, जानिए फाइव आइज से कैसे बुन रहा 'चक्रव्यूह'
भारत-कनाडा दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं. भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया है. वहीं कनाडा से छह शीर्ष राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया है. कनाडा ने भारत के इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. वजह है जस्टिन ट्रूडो की खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन से करीबी और कनाडाई धरती पर नफरत, हिंसा और उग्रवाद फैलाने वाले घोषित आतंकियों और चरमपंथियों के लिए उनकी सहानुभूति , ये सब उनके वोट बैंक को लुभाने के लिए है.
खालिस्तानियों का समर्थन क्यों कर रहे ट्रूडो?
कानडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो एक बार फिर से देश की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे हैं. लेकिन उनको अपने ही देश में राजनीतिक रूप से एक के बाद एक झटका मिल रहा है. लेकिन फिर भी वह बार-बार खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन का समर्थन करने से पीछे नहीं हट रहे. उन्होंने इसे अपने देश में "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" कहकर सपोर्ट करने की परमिशन दे दी है.
ट्रूडो कनाडा में खालिस्तान रैलियों में शामिल होकर आतंकवादियों, चरमपंथियों और अलगाववादियों के साथ खड़े हैं. ऐसा करके उन्होंने सीधे तौर पर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का उल्लंघन किया है. उनका समर्थन करके वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का भी उल्लंघन कर रहे हैं. वह उनका साथ दे रहे हैं, जो भारत से अलग एक और राष्ट्र बनाना चाहते हैं . कनाडा में इसे अभिव्यक्ति की आजादी कहा जाता है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ये क्या हो रहा है?
भारत ने खालिस्तान रैली में ट्रूडो के शामिल होने पर कहा, "किसी भी सभ्य समाज में हिंसा का जश्न मनाना और उसका महिमामंडन नहीं होना चाहिए. कानून के शासन का सम्मान करने वाले लोकतांत्रिक देशों को उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कट्टरपंथी तत्वों के डराने-धमकाने की परमिशन नहीं देनी चाहिए."
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा में चरमपंथी तत्वों में बढ़ोतरी को देखते हुए, गंभीर स्थिति और तेजी से बिगड़ते संबंधों पर अपनी चिंता का हवाला देते हुए, इस साल की शुरुआत में कहा था कि "खालिस्तानी अलगाववादी तत्वों को राजनीतिक जगह देकर, कनाडाई सरकार बार-बार दिखा ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि उनका वोट बैंक उनके कानून के शासन से ज्यादा मजबूत है.
कनाडा पर एस जयशंकर की सख्त टिप्पणी
एस जयशंकर ने पीटीआई से कहा था कि भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है. वह खुद भी यही करता है. लेकिन यह विदेशी राजनयिकों को धमकाने, अलगाववाद को समर्थन करने या हिंसा और आतंक की वकालत करने वाले तत्वों को राजनीतिक जगह देने की स्वतंत्रता के जैसा नहीं है."
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं