विभिन्न प्रकार के बॉन्ड जिनमें आप निवेश कर पा सकते हैं ज्यादा रिटर्न, समझें बारीकियां

आप निवेश क्यों कर रहे हैं यह जरूर समझ लीजिए. आपके निवेश का कारण आपके निवेश की नीति निर्धारण का मूल है. इसलिए सबसे पहले यह अत्यंत आवश्यक है कि आप खुद यह तय कर लें कि आप निवेश क्यों कर रहे हैं.

विभिन्न प्रकार के बॉन्ड जिनमें आप निवेश कर पा सकते हैं ज्यादा रिटर्न, समझें बारीकियां

बॉन्ड में निवेश

नई दिल्ली:

Bonds and Different types of Bonds investment: हमने कुछ दिन पहले बॉन्ड के बारे में बात की थी. आखिर बॉन्ड होता क्या है. इस पर निवेश क्यों करना चाहिए और इस पर निवेश से कितना रिटर्न मिलता है. बॉन्ड और शेयर में क्या अंतर होता है. यह सारी बातें हम आपसे साझा कर चुके हैं. इसके बावजूद कुछ लोगों को अभी भी यह संदेह है कि ये निवेश कितना सुरक्षित है. इस पर बात करने से पहले यह बात कर लेते हैं कि बॉन्ड होते कितने प्रकार के हैं. इस पर जानकारी साझा करने का अभिप्राय केवल इतना है कि आपकी जानकारी कुछ और पुख्ता हो जाए और आप अपने निवेश को लेकर निर्णय लेकर विश्वास के साथ आगे बढ़ सकें.

तमाम संस्थान अपनी-अपनी जरूरतों और समय के हिसाब से बॉन्ड लेकर आते हैं. जो भी कंपनी बॉन्ड जारी करती है उसके बारे में जानकारी लेना और ठोस जानकारी लेना सबसे ज्यादा जरूरी होता है. आप किस कंपनी के बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं यह आपकी गाढ़ी कमाई की सुरक्षा का सवाल है. आप निवेश क्यों कर रहे हैं यह जरूर समझ लीजिए. आपके निवेश का कारण आपके निवेश की नीति निर्धारण का मूल है. इसलिए सबसे पहले यह अत्यंत आवश्यक है कि आप खुद यह तय कर लें कि आप निवेश क्यों कर रहे हैं. इसके बाद सवाल आता है कि आप कर मुक्त आय चाहते हैं या फिर नियमित निश्चित आय पर आपका ध्यान है. इन सब पहलुओं पर विचार करने के बाद ही बॉन्ड में निवेश करना चाहिए.

सरकारी बॉन्ड Government Bonds
गवर्नमेंट बॉन्ड जैसा कि नाम से ही साफ है कि केंद्र सरकार इस बॉन्ड को जारी करती है. इन्हें सॉवरिन बॉन्ड या कहें 'संप्रभु ऋण' भी कहा जाता है या फिर इसी नाम से जाना जाता है. इन बॉन्ड की रकम को चुकाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है. यानी इस बॉन्ड की गारंटी सरकार ही देती है. इसलिए इस प्रकार के बॉन्ड को सबसे सुरक्षित और जोखिम मुक्त निवेश के विकल्प के रूप में माना जाता है. इस प्रकार के बॉन्ड से आय पर कोई कर कटौती भी नहीं होती है. यह एक जोखिम-मुक्त निवेश विकल्प है. इनमें रिटर्न की गारंटी है. पहले, सरकारी बॉन्ड में निवेश केवल बैंकों और डाकघरों के माध्यम से ही संभव था, हालांकि, अब कोई भी निवेशक अपने डीमैट खातों का उपयोग करके इन बॉन्डों को खरीद सकते हैं.

राज्य बांड State bonds
भारत में केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार भी अपनी अपनी जरूरतों के हिसाब से बॉन्ड जारी करते हैं. कई राज्य बॉन्ड जारी कर धन जुटाते हैं. इन बॉन्डों को 'राज्य विकास ऋण' या SDL कहा जाता है. यह बॉन्ड सरकार की ओर से जारी किया जाता है इसलिए इसकी कोई क्रेडिट रेटिंग नहीं होती है. केंद्र सरकार के द्वारा जारी किए गए बॉन्ड की भी कोई क्रेडिट रेटिंग जारी नहीं की जाती है.


सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड Public Sector Bonds
पब्लिक सेक्टर बॉन्ड या कहें सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड उन संगठनों द्वारा जारी किए गए बॉन्ड होते हैं जिनमें सरकार की 50फीसदी या फिर इससे अधिक की हिस्सेदारी होती है. यानी सरकार का भी स्वामित्व होता है. ये बॉन्ड आम तौर पर मध्यम से लंबी अवधि के बॉन्ड होते हैं जिनकी मैच्युरिटी अवधि 5 साल से ऊपर की ओर होती है. कुछ PSU बॉन्ड भी कर-मुक्त निवेश श्रेणी में आते हैं. PSU बॉन्ड सरकार द्वारा गारंटी वाले ही होते हैं. इस प्रकार के निवेश भी लगभग सुरक्षित निवेश की कैटेगरी में आते हैं. फिर भी यह जरूरी है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति और पृष्ठभूमि की जांच कर लेनी चाहिए.

म्युनिसिपल बॉन्ड Municipal Bonds
कुछ बॉन्ड राज्य सरकार के विभागों द्वारा भी अपनी जरूरतों को देखते हुए लाए जाते हैं. इन्हें म्युनिसिपल बॉन्ड कहा जाता है. राज्य सरकारों या सरकार की अन्य एजेंसियों जैसे परिवहन विभाग, स्वास्थ्य सेवा विभाग द्वारा यह बॉन्ड बाजार में लाए जाते हैं. इस प्रकार के बॉन्ड में निवेश भी कर प्रावधानों के तहत टैक्स में छूट के अंतर्गत आते हैं. गौर करने की बात यह है कि सरकार टैक्स के नियमों बदलाव करती रहती है. इसलिए उचित है कि तत्कालीन नियमों को देखते हुए निवेश की योजना बनानी चाहिए. 

कॉर्पोरेट बॉन्ड Corporate bonds
बड़े निगम और वित्तीय संस्थान कॉरपोरेट बॉन्ड जारी कर सकते हैं. बॉन्ड की मैच्युरिटी को देखते हुए बॉन्ड शार्ट टर्म है या फिर लॉन्ग टर्म है यह देखा जाता है. कॉर्पोरेट बॉन्ड सरकारी बॉन्ड से भिन्न होता है. यह साफ है कि यह एक प्रकार से निजी कॉर्पोरेट के द्वारा लाया जाता है. इसकी सरकारी गारंटी नहीं होती. कंपनी के माली हालात देखकर प्लानिंग करनी चाहिए. गौर करने की बात यह होती है कि इस प्रकार के बॉन्ड रिटर्न ज्यादा देते हैं. इसलिए बाजार में अच्छी क्रेडिट रेटिंग को देखकर ही कंपनी के बॉन्ड का चयन करना चाहिए. साथ ही अच्छी प्रतिष्ठा वाले  अधिकांश कॉरपोरेट्स के डिफॉल्ट होने की संभावना कम होती है.

हाई रिटर्न वाले बॉन्ड High-yield Bonds
हाई-यील्ड बॉन्ड उन संस्थानों द्वारा जारी किए जाते हैं जो बाजार में नए प्रवेशकर्ता होते हैं. ऐसे कंपनियों ने बाजार में मजबूत प्रतिष्ठा हासिल नहीं की होती है. इस प्रकार के बॉन्डों की क्रेडिट रेटिंग कम होती है और यही कारण है कि ये ज्यादा रिटर्न देने की बात कहते हैं ताकि निवेशक उनके पास तक आएं और वे अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा कर सकें. किसी भी निवेशक के लिए जरूरी है कि वह ऐसी कंपनी की परिस्थिति को भलिभांति पहचाने और फिर बाजार के जोखिमों को समझते हुए अपना निर्णय ले. 

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जानकारी के लिए बता दें कि कुछ बॉन्ड इस प्रकार के भी होते हैं जिनमें टैक्स पूरी तरह से लगाया जाता है यानि निवेशक टैक्स के जिस स्लैब में आता है उसे उसी प्रकार से अपने आय पर टैक्स यानि अर्जित ब्याज पर टैक्स देना होता है.