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UP Election : 2017 में बीजेपी को बहुमत दिलाने वाले पश्चिमी यूपी में इस बार अलग हैं सियासी हालात
- Thursday February 10, 2022
2017 में 58 सीटों में से 53 सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए इस बार हालात अलग हैं. 2017 में बीजेपी को वोट देने की बात कह चुके राकेश टिकैत जैसे कई प्रभावशाली जाट नेताओं में सरकार को लेकर नाराजगी और जयंत चौधरी के प्रति नरमी देखी जा रही है.
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'अपराधमुक्त' और 'दंगामुक्त' उत्तर प्रदेश प्रदेश के लिए वोट करें : योगी आदित्यनाथ की अपील
- Thursday February 10, 2022
पहले चरण में शामली, हापुड़, गौतमबुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा तथा आगरा जिलों की विधानसभा सीटों पर वोटिंग हो रही है. पहले चरण में 2.28 करोड़ वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे.
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क्या किसान आंदोलन पश्चिमी यूपी में दंगों के दाग मिटा पाएगा?
- Tuesday September 7, 2021
- Ravish Kumar
किसान आंदोलन के नेता अगर चाहते हैं कि प्रधानमंत्री उनसे बात करें तो उन्हें महापंचायत का आयोजन नहीं करना चाहिए. उन्हें किसान महापंचायतों की जगह कबड्डी, खो-खो, हॉकी का आयोजन करना चाहिए ताकि इन खेलों में विजय प्राप्त करते ही विजयी किसान नेताओं को प्रधानमंत्री का फोन आ जाए और फिर उस बातचीत का वीडियो न्यूज़ चैनलों पर भी ख़ूब चलेगा. यह प्रसंग इसलिए आया कि खिलाड़ियों के लिए सुलभ प्रधानमंत्री किसानों के लिए कितने दुर्लभ हो गए हैं. नौ महीने से अनगिनत महापंचायतों, धरना-प्रदर्शनों और किसान संसद के आयोजन के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी की किसान नेताओं से बात नहीं हुई जबकि उन्होंने कहा था कि वे एक कॉल की दूरी पर हैं. कभी कुछ किसानों का आंदोलन तो कभी बड़े किसानों का आंदोलन बता कर इस आंदोलन को खारिज करने के बाद किसान हर बार अपनी रैलियों के ज़रिए बता रहे हैं कि उनका आंदोलन किसका है.
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यूपी चुनाव 2017 : इस बार होगी मायावती की राजनीतिक योग्यता की सबसे कठिन परीक्षा
- Monday February 13, 2017
मुजफ्फरनगर दंगों में मारे गए मुसलमानों में ज्यादातर पसमंदा जाति के थे जो दलित या पिछड़ा वर्ग में आते हैं. यूपी की 18 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है जिसमें 85 फीसदी पसमंदा जाति के हैं और इनमें से ज्यादातर अब मायावती के खेमे में आ रहे हैं.
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UP Election : 2017 में बीजेपी को बहुमत दिलाने वाले पश्चिमी यूपी में इस बार अलग हैं सियासी हालात
- Thursday February 10, 2022
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- Thursday February 10, 2022
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- Tuesday September 7, 2021
- Ravish Kumar
किसान आंदोलन के नेता अगर चाहते हैं कि प्रधानमंत्री उनसे बात करें तो उन्हें महापंचायत का आयोजन नहीं करना चाहिए. उन्हें किसान महापंचायतों की जगह कबड्डी, खो-खो, हॉकी का आयोजन करना चाहिए ताकि इन खेलों में विजय प्राप्त करते ही विजयी किसान नेताओं को प्रधानमंत्री का फोन आ जाए और फिर उस बातचीत का वीडियो न्यूज़ चैनलों पर भी ख़ूब चलेगा. यह प्रसंग इसलिए आया कि खिलाड़ियों के लिए सुलभ प्रधानमंत्री किसानों के लिए कितने दुर्लभ हो गए हैं. नौ महीने से अनगिनत महापंचायतों, धरना-प्रदर्शनों और किसान संसद के आयोजन के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी की किसान नेताओं से बात नहीं हुई जबकि उन्होंने कहा था कि वे एक कॉल की दूरी पर हैं. कभी कुछ किसानों का आंदोलन तो कभी बड़े किसानों का आंदोलन बता कर इस आंदोलन को खारिज करने के बाद किसान हर बार अपनी रैलियों के ज़रिए बता रहे हैं कि उनका आंदोलन किसका है.
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- Monday February 13, 2017
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