Navratre 2017
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Navratri 2017 : नवरात्रि के सातवें दिन होती है शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि की उपासना
- Thursday August 31, 2017
- Edited by: अनिता शर्मा
सप्तम दुर्गा-स्वरुप कालरात्रि के ध्यान-मंत्र और स्तोत्र-पाठ के जप से भानुचक्र जागृत होता है. उनकी कृपा से अग्निभय, आकाशभय, भूत-पिशाच आदि स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं. मां कालरात्रि साधकों को अभय बनाती हैं.
- ndtv.in
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तृतीय नवरात्र : देवी चंद्रघण्टा के उपासक होते हैं सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय
- Tuesday September 12, 2017
- Edited by: अनिता शर्मा
देवी चंद्रघण्टा का स्वरूप परम शांतिदायक और महाकल्याणकारी है. उनके मस्तक पर अर्धचंद्र प्रकाशमान है, जो घण्टे के आकार का है. यही कारण है कि इन्हें चंद्रघण्टा नाम से अभिहित किया जाता है.
- ndtv.in
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द्वितीय नवरात्र 2017 : यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए होती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
- Friday September 22, 2017
- Edited by: अनिता शर्मा
मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है. साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के दूसरे दिन साधक इनकी आराधना कर अपने चित्त को ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित करते हैं.
- ndtv.in
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नवरात्रि 2017: जानें, कैसे करें कलश पूजन, क्या है इसकी प्रक्रिया
- Thursday September 21, 2017
- Edited by: अनिता शर्मा
नवरात्रि की पहले दिन श्रद्धालु घर या मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं. इसे घट-स्थापना भी कहते है. जो साधक नवरात्रि व्रत का संकल्प लेते हैं, वे एक उचित और पवित्र स्थान पर मिट्टी की वेदी बनाकर वहां "जौ सहित सात प्रकार के अनाज" बोते है. फिर इस वेदी पर एक कलश या घट की स्थापना करते हैं.
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Navratri 2017 : नवरात्रि के सातवें दिन होती है शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि की उपासना
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सप्तम दुर्गा-स्वरुप कालरात्रि के ध्यान-मंत्र और स्तोत्र-पाठ के जप से भानुचक्र जागृत होता है. उनकी कृपा से अग्निभय, आकाशभय, भूत-पिशाच आदि स्मरण मात्र से ही भाग जाते हैं. मां कालरात्रि साधकों को अभय बनाती हैं.
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द्वितीय नवरात्र 2017 : यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय के लिए होती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
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मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है. साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है. नवरात्रि के दूसरे दिन साधक इनकी आराधना कर अपने चित्त को ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित करते हैं.
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