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Krishna Sobti

'Krishna Sobti' - 6 News Result(s)
  • आख़िरकार चले गए नामवर सिंह..

    आख़िरकार चले गए नामवर सिंह..

    हिंदी की आलोचना परंपरा में जो चीज़ नामवर सिंह को विशिष्ट और अद्वितीय बनाती है, वह उनकी सर्वसुलभ सार्वजनिकता है. वे किन्हीं अध्ययन कक्षों में बंद और पुस्तकों में मगन अध्येता और विद्वान नहीं थे, वे सार्वजनिक विमर्श के हर औजार का जैसे इस्तेमाल करते थे. उन्होंने किताबें लिखीं, अख़बारों और पत्रिकाओं में लेख लिखे और साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन किया.

  • नहीं रहीं मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती

    नहीं रहीं मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती

    एक किताब होती तो आपके लिए भी आसान होता लेकिन जब कोई लेखक रचते-रचते संसार में से संसार खड़ा कर देता है तब उस लेखक के पाठक होने का काम भी मुश्किल हो जाता है. आप एक किताब पढ़ कर उसके बारे में नहीं जान सकते हैं. जो लेखक लिखते लिखते समाज में अपने लिए जगह बनाता है, अंत में उसी के लिए समाज में जगह नहीं बचती है.

  • कृष्णा सोबती के बिना: कुछ कम दुनिया रह गई हमारी दुनिया

    कृष्णा सोबती के बिना: कुछ कम दुनिया रह गई हमारी दुनिया

    वे अपनी नायिकाओं की तरह दिलेर थीं. उनकी नायिकाएं जिस हाल में हों, कभी 'पीड़ित' या 'शिकार' होने की कुंठा उनके भीतर नहीं दिखती. जीवन उनके लिए अपनी ज़िद पर अमल का नाम है. वे बेख़ौफ़, बेधड़क, रूढ़ियों की परवाह न करने वाली औरतें हैं जो यथास्थिति को बार-बार चुनौती देती हैं, जीवन को उसकी दी हुई शर्तों पर मंज़ूर नहीं करतीं, उसे अपने ढंग से बदलने का जतन करती हैं.

  • कृष्णा सोबती बहुत याद आएगा आपका जादुई व्यक्तित्व और बेबाकपन

    कृष्णा सोबती बहुत याद आएगा आपका जादुई व्यक्तित्व और बेबाकपन

    हिंदी साहित्य (Hindi Literature) में कृष्णा सोबती (Krishna Sobti) एक अलग ही मुकाम रखती थीं और उनका व्यक्तित्व उनकी किताबों जितना ही अनोखा था. 1980 में कृष्णा सोबती को उनकी किताब 'जिंदगीनामा' के लिए साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi Award) से नवाजा गया था तो 2017 में हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें ज्ञानपीठ (Jnanpith) पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

  • साहित्य के क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार लेखिका कृष्णा सोबती

    साहित्य के क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार लेखिका कृष्णा सोबती

    साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 2017 के लिए हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठित लेखिका कृष्णा सोबती को प्रदान किया जायेगा.

  • जाने का दर्द है कृष्णा सोबती का नया उपन्यास

    जाने का दर्द है कृष्णा सोबती का नया उपन्यास

    बंटवारे के दौरान अपने जन्म स्थान गुजरात और लाहौर को छोड़ते हुए कृष्णा सोबती कहती हैं, ‘याद रखना, हम यहां रह गए हैं.’ ये याद रखना ही रूलाने के लिए काफी है. इसी अंतिम विदाई के साथ कृष्णा सोबती किस प्रकार दिल्ली पहुंचती हैं और कैसे हिंदुस्तान का गुजरात उन्हें आवाज देता है और वे पाकिस्तान के गुजरात की अपनी स्मृतियों की पोटली बांधकर पहली नौकरी के लिए सिरोही पहुंचती हैं...इसी सब की दास्तां है राजकमल द्वारा प्रकाशित उनका नया उपन्यास.

'Krishna Sobti' - 6 News Result(s)
  • आख़िरकार चले गए नामवर सिंह..

    आख़िरकार चले गए नामवर सिंह..

    हिंदी की आलोचना परंपरा में जो चीज़ नामवर सिंह को विशिष्ट और अद्वितीय बनाती है, वह उनकी सर्वसुलभ सार्वजनिकता है. वे किन्हीं अध्ययन कक्षों में बंद और पुस्तकों में मगन अध्येता और विद्वान नहीं थे, वे सार्वजनिक विमर्श के हर औजार का जैसे इस्तेमाल करते थे. उन्होंने किताबें लिखीं, अख़बारों और पत्रिकाओं में लेख लिखे और साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन किया.

  • नहीं रहीं मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती

    नहीं रहीं मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती

    एक किताब होती तो आपके लिए भी आसान होता लेकिन जब कोई लेखक रचते-रचते संसार में से संसार खड़ा कर देता है तब उस लेखक के पाठक होने का काम भी मुश्किल हो जाता है. आप एक किताब पढ़ कर उसके बारे में नहीं जान सकते हैं. जो लेखक लिखते लिखते समाज में अपने लिए जगह बनाता है, अंत में उसी के लिए समाज में जगह नहीं बचती है.

  • कृष्णा सोबती के बिना: कुछ कम दुनिया रह गई हमारी दुनिया

    कृष्णा सोबती के बिना: कुछ कम दुनिया रह गई हमारी दुनिया

    वे अपनी नायिकाओं की तरह दिलेर थीं. उनकी नायिकाएं जिस हाल में हों, कभी 'पीड़ित' या 'शिकार' होने की कुंठा उनके भीतर नहीं दिखती. जीवन उनके लिए अपनी ज़िद पर अमल का नाम है. वे बेख़ौफ़, बेधड़क, रूढ़ियों की परवाह न करने वाली औरतें हैं जो यथास्थिति को बार-बार चुनौती देती हैं, जीवन को उसकी दी हुई शर्तों पर मंज़ूर नहीं करतीं, उसे अपने ढंग से बदलने का जतन करती हैं.

  • कृष्णा सोबती बहुत याद आएगा आपका जादुई व्यक्तित्व और बेबाकपन

    कृष्णा सोबती बहुत याद आएगा आपका जादुई व्यक्तित्व और बेबाकपन

    हिंदी साहित्य (Hindi Literature) में कृष्णा सोबती (Krishna Sobti) एक अलग ही मुकाम रखती थीं और उनका व्यक्तित्व उनकी किताबों जितना ही अनोखा था. 1980 में कृष्णा सोबती को उनकी किताब 'जिंदगीनामा' के लिए साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi Award) से नवाजा गया था तो 2017 में हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें ज्ञानपीठ (Jnanpith) पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

  • साहित्य के क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार लेखिका कृष्णा सोबती

    साहित्य के क्षेत्र में देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार लेखिका कृष्णा सोबती

    साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 2017 के लिए हिन्दी की लब्धप्रतिष्ठित लेखिका कृष्णा सोबती को प्रदान किया जायेगा.

  • जाने का दर्द है कृष्णा सोबती का नया उपन्यास

    जाने का दर्द है कृष्णा सोबती का नया उपन्यास

    बंटवारे के दौरान अपने जन्म स्थान गुजरात और लाहौर को छोड़ते हुए कृष्णा सोबती कहती हैं, ‘याद रखना, हम यहां रह गए हैं.’ ये याद रखना ही रूलाने के लिए काफी है. इसी अंतिम विदाई के साथ कृष्णा सोबती किस प्रकार दिल्ली पहुंचती हैं और कैसे हिंदुस्तान का गुजरात उन्हें आवाज देता है और वे पाकिस्तान के गुजरात की अपनी स्मृतियों की पोटली बांधकर पहली नौकरी के लिए सिरोही पहुंचती हैं...इसी सब की दास्तां है राजकमल द्वारा प्रकाशित उनका नया उपन्यास.