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- Thursday June 2, 2022
 - Reported by: भाषा
 
संतूर वादक (Santoor player) भजन सोपोरी (Bhajan Sopori ) का गुरुग्राम के एक अस्पताल में गुरुवार को कोलन कैंसर के कारण निधन हो गया. वो 73 साल के थे. परिवार के सदस्यों ने यह जानकारी दी.
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- Friday April 23, 2021
 - Written by: दीक्षा त्रिपाठी
 
संगीत की दुनिया में श्रवण राठौड़ (Shravan Rathod) का जाना माना नाम है. नदीम और श्रवण की जोड़ी काफी मशहूर थी, लेकिन अब दोनों का साथ छूट चुका है.
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- Friday August 21, 2020
 - सूर्यकांत पाठक
 
आम तौर पर शास्त्रीय संगीत सभाओं में इस परंपरा में रुचि रखने वाले या फिर वे रसिक, जो इसके अलौकिक आनंद में गोता लगाना जानते हैं, ही पहुंचते हैं. लेकिन पंडित जसराज की सभाओं में श्रोताओं का समूह इससे कुछ जुदा होता था. उनकी सभाओं में शुद्ध शास्त्रीय संगीतों के रसिकों के अलावा वे आम श्रोता भी होते थे जो भारतीय भक्ति परंपरा में विश्वास रखते थे. इसका कारण था मेवाती घराने की वह सुर धारा जिसका कहीं अधिक उन्नत स्वरूप पंडित जसराज के गायन में देखने को मिलता है. पंडित जी ने अपने गायन में उस वैष्णव भक्ति परंपरा को चुना जो भारतीय संस्कृति का मजबूत आधार रही है. दैवीय आख्यान मेवाती घराने की विशेषता रही है. यह वह परंपरा है जिसका विकास मंदिरों में गायन से हुआ है. यह 'टेंपल म्युजिक' है. यह संगीत का वही स्वरूप है जो निराकार को साकर करता है, जो निराकार को सुरों में संजोकर आकार देता है. जो मानव को चिरंतन में लीन होने की दिशा में ले जाता है. पंडित जसराज की बंदिशें देवों को समर्पित हैं. वे देव जो भारतीय संस्कृति का अमिट हिस्सा हैं. पंडित जी के सुरों के साथ शब्द ब्रह्म आम लोगों के मन की थाह तक पहुंचते रहे.
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- Thursday June 2, 2022
 - Reported by: भाषा
 
संतूर वादक (Santoor player) भजन सोपोरी (Bhajan Sopori ) का गुरुग्राम के एक अस्पताल में गुरुवार को कोलन कैंसर के कारण निधन हो गया. वो 73 साल के थे. परिवार के सदस्यों ने यह जानकारी दी.
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- Friday April 23, 2021
 - Written by: दीक्षा त्रिपाठी
 
संगीत की दुनिया में श्रवण राठौड़ (Shravan Rathod) का जाना माना नाम है. नदीम और श्रवण की जोड़ी काफी मशहूर थी, लेकिन अब दोनों का साथ छूट चुका है.
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आम तौर पर शास्त्रीय संगीत सभाओं में इस परंपरा में रुचि रखने वाले या फिर वे रसिक, जो इसके अलौकिक आनंद में गोता लगाना जानते हैं, ही पहुंचते हैं. लेकिन पंडित जसराज की सभाओं में श्रोताओं का समूह इससे कुछ जुदा होता था. उनकी सभाओं में शुद्ध शास्त्रीय संगीतों के रसिकों के अलावा वे आम श्रोता भी होते थे जो भारतीय भक्ति परंपरा में विश्वास रखते थे. इसका कारण था मेवाती घराने की वह सुर धारा जिसका कहीं अधिक उन्नत स्वरूप पंडित जसराज के गायन में देखने को मिलता है. पंडित जी ने अपने गायन में उस वैष्णव भक्ति परंपरा को चुना जो भारतीय संस्कृति का मजबूत आधार रही है. दैवीय आख्यान मेवाती घराने की विशेषता रही है. यह वह परंपरा है जिसका विकास मंदिरों में गायन से हुआ है. यह 'टेंपल म्युजिक' है. यह संगीत का वही स्वरूप है जो निराकार को साकर करता है, जो निराकार को सुरों में संजोकर आकार देता है. जो मानव को चिरंतन में लीन होने की दिशा में ले जाता है. पंडित जसराज की बंदिशें देवों को समर्पित हैं. वे देव जो भारतीय संस्कृति का अमिट हिस्सा हैं. पंडित जी के सुरों के साथ शब्द ब्रह्म आम लोगों के मन की थाह तक पहुंचते रहे.
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