लियोनेल मेसी अर्जेंटीना के 4 फाइनल हारने से काफी दुखी हैं...
अर्जेंटीना टीम के चार फाइनल गंवाने से दुखी विश्वप्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मेसी ने अंततः पूरी 'हार' मान ली और इंटरनेशनल खेल को अलविदा कह दिया। ऐसा लगता है कि उनका संघर्ष का जज्बा अब पहले जैसा नहीं रहा। क्या आप जानते हैं कि यह हाल उस मेसी का है, जिसने बचपन में बड़ी बीमारी के आगे भी हार नहीं मानी थी और अपनी लगन-हिम्मत से महान फुटबॉलर बनने का सपना पूरा किया। शानदार करियर और पांच बार विश्व के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर का खिताब जीतने और तीन बार यूरोपीय गोल्डन शू का ख़िताब जीतने वाला इकलौते फुटबॉलर होने के बावजूद मेसी को कई मौकों पर अपने देश के प्रशंसकों की आलोचना का सामना करना पड़ा है। माना जा रहा है कि इन सबके चलते ही मेसी ने खेल के इंटरनेशनल स्तर से हटने का फैसला कर लिया...
पहले बीमारी को दी मात...
अर्जेंटीना में पैदा हुए लियोनेल मेसी बचपन में वृद्धि (ग्रोथ) हार्मोन की कमी से पीड़ित थे, जिससे उनका शारीरिक विकास रुक गया था। महज 4 साल की उम्र से ही फुटबॉल के दीवाने हो चुके मेसी को 11 साल की उम्र में इस बीमारी का पता चला। इसके उपचार के लिए उनके पास पैसे नहीं थे और अर्जेंटीना के जिस क्लब से वह खेलते थे उससे भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। यह समस्या उनके फुटबॉलर बनने के सपने में सबसे बड़ी बाधा थी। फुटबॉल में महारत हासिल करने जा रहे मेसी की इस बीमारी से उनके मां-बाप भी काफी परेशान थे। बाद में स्पेन में रहने वाले मेसी के रिश्तेदारों ने उन्हें बार्सिलोना फुटबॉल क्लब से जुड़ने की सलाह दी। इस क्लब ने 13 साल के मेसी को हाथोंहाथ लिया और उनके इलाज की जिम्मेदारी भी ली। फिर क्या था तीन साल में मेसी फिट हो गए और फुटबॉल के मैदान पर उनकी जादूगरी रंग लाने लगी।
चोट से भी रहे परेशान, फिर भी नहीं मानी हार
मेसी को 17 साल की उम्र में मुख्य प्रतियोगी फुटबॉल में उतरने का मौका मिला। करियर के शुरुआती दौर में वह चोट से पीड़ित रहे, लेकिन उन्होंने खुद को टीम के अहम सदस्य के रूप में स्थापित कर लिया। मेसी को बार्सिलोना की टीम में नियमित स्थान 2005 में मिला, जब उन्होंने सीनियर टीम के प्लेयर के रूप में बार्सिलोना से पहला कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, जो पांच साल का था। दिसंबर 2015 में उन्हें पथरी की शिकायत भी थी, जिसका उन्होंने लंबा इलाज कराया था। कोपा, 2016 से पहले भी वह चोट से पीड़ित रहे।
पहले मैच में 47 सेकेंड में ही मिल गया रेड कार्ड
क्लब के रूप में वह बार्सिलोना से खेलते रहे, लेकिन देश के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने अपनी मातृभूमि अर्जेंटीना को ही चुना और राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बने। अर्जेंटीना की ओर से मेसी ने अगस्त 2005 में हंगरी के खिलाफ पहला इंटरनेशनल मैच खेला था, इसमें भी वह महज 47 सेकेंड तक मैदान पर रह पाए थे, क्योंकि उन्हें रेड कार्ड दिखाया गया था और वे आगे नहीं खेल सके।
भावुक इतने कि प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट अवॉर्ड लेने से किया मना
बात 2014 के फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल की है। ब्राजील के ऐतिहासिक माराकाना स्टेडियम में जर्मनी के आगे अर्जेंटीना की टीम हार गई। हार से दुखी मेसी जिसने पूरे टूर्नामेंट में जलवा बिखेरा था, उदास थे। इतने उदास कि उन्होंने ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ का अवॉर्ड लेने से इंकार कर दिया। अंत में काफी समझाए जाने के बाद उन्होंने अवॉर्ड तो लिया, लेकिन चेहरी पर उदासी तैर रही थी। उन्हें मलाल था कि वह टीम को कप नहीं दिला पाए।
ओलिंपिक स्वर्ण रही खास उपलब्धि
2008 में मेसी ने ओलिंपिक में अर्जेंटीना को स्वर्ण पदक दिलवाया, यही उनकी देश के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि रही है, क्योंकि उनके रहते अर्जेंटीना को 4 फाइनल में हार का मुंह देखना पड़ा है।
अर्जेंटीना के महान फुटबॉलर मैराडोना ने मेसी को अपना उत्तराधिकारी बताया था, लेकिन उन्होंने नेतृत्व क्षमता को लेकर उनकी आलोचना भी की थी। यूरो-2016 की शुरुआत से ठीक पहले पेरिस में मैराडोना ने कहा था, ‘‘वह (मेसी) बहुत अच्छे व्यक्ति हैं लेकिन उनके पास वैसी शख्सियत नहीं है। उनमें नेतृत्व के गुण की कमी है।’’
चार बार फाइनल में हारे
साल 2007 के कोपा अमेरिका के फाइनल सहित अर्जेंटीना की टीम को मेसी के रहते 4 बार बड़े फाइनल मुकाबलों में हारी है, जिनमें 2014 के वर्ल्ड कप फाइनल में जर्मनी ने 1-0 से, 2015 के कोपा अमेरिका के फाइनल में चिली ने पेनल्टी में मात ही दी थी और अब एक बार फिर चिली ने कोपा 2016 फाइनल में मेसी की अर्जेंटीना को मात दे दी। मेसी 5 बार के बैलन डि ओर (फीफा के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी) विजेता हैं। यही नहीं मेसी अर्जेंटीना के लिए सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी हैं, उन्होंने 55 गोल किए हैं।
कई उपलब्धियों के बावजूद उनकी मौजूदगी में टीम कोपा अमेरिका 2016 से पहले ओलिंपिक को छोड़ 3 बड़े फाइनल हार गई थी यह बात उन्हें सालती रही और अंत में एक बार फिर कोपा का खिताब जीतने से चूक जाने पर मेसी को बड़ा झटका लगा और बचपन में बीमारी, गरीबी से संघर्ष की मिसाल रहा यह महान फुटबॉलर हार को नहीं पचा पाया और खेल अलविदा कहने का फैसला कर लिया...
पहले बीमारी को दी मात...
अर्जेंटीना में पैदा हुए लियोनेल मेसी बचपन में वृद्धि (ग्रोथ) हार्मोन की कमी से पीड़ित थे, जिससे उनका शारीरिक विकास रुक गया था। महज 4 साल की उम्र से ही फुटबॉल के दीवाने हो चुके मेसी को 11 साल की उम्र में इस बीमारी का पता चला। इसके उपचार के लिए उनके पास पैसे नहीं थे और अर्जेंटीना के जिस क्लब से वह खेलते थे उससे भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। यह समस्या उनके फुटबॉलर बनने के सपने में सबसे बड़ी बाधा थी। फुटबॉल में महारत हासिल करने जा रहे मेसी की इस बीमारी से उनके मां-बाप भी काफी परेशान थे। बाद में स्पेन में रहने वाले मेसी के रिश्तेदारों ने उन्हें बार्सिलोना फुटबॉल क्लब से जुड़ने की सलाह दी। इस क्लब ने 13 साल के मेसी को हाथोंहाथ लिया और उनके इलाज की जिम्मेदारी भी ली। फिर क्या था तीन साल में मेसी फिट हो गए और फुटबॉल के मैदान पर उनकी जादूगरी रंग लाने लगी।
चोट से भी रहे परेशान, फिर भी नहीं मानी हार
मेसी को 17 साल की उम्र में मुख्य प्रतियोगी फुटबॉल में उतरने का मौका मिला। करियर के शुरुआती दौर में वह चोट से पीड़ित रहे, लेकिन उन्होंने खुद को टीम के अहम सदस्य के रूप में स्थापित कर लिया। मेसी को बार्सिलोना की टीम में नियमित स्थान 2005 में मिला, जब उन्होंने सीनियर टीम के प्लेयर के रूप में बार्सिलोना से पहला कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, जो पांच साल का था। दिसंबर 2015 में उन्हें पथरी की शिकायत भी थी, जिसका उन्होंने लंबा इलाज कराया था। कोपा, 2016 से पहले भी वह चोट से पीड़ित रहे।
पहले मैच में 47 सेकेंड में ही मिल गया रेड कार्ड
क्लब के रूप में वह बार्सिलोना से खेलते रहे, लेकिन देश के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने अपनी मातृभूमि अर्जेंटीना को ही चुना और राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बने। अर्जेंटीना की ओर से मेसी ने अगस्त 2005 में हंगरी के खिलाफ पहला इंटरनेशनल मैच खेला था, इसमें भी वह महज 47 सेकेंड तक मैदान पर रह पाए थे, क्योंकि उन्हें रेड कार्ड दिखाया गया था और वे आगे नहीं खेल सके।
भावुक इतने कि प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट अवॉर्ड लेने से किया मना
बात 2014 के फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल की है। ब्राजील के ऐतिहासिक माराकाना स्टेडियम में जर्मनी के आगे अर्जेंटीना की टीम हार गई। हार से दुखी मेसी जिसने पूरे टूर्नामेंट में जलवा बिखेरा था, उदास थे। इतने उदास कि उन्होंने ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ का अवॉर्ड लेने से इंकार कर दिया। अंत में काफी समझाए जाने के बाद उन्होंने अवॉर्ड तो लिया, लेकिन चेहरी पर उदासी तैर रही थी। उन्हें मलाल था कि वह टीम को कप नहीं दिला पाए।
ओलिंपिक स्वर्ण रही खास उपलब्धि
2008 में मेसी ने ओलिंपिक में अर्जेंटीना को स्वर्ण पदक दिलवाया, यही उनकी देश के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि रही है, क्योंकि उनके रहते अर्जेंटीना को 4 फाइनल में हार का मुंह देखना पड़ा है।
अर्जेंटीना के महान फुटबॉलर मैराडोना ने मेसी को अपना उत्तराधिकारी बताया था, लेकिन उन्होंने नेतृत्व क्षमता को लेकर उनकी आलोचना भी की थी। यूरो-2016 की शुरुआत से ठीक पहले पेरिस में मैराडोना ने कहा था, ‘‘वह (मेसी) बहुत अच्छे व्यक्ति हैं लेकिन उनके पास वैसी शख्सियत नहीं है। उनमें नेतृत्व के गुण की कमी है।’’
चार बार फाइनल में हारे
साल 2007 के कोपा अमेरिका के फाइनल सहित अर्जेंटीना की टीम को मेसी के रहते 4 बार बड़े फाइनल मुकाबलों में हारी है, जिनमें 2014 के वर्ल्ड कप फाइनल में जर्मनी ने 1-0 से, 2015 के कोपा अमेरिका के फाइनल में चिली ने पेनल्टी में मात ही दी थी और अब एक बार फिर चिली ने कोपा 2016 फाइनल में मेसी की अर्जेंटीना को मात दे दी। मेसी 5 बार के बैलन डि ओर (फीफा के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी) विजेता हैं। यही नहीं मेसी अर्जेंटीना के लिए सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी हैं, उन्होंने 55 गोल किए हैं।
कई उपलब्धियों के बावजूद उनकी मौजूदगी में टीम कोपा अमेरिका 2016 से पहले ओलिंपिक को छोड़ 3 बड़े फाइनल हार गई थी यह बात उन्हें सालती रही और अंत में एक बार फिर कोपा का खिताब जीतने से चूक जाने पर मेसी को बड़ा झटका लगा और बचपन में बीमारी, गरीबी से संघर्ष की मिसाल रहा यह महान फुटबॉलर हार को नहीं पचा पाया और खेल अलविदा कहने का फैसला कर लिया...
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