मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे और उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर लगातार आरोप लगते रहे कि उन्हीं के संरक्षण में ड्रग्स तस्करों ने इस राज्य में अपने पांव जमा लिए.
चंडीगढ़:
पंजाब में 10 साल से सत्ता संभाल रही शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गठबंधन की विधानसभा चुनाव में करारी हार होती दिख रही है. सुबह 10 बजे तक के रुझान में कांग्रेस 65, अकाली 28 और आप 23 सीटों पर आगे चल रही है. अब तक रुझानों में साफ हो गया है कि पंजाब की जनता ने बादल सरकार को नकार दिया है. आइए जानें कौन सी वह वजह है जिसके बादल सरकार हारती दिख रही है.
ड्रग्स रहा मुख्य मुद्दा
पंजाब चुनाव में ड्रग्स और नशोखारी मुख्य वजह रही. मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे और उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर लगातार आरोप लगते रहे कि उन्हीं के संरक्षण में ड्रग्स तस्करों ने इस राज्य में अपने पांव जमा लिए. मुख्य प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के नेता रैलियों और भाषणों के जरिए लोगों को यह समझाने की कोशिश करते रहे कि पाकिस्तान से ड्रग्स भेजे जा रहे ड्रग्स को बादल सरकार नहीं रोक पा रही है. पिछले 10 साल में ड्रग्स के चलते सैंकड़ों युवाओं की मौत के मामले सामने आए. इस बात से खासकर ग्रामीण इलाके के लोग काफी नाराज दिखे. अप्रवासी पंजाबियों को भी लगा कि अकाली सरकार की नाकामी के चलते उनके गांव और परिवार के लोग नशे की चपेट में आते जा रहे हैं. इन हमलों के जवाब में बादल सरकार कोई सटीक तर्क नहीं दे पाई.
अप्रवासी भारतीयों की बादल सरकार से नाराजगी
इस बार के पंजाब चुनाव में अप्रवासी पंजाबियों की काफी दखल दिखी. बड़ी संख्या में अप्रवासी पंजाबी अपने खर्चे पर राज्य में लौटे और बादल सरकार के खिलाफ प्रचार किया. अप्रवासी आरोप लगाते रहे कि बादल सरकार में बड़े पैमाने पर जमीनों पर कब्जे हुए. उनका कहना था कि वे विदेशों में पैसे कमाने जाते हैं, यहां उनकी जमीन-जायदादों पर कब्जे हो रहे हैं. अप्रवासी ये भी कहते रहे कि वे चाह कर भी राज्य में निवेश नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इस काम में भी उन्हें बहुत दिक्कतें आती हैं. इसके अलावा उनका आरोप रहा कि बादल सरकार ने अप्रवासी पंजाबियों के लिए पिछले 10 साल में कोई बड़ा काम नहीं किया.
सुखबीर सिंह बादल की मनमानी
शिअद-बीजेपी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री तो प्रकाश सिंह बादल रहे, लेकिन असली कमान उनके बेटे सुखबीर बादल के हाथों में रही. सरकार में सहयोगी बीजेपी भी आरोप लगा रही है कि अगर गठबंधन की हार होती है तो इसके लिए केवल और केवल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल और उनकी नीतियां ही जिम्मेदार होंगी. कहा जाता है कि दूसरी बार के कार्यकाल में सुखबीर बादल पूरी तरीके से जनता से दूर हो गए. सरकार के मंत्री लोगों की तकलीफें बिल्कुल नहीं सुनी. इस सरकार के दूसरे कार्यकाल में व्यापारियों को उजाड़ने का काम किया. सुखबीर सिंह बादल ने मनमाने तरीके से फैसले लिए.
गंवाया नवजोत सिंह सिद्धू का साथ
पंजाब की राजनीति में क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू की खास दखल मानी जाती है. सिद्धू की वजह से न केवल रैलियों में भीड़ जुटती है, बल्कि उनके नाम पर खासे वोट भी बरसते हैं. चुनाव से ठीक पहले सिद्धू दंपति बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस में चले गए. इसका भी चुनाव में बादल सरकार को खास नुकसान उठाना पड़ा.
10 साल एक सरकार से ऊब चुकी थी जनता
जब भी कोई पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रहती है तो एक स्वभाविक प्रक्रिया के तहत वोटरों के एक धड़ा उससे नाराज होता है. लोग बदलाव चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि नई पार्टी सत्ता में आएगी तो वह कुछ बेहतर काम करेगी. शिअद-बीजेपी गठबंधन भी पिछले 10 साल से पंजाब में सत्ता में थी, इसलिए जनता बदलाव चाह रही थी.
गुर्जर और दलित वोटरों का बादल से मोह टूटा
पंजाब के मालबा क्षेत्र गुर्जर और दलित बहुल इलाका है. ये दोनों लंबे समय से बादल परिवार पर भरोसा जताते आए है. इस बार के चुनाव में गुर्जर और दलित वोटरों का ज्यादा झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ देखा गया. शिअद के नाराज पंथक वोटर भी कांग्रेस और आप की ओर जाते दिखाई दिए हैं. डेरा सच्चा सौदा की ओर से इन चुनावों में शिअद-भाजपा गठबंधन को समर्थन दिए जाने से मालवा क्षेत्र में 35 लाख से अधिक डेरा प्रेमियों के वोट गठबंधन की झोली में चले जाएंगे, लेकिन चुनाव परिणाम में ऐसा प्रभाव भी दिखा. उलटे शिअद को इस समर्थन के चलते अपने पारंपरिक पंथक वोटरों की नाराजगी झेलनी पड़ी है, जो मतदाताओं से बातचीत में उभर कर सामने आई.
मजबूत विकल्प बनकर उभरी आप
अब तक पंजाब की जनता के सामने कांग्रेस और अकाली दल के रूप में दो विकल्प होते थे. पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी आप ने सबसे ज्यादा शिअद को ही नुकसान पहुंचाया. प्रचार के दौरान साफ तौर से दिखा कि जनता आप को एक मजबूत विकल्प मान रही है. सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा सरकार पर लगे आरोपों ने भी 'आप' को मिलते भरोसे में इजाफा किया है.
नोट: यह खबर शुरआती रुझानों पर आधारित है.
ड्रग्स रहा मुख्य मुद्दा
पंजाब चुनाव में ड्रग्स और नशोखारी मुख्य वजह रही. मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे और उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर लगातार आरोप लगते रहे कि उन्हीं के संरक्षण में ड्रग्स तस्करों ने इस राज्य में अपने पांव जमा लिए. मुख्य प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के नेता रैलियों और भाषणों के जरिए लोगों को यह समझाने की कोशिश करते रहे कि पाकिस्तान से ड्रग्स भेजे जा रहे ड्रग्स को बादल सरकार नहीं रोक पा रही है. पिछले 10 साल में ड्रग्स के चलते सैंकड़ों युवाओं की मौत के मामले सामने आए. इस बात से खासकर ग्रामीण इलाके के लोग काफी नाराज दिखे. अप्रवासी पंजाबियों को भी लगा कि अकाली सरकार की नाकामी के चलते उनके गांव और परिवार के लोग नशे की चपेट में आते जा रहे हैं. इन हमलों के जवाब में बादल सरकार कोई सटीक तर्क नहीं दे पाई.
अप्रवासी भारतीयों की बादल सरकार से नाराजगी
इस बार के पंजाब चुनाव में अप्रवासी पंजाबियों की काफी दखल दिखी. बड़ी संख्या में अप्रवासी पंजाबी अपने खर्चे पर राज्य में लौटे और बादल सरकार के खिलाफ प्रचार किया. अप्रवासी आरोप लगाते रहे कि बादल सरकार में बड़े पैमाने पर जमीनों पर कब्जे हुए. उनका कहना था कि वे विदेशों में पैसे कमाने जाते हैं, यहां उनकी जमीन-जायदादों पर कब्जे हो रहे हैं. अप्रवासी ये भी कहते रहे कि वे चाह कर भी राज्य में निवेश नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इस काम में भी उन्हें बहुत दिक्कतें आती हैं. इसके अलावा उनका आरोप रहा कि बादल सरकार ने अप्रवासी पंजाबियों के लिए पिछले 10 साल में कोई बड़ा काम नहीं किया.
सुखबीर सिंह बादल की मनमानी
शिअद-बीजेपी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री तो प्रकाश सिंह बादल रहे, लेकिन असली कमान उनके बेटे सुखबीर बादल के हाथों में रही. सरकार में सहयोगी बीजेपी भी आरोप लगा रही है कि अगर गठबंधन की हार होती है तो इसके लिए केवल और केवल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल और उनकी नीतियां ही जिम्मेदार होंगी. कहा जाता है कि दूसरी बार के कार्यकाल में सुखबीर बादल पूरी तरीके से जनता से दूर हो गए. सरकार के मंत्री लोगों की तकलीफें बिल्कुल नहीं सुनी. इस सरकार के दूसरे कार्यकाल में व्यापारियों को उजाड़ने का काम किया. सुखबीर सिंह बादल ने मनमाने तरीके से फैसले लिए.
गंवाया नवजोत सिंह सिद्धू का साथ
पंजाब की राजनीति में क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू की खास दखल मानी जाती है. सिद्धू की वजह से न केवल रैलियों में भीड़ जुटती है, बल्कि उनके नाम पर खासे वोट भी बरसते हैं. चुनाव से ठीक पहले सिद्धू दंपति बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस में चले गए. इसका भी चुनाव में बादल सरकार को खास नुकसान उठाना पड़ा.
10 साल एक सरकार से ऊब चुकी थी जनता
जब भी कोई पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रहती है तो एक स्वभाविक प्रक्रिया के तहत वोटरों के एक धड़ा उससे नाराज होता है. लोग बदलाव चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि नई पार्टी सत्ता में आएगी तो वह कुछ बेहतर काम करेगी. शिअद-बीजेपी गठबंधन भी पिछले 10 साल से पंजाब में सत्ता में थी, इसलिए जनता बदलाव चाह रही थी.
गुर्जर और दलित वोटरों का बादल से मोह टूटा
पंजाब के मालबा क्षेत्र गुर्जर और दलित बहुल इलाका है. ये दोनों लंबे समय से बादल परिवार पर भरोसा जताते आए है. इस बार के चुनाव में गुर्जर और दलित वोटरों का ज्यादा झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ देखा गया. शिअद के नाराज पंथक वोटर भी कांग्रेस और आप की ओर जाते दिखाई दिए हैं. डेरा सच्चा सौदा की ओर से इन चुनावों में शिअद-भाजपा गठबंधन को समर्थन दिए जाने से मालवा क्षेत्र में 35 लाख से अधिक डेरा प्रेमियों के वोट गठबंधन की झोली में चले जाएंगे, लेकिन चुनाव परिणाम में ऐसा प्रभाव भी दिखा. उलटे शिअद को इस समर्थन के चलते अपने पारंपरिक पंथक वोटरों की नाराजगी झेलनी पड़ी है, जो मतदाताओं से बातचीत में उभर कर सामने आई.
मजबूत विकल्प बनकर उभरी आप
अब तक पंजाब की जनता के सामने कांग्रेस और अकाली दल के रूप में दो विकल्प होते थे. पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी आप ने सबसे ज्यादा शिअद को ही नुकसान पहुंचाया. प्रचार के दौरान साफ तौर से दिखा कि जनता आप को एक मजबूत विकल्प मान रही है. सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा सरकार पर लगे आरोपों ने भी 'आप' को मिलते भरोसे में इजाफा किया है.
नोट: यह खबर शुरआती रुझानों पर आधारित है.
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