मायावती ने वर्ष 1977 में दलित नेता कांशीराम से मिलने के बाद पूर्णकालिक राजनीति में आने का निश्चय किया था.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के लिए यह विधानसभा चुनाव अस्तित्व की लड़ाई है.
कमजोर और दलित वर्गों के उत्थान का चेहरा बन चुकीं मायावती पहली बार बीएसपी के टिकट पर 1984 में कैराना से चुनावी अखाड़े में उतरी थीं. 1985 में उन्होंने बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से चुनाव लड़ा. पहली बार 1989 में उन्होंने बिजनौर से 8,879 मतों से लोकसभा चुनाव जीता और संसद पहुंचीं. वर्ष 1994 में मायावती पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनीं. 1996 के लोकसभा चुनाव में वह दो सीटों पर विजयी हुईं और उन्होंने हरोरा को चुना.
सख्त शासक की छवि वाली मायावती उत्तर प्रदेश के इतिहास में चार बार मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाली वह पहली नेता हैं. मायावती पहली बार जून, 1995 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़कर भाजपा एवं अन्य दलों के बाहरी समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं थीं और तब उनका कार्यकाल महज चार महीने का था. वह भारत की पहली महिला दलित मुख्यमंत्री थीं. वह दूसरी बार 1997, तीसरी बार 2002 में और चौथी बार वर्ष 2007 में मुख्यमंत्री बनीं.
'बहन जी' के नाम से मशहूर दलित नेता मायावती ने वर्ष 1977 में दलित नेता कांशीराम से मिलने के बाद पूर्णकालिक राजनीति में आने का निश्चय कर लिया था. वर्ष 2006 में कांशीराम के निधन के बाद मायावती बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष बन गई थीं.
लंबे राजनीतिक सफर में मायावती का नाता कई विवादों से भी रहा है. साल 2002 में उनका नाम ताज कॉरिडोर मामले में आया. उन पर 175 करोड़ की परियोजना में बिना पर्यावरण विभाग की इजाजत के ही धनराशि जारी करने के आरोप लगे. सीबीआई ने चार्जशीट भी दाखिल की पर 2007 में राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने केस चलाने से इनकार कर दिया. इसके अलावा मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का भी मुकदमा चला. मायावती का जन्मदिवस हर बार ही बड़े आयोजन के रूप में मनाया जाता है, जो विवादों का कारण भी बना है.
एक प्रशासक के रूप में 'बहन जी' का तेवर हमेशा उग्र रहा है. मायावती ने बसपा से दलित, पिछड़े वर्गों के अलावा ब्राह्मण व मुस्लिम वर्ग को भी जोड़ा और सोशल इंजानियरिंग का फॉर्मूला अपनाया. वर्ष 2007 की जीत इसी का नतीजा थी. पार्टी को 2007 के विधानसभा में 206 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला था.
कमजोर और दलित वर्गों के उत्थान का चेहरा बन चुकीं मायावती पहली बार बीएसपी के टिकट पर 1984 में कैराना से चुनावी अखाड़े में उतरी थीं. 1985 में उन्होंने बिजनौर और 1987 में हरिद्वार से चुनाव लड़ा. पहली बार 1989 में उन्होंने बिजनौर से 8,879 मतों से लोकसभा चुनाव जीता और संसद पहुंचीं. वर्ष 1994 में मायावती पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनीं. 1996 के लोकसभा चुनाव में वह दो सीटों पर विजयी हुईं और उन्होंने हरोरा को चुना.
सख्त शासक की छवि वाली मायावती उत्तर प्रदेश के इतिहास में चार बार मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाली वह पहली नेता हैं. मायावती पहली बार जून, 1995 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़कर भाजपा एवं अन्य दलों के बाहरी समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं थीं और तब उनका कार्यकाल महज चार महीने का था. वह भारत की पहली महिला दलित मुख्यमंत्री थीं. वह दूसरी बार 1997, तीसरी बार 2002 में और चौथी बार वर्ष 2007 में मुख्यमंत्री बनीं.
'बहन जी' के नाम से मशहूर दलित नेता मायावती ने वर्ष 1977 में दलित नेता कांशीराम से मिलने के बाद पूर्णकालिक राजनीति में आने का निश्चय कर लिया था. वर्ष 2006 में कांशीराम के निधन के बाद मायावती बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष बन गई थीं.
लंबे राजनीतिक सफर में मायावती का नाता कई विवादों से भी रहा है. साल 2002 में उनका नाम ताज कॉरिडोर मामले में आया. उन पर 175 करोड़ की परियोजना में बिना पर्यावरण विभाग की इजाजत के ही धनराशि जारी करने के आरोप लगे. सीबीआई ने चार्जशीट भी दाखिल की पर 2007 में राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने केस चलाने से इनकार कर दिया. इसके अलावा मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का भी मुकदमा चला. मायावती का जन्मदिवस हर बार ही बड़े आयोजन के रूप में मनाया जाता है, जो विवादों का कारण भी बना है.
एक प्रशासक के रूप में 'बहन जी' का तेवर हमेशा उग्र रहा है. मायावती ने बसपा से दलित, पिछड़े वर्गों के अलावा ब्राह्मण व मुस्लिम वर्ग को भी जोड़ा और सोशल इंजानियरिंग का फॉर्मूला अपनाया. वर्ष 2007 की जीत इसी का नतीजा थी. पार्टी को 2007 के विधानसभा में 206 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला था.
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