नई दिल्ली:
भारत के पास ऐसी पनडुब्बी है जिसे hole in the water (पानी में छेद) के नाम से जाना जाता है और जो अपनी चाल ऐसे रखती है कि दुनिया की तमाम नेवी के उपकरण उसकी आहट पहचान नहीं पाते।
भारतीय नौसेना की अग्रणी सुरक्षा पंक्ति में रही 'किलो' क्लास की ये पनडुब्बी
रूस में बनी 'किलो' क्लास की ये पनडुब्बी सालों तक भारतीय नौसेना की अग्रणी सुरक्षा पंक्ति में गिनी जाती रही है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में किसी दुश्मन के जहाज को बड़ी ही आसानी से पहचानने वाली यह पनडुब्बी भारतीय नौसेना के लिए बहुत ही खास है।
सालों से भारतीय नौसेना ने किसी भी दूसरी नौसेना के साथ साझे युद्धाभ्यास में भी इस पनडुब्बी के लिए कोई समझौता नहीं किया। किसी और नौसेना के जवानों को इस 'किलो' क्लास की पनडुब्बी में जाने की इजाजत नहीं दी। आज भी इस प्रकार की नौ पनडुब्बी भारतीय नौसेना में कार्यरत हैं।
इस पनडुब्बी की आवाज की तकनीक खास है
नौसेना का तर्क रहा है कि विदेशी नौसेना को इसके बारे में किसी प्रकार की जानकारी हासिल न होने देने के ऐसी इजाजत नहीं दी गई। नौसेना ये नहीं चाहती कि किसी भी प्रकार से इस पनडुब्बी की आवाज की तकनीक को कोई और न हासिल कर पाए। नेवी के इंटेलिजेंस में इस तकनीक को सोने की खान के समान सुरक्षित रखा जाता रहा है। ऐसा न करने देने के पीछे नेवी का तर्क है कि अगर दूसरी नौसेना को इसके आवाज के नमूने और सूक्ष्म जानकारी मिल जाती है तो वह इस आहट से इसकी मौजूदगी पहचानने लगेंगे, जो कि नौसेना नहीं चाहती थी।
पहली बार युद्धाभ्यास में ये पनडुब्बी हो रही है शामिल
अब बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी और जापानी नौसेना के साथ जो विश्वास का नया आयाम हासिल हुआ है, वैसे माहौल में भारतीय नौसेना युद्धाभ्यास में इस किलो स्तर की पनडुब्बी को उतारने को तैयार हो गई है।
उल्लेखनीय है कि चीन के पास इस प्रकार की 12 पनडुब्बियां हैं। इनमें से 10 उन पनडुब्बियों को नया वर्जन है जो 1987 तक भारतीय नौसेना में प्रयुक्त होती रही हैं।
एनडीटीवी को जानकारी मिली है कि बुधवार से शुरू हो रहे इस प्रकार के युद्धाभ्यास में भारतीय पनडुब्बी आईएनएस सिंधुध्वज को यह काम दिया गया है कि वह अन्य युद्धपोतों और पनडुब्बियों को लक्षित इलाके में पकड़े।
हिस्सा लेने वाले सभी जहाजों को यह आदेश है कि वह चिह्नित 'दुश्मन' की पनडुब्बी या जहाज को पहचाने, इससे पहले कि वह आपको पकड़ ले।
इस युद्धाभ्यास में भारतीय कमांडरों के हक में यह बात भी जाती है कि वह बंगाल की खाड़ी को अच्छे से पहचानते हैं।
सिंधुध्वज के कमांडर का मानना है कि बंगाल की खाड़ी के खारेपन, पानी के तापमान की वजह से इस पनडुब्बी को पकड़ पाना इतना आसान नहीं है। इतना ही नहीं, भारतीय नौसेना के मुफीद तैयार यहां का सोनार सिस्टम भी इनकी मदद करेगा।
अमेरिका का थियोडोर रूसवेल्ट आया मैदान में
इस युद्धाभ्यास में अमेरिका की परमाणु ऊर्जा सम्पन्न 104,000 टन की थियोडोर रूसवेल्ट भी हिस्सा ले रही है जिसमें करीब 90 लड़ाकू विमान एक साथ रुक सकते हैं।
जापान ने 2012 में अपनी नौसेना में शामिल किए गए पनडुब्बी अकिजू को इस युद्धाभ्यास के लिए भेजा है। बता दें कि यह युद्धाभ्यास ऐसे समय हो रहा है जब अमेरिका का एशिया-पैसेफिक क्षेत्र की ओर झुकाव देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियों का जापान और अमेरिका विरोध करते रहे हैं।
भारतीय नौसेना की अग्रणी सुरक्षा पंक्ति में रही 'किलो' क्लास की ये पनडुब्बी
रूस में बनी 'किलो' क्लास की ये पनडुब्बी सालों तक भारतीय नौसेना की अग्रणी सुरक्षा पंक्ति में गिनी जाती रही है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में किसी दुश्मन के जहाज को बड़ी ही आसानी से पहचानने वाली यह पनडुब्बी भारतीय नौसेना के लिए बहुत ही खास है।
सालों से भारतीय नौसेना ने किसी भी दूसरी नौसेना के साथ साझे युद्धाभ्यास में भी इस पनडुब्बी के लिए कोई समझौता नहीं किया। किसी और नौसेना के जवानों को इस 'किलो' क्लास की पनडुब्बी में जाने की इजाजत नहीं दी। आज भी इस प्रकार की नौ पनडुब्बी भारतीय नौसेना में कार्यरत हैं।
इस पनडुब्बी की आवाज की तकनीक खास है
नौसेना का तर्क रहा है कि विदेशी नौसेना को इसके बारे में किसी प्रकार की जानकारी हासिल न होने देने के ऐसी इजाजत नहीं दी गई। नौसेना ये नहीं चाहती कि किसी भी प्रकार से इस पनडुब्बी की आवाज की तकनीक को कोई और न हासिल कर पाए। नेवी के इंटेलिजेंस में इस तकनीक को सोने की खान के समान सुरक्षित रखा जाता रहा है। ऐसा न करने देने के पीछे नेवी का तर्क है कि अगर दूसरी नौसेना को इसके आवाज के नमूने और सूक्ष्म जानकारी मिल जाती है तो वह इस आहट से इसकी मौजूदगी पहचानने लगेंगे, जो कि नौसेना नहीं चाहती थी।
पहली बार युद्धाभ्यास में ये पनडुब्बी हो रही है शामिल
अब बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी और जापानी नौसेना के साथ जो विश्वास का नया आयाम हासिल हुआ है, वैसे माहौल में भारतीय नौसेना युद्धाभ्यास में इस किलो स्तर की पनडुब्बी को उतारने को तैयार हो गई है।
उल्लेखनीय है कि चीन के पास इस प्रकार की 12 पनडुब्बियां हैं। इनमें से 10 उन पनडुब्बियों को नया वर्जन है जो 1987 तक भारतीय नौसेना में प्रयुक्त होती रही हैं।
एनडीटीवी को जानकारी मिली है कि बुधवार से शुरू हो रहे इस प्रकार के युद्धाभ्यास में भारतीय पनडुब्बी आईएनएस सिंधुध्वज को यह काम दिया गया है कि वह अन्य युद्धपोतों और पनडुब्बियों को लक्षित इलाके में पकड़े।
हिस्सा लेने वाले सभी जहाजों को यह आदेश है कि वह चिह्नित 'दुश्मन' की पनडुब्बी या जहाज को पहचाने, इससे पहले कि वह आपको पकड़ ले।
इस युद्धाभ्यास में भारतीय कमांडरों के हक में यह बात भी जाती है कि वह बंगाल की खाड़ी को अच्छे से पहचानते हैं।
सिंधुध्वज के कमांडर का मानना है कि बंगाल की खाड़ी के खारेपन, पानी के तापमान की वजह से इस पनडुब्बी को पकड़ पाना इतना आसान नहीं है। इतना ही नहीं, भारतीय नौसेना के मुफीद तैयार यहां का सोनार सिस्टम भी इनकी मदद करेगा।
अमेरिका का थियोडोर रूसवेल्ट आया मैदान में
इस युद्धाभ्यास में अमेरिका की परमाणु ऊर्जा सम्पन्न 104,000 टन की थियोडोर रूसवेल्ट भी हिस्सा ले रही है जिसमें करीब 90 लड़ाकू विमान एक साथ रुक सकते हैं।
जापान ने 2012 में अपनी नौसेना में शामिल किए गए पनडुब्बी अकिजू को इस युद्धाभ्यास के लिए भेजा है। बता दें कि यह युद्धाभ्यास ऐसे समय हो रहा है जब अमेरिका का एशिया-पैसेफिक क्षेत्र की ओर झुकाव देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियों का जापान और अमेरिका विरोध करते रहे हैं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं