ओलंपिक में भारत ने वैसे तो अभी तक 35 मेडल जीते हैं, जिनमें 10 गोल्ड, 9 सिल्वर शामिल हैं, लेकिन भारतीय तीरंदाजी टीम को अभी भी अपने पहले मेडल का इंतराज है. इसके साथ ही आज तक ओलंपिक में भारत के लिए कोई भी महिला एथलीट मेडल नहीं जीत पाई है, लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी भिन्न जरुर हो सकती है अगर दीपिका कुमारी दमदार प्रदर्शन करती है. तीरंदाज दीपीका कुमारी इस साल मेडल जीतने की प्रवल दावेदार हैं.
पूर्व विश्व नंबर 1 दीपिका कुमारी, जो लंदन 2012 के बाद से भारत की ओलंपिक तीरंदाजी टीमों में लगातार बनी हुई हैं, अपनी चौथी ओलंपिक उपस्थिति के लिए पूरी तरह तैयार हैं. दिसंबर 2022 में मां बनने के बाद, दीपिका के पास ओलंपिक का कोटा हासिल करने के लिए काफी कम समय था, लेकिन अपने दमदार प्रदर्शन से उन्होंने ओलंपिक का टिकट हासिल किया. दीपिका की कोशिश 25 जुलाई को वूमेंस इंडिविजुअल रैंकिंग राउंड में शानदार प्रदर्शन कर, मेडल की रेस में बने रहने की होगी.
प्रेरणादायक है दीपिका की कहानी
बांस के बने उपकरणों से तीरंदाजी का अभ्यास करने से लेकर विश्व की नंबर-1 तीरंदाज बनने सफर तय करने वाली दीपिका की कहानी काफी प्रेरणादायक है. दीपिका ने यह हैरान करने वाली यात्रा की है. झारखंड के रांची के पास राम चट्टी गांव में एक छोटी सी झोपड़ी से चैंपियन तीरंदाज बनने वाली दीपिका ने 15 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहली बार अपनी छाप छोड़ी थी.
2009 में उन्होंने कैडेट विश्व चैम्पियनशिप का खिताब जीता था. इसके बाद दीपिका ने 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में, महिला व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा में और महिला रिकर्व टीम स्पर्धा में, स्वर्ण जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था. इसके बाद दीपिका ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा है. दीपिका अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 15 स्वर्ण, 20 रजत और 13 कांस्य पदक अपने नाम कर चुकी हैं.
पत्थरों से आमों को लगाया निशाना
दीपिका के बारे में कहा जाता है कि वह बचपन में तीरंदाजी का अभ्यास, पत्थर से आमों को निशाना लगाकर करती थी. दीपिका को शुरुआत में काफी संघर्ष करना पड़ा था, क्योंकि उनके पिता शिव चरण प्रजापति एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर थे. ऐसे में दीपिका को तीरंदाजी के लिए जरुरी उपकरण लेने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. कई बार ऐसा होता था कि दीपिका के परिवार को उनके उपकरण खरीदने के लिए अपने बजट से समझौता करना पड़ा था. शुरुआत में दीपिका ने बांस के बने धनुष और बाण से अभ्यास किया था.
साल 2006 में जब दीपिका टाटा तीरंदाजी अकादमी में शामिल हुईं तब उन्हें पहली बार तीरंदाजी के लिए औपचारिक जरुरी उपकरण मिले थे. ओलंपिक के अनुसार, दीपिका अपने माचा-पिता को लेकर कहती हैं,"मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं कुछ इस तरह से करूं कि मेरी तस्वीरें अखबारों में आ जाएं, और अब वे इस बात से हैरान हैं कि मैं उनसे बड़ी हो गई हूं, जिसकी उन्होंने मुझसे कभी उम्मीद नहीं की थी."
2012 में विश्व कप में जीता स्वर्ण
साल 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के बाद एशियन गेम्स में टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने वाली दीपिका 2011 विश्व कप में चार रजत पदक जीतने में सफल रही थीं. लेकिन 2012 में तुर्की में हुए विश्व कप में उन्होंने बुल्सआई मारा. दीपिका ने साल 2012 लंदन ओलंपिक में नंबर-1 तीरंदाज के रूप में हिस्सा लिया था.
इसके बाद दीपिका ने कई महीनों तक संघर्ष किया और आखिरकार सफलता उन्हें 2104 में मिली जब उन्होंने विश्व कप में टीम इवेंट में स्वर्ण जीता. दीपिका ने 2016 में वूमेंस रिकर्व इवेंट में विश्व रिकॉर्ड की बराबरी करने में सफलता पाई थी. दीपिका ने इसके बाद 2021 विश्व कप में भी स्वर्ण जीता था और टोक्यो ओलंपिक से पहले हुए विश्व कप में वो स्वर्ण पदक के करीब थी.
तीन ओलंपिक में ऐसा रहा है प्रदर्शन
दीपिका कुमारी अब तक तीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. हालांकि, वो एक बार भी मेडल जीतने में सफल नहीं हुई हैं. दीपिका का पहला ओलंपिक साल 2012 में लंदन में हुआ ओलंपिक था. हालांकि, बुखार के चलते दीपिका का प्रदर्शन काफी खराब रहा और वो पहले दौर से ही बाहर हो गई थीं.
दीपिका वुमेंस टीम में भी पहले दौर से बाहर हो गई था. लेकिन इसके बाद 2016 में हुए रियो ओलंपिक में दीपिका ने 16वें दौर में जगह बनाने में सफलता पाई थी. जबकि महिला टीम स्पर्धा में दीपिका क्वाटर फाइनल तक पहुंची थी. वहीं टोक्यो ओलंपिक में दीपिका व्यक्तिगत स्पर्धा में क्वाटर फाइनल तक पहुंची थी. दीपिका की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 2012 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्म श्री सम्मान मिला है. दीपिका के ऊपर नेटफ्लिक्स ने लेडीज फर्स्ट नामक एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है.
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