नालगोंडा:
अरुणा चार महीने से गर्भवती है... इस 22-वर्षीय युवती का पिछले साल अचानक गर्भपात हो गया था, और उसे किसी भी तरह का वज़न नहीं उठाने की सलाह दी गई थी, लेकिन नालगोंडा के सूखे, बंजर खेतों को अपनी तपिश से झुलसाने के लिए हर सुबह निकलने वाले सूरज की पहली किरण के साथ ही अरुणा घर से निकलकर लगभग 15 मिनट पैदल चलकर कुएं तक पहुंचती है... वहां वह सब्र के साथ महिलाओं की लंबी पंक्ति में खड़ी होती है, जिसमें बहुत-सी महिलाएं अरुणा से भी बड़ी उम्र की हैं... इसके बाद लगभग 20 किलोग्राम वज़न के दो बड़े-बड़े बर्तनों को सिर पर संतुलित करती हुई वह घर लौटती है...
वह भली-भांति जानती है कि यह काम उसकी सेहत को काफी नुकसान पहुंचा सकता है... डॉक्टर ने उसे चेतावनी दी थी कि उसे कोई भी भारी चीज़ कतई नहीं उठानी चाहिए... लेकिन वह बताती है, "मेरी सास का ऑपरेशन हुआ है, वह चल भी नहीं सकतीं, इसलिए कोई और चारा ही नहीं है..." सो, सूखे की विभीषिका से जूझती इस धरती की कहानी एक पंक्ति में बयान की जा सकती है - एक सीधी पंक्ति में चलती महिलाएं, जिनके सिरों पर कड़ी धूप में चमकते बर्तन दिखाई दे रहे हैं...
"पुरुष कभी मदद नहीं करते..."
अरुणा के मुताबिक, "पानी भरकर लाने में पुरुष कभी मदद नहीं करते, और उसी वजह से घर में झगड़े शुरू हो जाते हैं, क्योंकि पानी लाने में ही इतना ज़्यादा वक्त खर्च हो जाता है कि हमारे पास खाना पकाने और बच्चों की देखभाल करने जैसे घर के बाकी कामों के लिए वक्त नहीं बचता..."
अरुणा की सास मरोनी ने गांव की ज़्यादा उम्र की अधिकतर महिलाओं की तरह ही गांव के पास मौजूद स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी करवाई थी... अब महिलाएं हड्डियों को भुरभुरा कर देने वाले हॉरमोनल बदलावों की शिकायत करती हैं, और उनके लिए शारीरिक श्रम मुश्किल है... लेकिन उनके बेटे और पति परवाह नहीं करते...
मरोनी बताती हैं, "आप उनसे एक छोटा-सा बर्तन भी पानी भरकर लाने के लिए कहते हैं, वे नहीं लाते..."
पालतू पशु भी रह जाते हैं प्यासे...
सूखे से पीड़ित इलाकों में ज़िन्दा रहने के लिए पालतू पशुओं से भी काफी योगदान मिलता है, सो, वे बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन यहां वे भी प्यासे हैं... सो, अरुणा अपनी चार-वर्षीय बेटी वैशाली के साथ कमर कसकर तैयार है अपने पालतू जानवरों को पानी के जोहड़ की तरफ ले जाने के लिए, जो उनके घर से लगभग दो किलोमीटर दूर है...
तेलंगाना लगातार तीसरे साल सूखे का शिकार हुआ है... वर्ष 2014 के जून माह में आंध्र प्रदेश से कटकर नया राज्य बनने के बाद से अब तक 2,100 से भी ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं... कर्ज़ बढ़ते जा रहे हैं, परिवार भूखे मर रहे हैं, और यहां की धरती इन लोगों की तकलीफों से कतई पसीजती नहीं दिख रही है...
वह भली-भांति जानती है कि यह काम उसकी सेहत को काफी नुकसान पहुंचा सकता है... डॉक्टर ने उसे चेतावनी दी थी कि उसे कोई भी भारी चीज़ कतई नहीं उठानी चाहिए... लेकिन वह बताती है, "मेरी सास का ऑपरेशन हुआ है, वह चल भी नहीं सकतीं, इसलिए कोई और चारा ही नहीं है..." सो, सूखे की विभीषिका से जूझती इस धरती की कहानी एक पंक्ति में बयान की जा सकती है - एक सीधी पंक्ति में चलती महिलाएं, जिनके सिरों पर कड़ी धूप में चमकते बर्तन दिखाई दे रहे हैं...
"पुरुष कभी मदद नहीं करते..."
अरुणा के मुताबिक, "पानी भरकर लाने में पुरुष कभी मदद नहीं करते, और उसी वजह से घर में झगड़े शुरू हो जाते हैं, क्योंकि पानी लाने में ही इतना ज़्यादा वक्त खर्च हो जाता है कि हमारे पास खाना पकाने और बच्चों की देखभाल करने जैसे घर के बाकी कामों के लिए वक्त नहीं बचता..."
अरुणा की सास मरोनी ने गांव की ज़्यादा उम्र की अधिकतर महिलाओं की तरह ही गांव के पास मौजूद स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी करवाई थी... अब महिलाएं हड्डियों को भुरभुरा कर देने वाले हॉरमोनल बदलावों की शिकायत करती हैं, और उनके लिए शारीरिक श्रम मुश्किल है... लेकिन उनके बेटे और पति परवाह नहीं करते...
मरोनी बताती हैं, "आप उनसे एक छोटा-सा बर्तन भी पानी भरकर लाने के लिए कहते हैं, वे नहीं लाते..."
पालतू पशु भी रह जाते हैं प्यासे...
सूखे से पीड़ित इलाकों में ज़िन्दा रहने के लिए पालतू पशुओं से भी काफी योगदान मिलता है, सो, वे बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन यहां वे भी प्यासे हैं... सो, अरुणा अपनी चार-वर्षीय बेटी वैशाली के साथ कमर कसकर तैयार है अपने पालतू जानवरों को पानी के जोहड़ की तरफ ले जाने के लिए, जो उनके घर से लगभग दो किलोमीटर दूर है...
तेलंगाना लगातार तीसरे साल सूखे का शिकार हुआ है... वर्ष 2014 के जून माह में आंध्र प्रदेश से कटकर नया राज्य बनने के बाद से अब तक 2,100 से भी ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं... कर्ज़ बढ़ते जा रहे हैं, परिवार भूखे मर रहे हैं, और यहां की धरती इन लोगों की तकलीफों से कतई पसीजती नहीं दिख रही है...
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