साल 2014 के चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल करते हुए 73 सीटों पर काबिज़ हुई थी. इस बार भी दावा 73 नहीं बल्कि 74 सीटों का है. लेकिन सीट दावों से नहीं, समीकरणों से मिलती है और इस दफे सपा-बसपा के गठबंधन ने बीजेपी के इस समीकरण को गड़बड़ा दिया हैं. यही वजह से सीएम योगी आदित्यनाथ ने अब दलित-यादव यानी 'DY' फॉर्मूले को तोड़ने में जुट गए हैं. इसीलिए कभी दलित के चौखट पर तो कभी यादवों के मठ में अपनी आमद दर्ज करा रहे हैं. विवादित बयान के बाद चुनाव आयोग के तीन दिन के प्रतिबंध के बाद से ही सीएम योगी आदित्यनाथ भले ही सीधे चुनाव प्रचार न कर रहे हों पर शहर-शहर मंदिर और मठों का दौरा कर संदेश जरूर दे रहे हैं. लखनऊ में उसके बाद वे अयोध्या पहुंचे जहां उन्होंने मंदिर दर्शन के बाद दलित के घर भोजन कर एक बड़ा सन्देश देने की कोशिश की. गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में बीजेपी बहुत हद तक दलितों के वोट में सेंध लगाने में कामयाब हो गई थी इसे अपने पाले में बरकरार रखने के लिये बीजेपी लगातार कवायद भी करती रही. दलितों के भगवान संत रविदास के मंदिर में पीएम से लेकर सीएम तक न सिर्फ कई बार आ चुके है बल्कि यहां लंगर चखकर इस इलाके के विकास के लिए भी कई योजनाओं की घोषणा भी की है. अब एक बार फिर योगी दलितों के घर भोजन कर उनसे नज़दीकी बढ़ाने की अपनी मुहिम शुरू की है.
दलितों के लिए बीजेपी की ये रणनीति कोई नई नहीं है साल 2014 का इलेक्शन जब ऐसे ही बीजेपी के शीर्ष नेताओं की तस्वीर दलितों के घर भोजन करने की दिखाई पड़ती थी. इस बार इसकी शुरुआत सूबे में योगी ने की है. इस बार सपा-बसपा का गठबंधन है लिहाजा बीजेपी की निगाह यादव वोट में भी सेंध लगाने की है. यही वजह है कि प्रतिबंध के तीसरे दिन वाराणसी पहुंचे योगी ने अपने दौरे की शुरुआत बजरंग बली के दर्शन से तो की लेकिन इसके बाद योगी आदित्यनाथ यादव समाज के सबसे बड़े मठ गढ़वाघाट पहुंचे. आपको बता दें कि वाराणसी में ये वह मठ है जहां यादव समाज की आस्था ज़्यादा है इसे वो भगवान कृष्ण के वंशज के रूप में देखते हैं. यहां पहुंचकर योगी ने गाय को हरा चारा और गुड़ खिलाया और आश्रम के महंत के साथ गुफ्तगू की.
यूपी के अंदर अभी तक यादवों पर समाजवादी पार्टी का एकाधिकार रहा है. बीजेपी को लगता है कि जिस तरह से उसने दलितों को अपने साथ जोड़ा था, उसी तरह यादवों को भी जोड़ सकती है. साल 2014 में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला लाते हुए दलितों के साथ पिछड़े वर्ग को अपने साथ जोड़ा. अब बारी खासतौर से यादव समाज की है, जो बीजेपी से अब तक दूर रही है. बीजेपी इस मिथक को तोड़ना चाहती है और उसकी उम्मीद गढ़वाघाट आश्रम पर टिकी है. बीजेपी को ये बात बखूबी मालूम है कि सपा-बसपा गठबंधन के तहत अगर यादव पूरी तरह से गोलबंद हो गए तो कई सीटों पर उसका समीकरण गड़बड़ा सकता है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या यादव समाज बीजेपी को गले लगाएगा क्या सूबे के मुखिया की ये कवायद प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन पर असर डालेगा. इसका जवाब तो चुनाव बाद ही पता चल पायेगा फिलहाल तो बीजेपी अपने हर दांव को खेल रही है.
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