
- दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर होता है हार्ट फेल्यर
- भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं हार्ट फेल्यर के मामले
- लाइफस्टाइल में बदलाव लाना है बेहद जरूरी
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दूसरी ओर हार्ट फेल्यर (दिल का कमजोर हो जाना) भारत में महामारी की तरह फैलता जा रहा है जिसकी मुख्य वजह दिल की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना है. 29 सितंबर को 'वर्ल्ड हार्ट डे' के मौके पर विशेषज्ञों ने कहा कि अब तक हार्ट फेल्यर की समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था. इसलिए लोग इसके लक्षणों को पहचान नहीं पाते थे. कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. शिरीष (एम. एस.) हिरेमथ के मुताबिक, 'भारत में तेजी से हार्ट फेल्यर के बढ़ते मामलों को देखते हुए, इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. ह
म सभी को एकजुट होकर इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करना चाहिए.' उन्होंने बताया कि हार्ट फेल्यर को अमूमन हार्ट अटैक ही समझ लिया जाता है.
डॉ शिरीष ने कहा, 'हार्ट फेल्यर को समझना जरूरी है, अक्सर लोगों को लगता है कि हार्ट फेल्यर का मतलब दिल का काम करना बंद कर देने से है जबकि ऐसा कतई नहीं है. हार्ट फेल्यर में दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं जिससे वह रक्त को प्रभावी तरीके से पंप नहीं कर पाता. इससे ऑक्सीजन और जरूरी पोषक तत्वों की गति सीमित हो जाती है.' कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सी ए डी), हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट वॉल्व बीमारी, कार्डियोमायोपैथी, फेफड़ों की बीमारी, डायबिटीज, मोटापा, शराब पीने, दवाइयों का सेवन और फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हार्ट फेल होने का खतरा रहता है.
डॉक्टर शिरीष ने कहा कि इस बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरुकता बढ़ाना बहुत जरूरी है. उन्होंने बताया कि सांस लेने में तकलीफ, थकान, टखनों, पैरों और पेट में सूजन, भूख न लगना, अचानक वजन बढ़ना, दिल की धड़कन तेज होना, चक्कर आना और बार-बार पेशाब जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं. दिल्ली एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. संदीप मिश्रा ने कहा, 'पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में यह बीमारी एक दशक पहले पहुंच गई है. बीमारी होने की औसत उम्र 59 साल है. बीमारी की जानकारी न होना, ज्यादा पैसे खर्च होना और बुनियादी ढ़ांचे की कमी के कारण हार्ट फेल्यर के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है. डॉ मिश्रा के अनुसार, साल 1990 से 2013 के बीच हार्ट फेल्यिर के मामलों में करीब 140 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है. लाइफस्टाइल में बदलाव और तनाव के कारण युवक भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं. अमेरिका और यूरोप की तुलना में भारत में रोगी 10 साल युवा हैं.

डॉ मिश्रा ने कहा कि लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि इस बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज न करने और समय रहते बीमारी का पता लगा कर इलाज शुरू करने और लाइफस्टाइल में बदलाव से इस बीमारी का खतरा दूर हो सकता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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