एस जयशंकर को सीधे केंद्रीय मंत्री का पद मिला है, ये अपने आप में पहला मौका है लेकिन 10 साल पहले इस तरह कैबिनेट में जगह पाने वाले शख्स नंदन नीलेकणि हो सकते थे. उन्हें राहुल गांधी ने मानव संसाधन विकास मंत्री का पद देने के लिए बुलाया था. हालांकि बिल्कुल आखिरी समय में सोनिया गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पुनर्विचार के बाद इस प्रस्ताव को वापस ले लिया गया जबकि नीलेकणि दिल्ली के लिए उड़ान भरने को बिल्कुल तैयार थे. नीचे दिया गया पुस्तक का अंश पढ़ें...
हमारी उनसे बेंगलुरु में एक कॉन्फ्रेंस रूम में मुलाकात होती है. उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे बेंगलुरु के शानदार मौसम ने आधार विवाद से उठी गर्मी को और उसके प्रकोप को खत्म कर दिया है. नंदन पर आधार विरोधी कार्यकर्ताओं द्वारा बनाए गए सर्विलांस फ्रेंकस्टीन बनाने का आरोप था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निर्णायक रूप से फैसला सुनाया और आज नंदन को अपने मिशन के पूरे होने का बड़ा संतोष है, जो एक सरकार के तहत शुरू हुआ और उस सरकार में जाकर पूरा हुआ जो पिछली सरकार से वैचारिक तौर पर विपरीत है. ये पूरा सफर एक फोन कॉल से शुरू हुआ.
नंदन कहते हैं, 2009 में मुझे राहुल गांधी का फोन आया. उन्होंने मुझे नतीजों वाले दिन फोन किया था, जब कांग्रेस ने और ज्यादा सीटों के साथ वापसी की थी. यह यूपीए सरकार के लिए अप्रत्याशित दूसरी जीत थी, जिसमें कांग्रेस ने अकेले 206 सीटें हासिल की थीं. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं भारत का मानव संसाधन विकास मंत्री बनने का इच्छुक हूं?' हमें कोई ऐसा चाहिए जो बाहर से हो. मैंने अपने सहयोगियों से बात की और उन सभी ने जवाब दिया, ''ठीक है यार.'' फिर मैंने उनसे कह दिया कि वे तैयार हैं. नए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण के दिन मैं बेंगलुरु में था. अब मुझे इन फंडों के बारे में नहीं पता था कि राजनीति के लिए आपको दिल्ली में डटे रहना पड़ेगा और अपने नाम के ऐलान होने की प्रतीक्षा करनी होगी. सुबह 11 बजे मुझे यह पूछने के लिए फोन आया कि क्या मैं दिल्ली में हूं.
मैं ठहरा एक आईटी वाला बंदा. मैंने कहा 'नहीं.' मैं बेंगलुरु में था. उन्होंने पूछा कि क्या मैं शपथ ग्रहण के लिए शाम 5 बजे तक आ सकता हूं तो मैंने उन्हें बताया कि मेरे पास प्राइवेट जेट नहीं है. इसके बाद मैं दिल्ली जाने लिए कोई विमान देखने लगा. मजेदार बात ये है कि एस.एम. कृष्णा, जिन्हें विदेश मंत्री के पद के लिए चुना गया था, वे दिल्ली जा रहे थे. वह भी बेंगलुरु में थे लेकिन उनका घर हवाई अड्डे से बहुत पास था, इसलिए वे पहुंचने में कामयाब रहे. और इस बीच में हवाई जहाज की व्यवस्था करने की कोशिश में जुटा था. नंदन ने बताते हैं, 'राहुल गांधी ने फिर फोन किया और कहा माफ कीजिए, आपको शामिल नहीं किया जा रहा है' बाद में मुझे लगा कि शायद सोनिया गांधी को लगा होगा कि मैं कॉरपोरेट वाला आदमी और हूं और गरीबों की समस्याओं को नहीं समझूंगा. वहीं, मनमोहन सिंह को लगा होगा कि मैं एक टेक्नोक्रैट हूं, राजनेता नहीं. लिहाजा एचआरडी मंत्रालय संभालना मेरे लिए काफी राजनैतिक हो जाएगा. यह एक प्रमुख काम था- वे इसे बेंगलुरु के मामूली से आदमी को नहीं देना चाहते थे.' नंदन हंस पड़े. 'ये राहुल का विचार था, लेकिन इसे ठुकरा दिया गया. मैं अपने पुराने काम पर लौट आया.'
किताब में, नंदन नीलेकणि ने यह भी बताया कि आधार योजना कैसे विकसित हुई और उन्हें नरेंद्र मोदी समेत देश भर के लोगों को कैसे समझाना पड़ा.
नंदन तब के मुख्य विपक्षी नेताओं भाजपा के अरुण जेटली और सुषमा स्वराज से मुलाकात को याद करते हैं और कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी चुनौती गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जो संयोग कहें या भाग्य, वो एक दिन के आधार का सबसे बड़ा पैरोकार बन गए.
नंदन याद करते हैं, 'भले ही गुजरात में सब कुछ तैयार था, मुख्यमंत्री मोदी ने रोलआउट को मंजूरी नहीं दी थी. तब मुझे उनसे मिलने का संदेश मिला और इसलिए मैं गुजरात गया.' मैंने सोचा, "मुझे इस प्रोजेक्ट को सफल बनाना है, मैं किसी से भी मिल सकता हूं. उन्होंने कहा, ''बैठक आधे घंटे के लिए निर्धारित थी जो डेढ़ घंटे चली, और फिर मुख्यमंत्री ने नंदन नीलेकणि के साथ तस्वीरें लीं, जिसे उन्होंने बाद में शेयर भी गया.
'मुझे लगता है कि वे लोगों को दिखाना चाहते थे कि मैं उनसे मिलने गया था. इसलिए, मैं उनके साथ वहां बैठा और उन्होंने मुझे अपने जीवन के सफर में 2002 दंगों पर उनके उठाए कदम, चाय वाले के रूप में अपनी शुरुआत तक, सब कुछ बताया. मेरे जाते ही उन्होंने प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी.'
मैंने पूछा, 'क्या आपको कभी निराशा हुई कि आप एक राजनीतिक खेल के बीच में फंस गए?' यह खेल है. भारत में सुधार लीनियर फैशन में नहीं होते हैं. यह दो कदम आगे-एक-कदम पीछे लेने वाली प्रक्रिया है. यह उच्च गतिविधि और पूर्ण निष्क्रियता के समय की अवधि होती है, लेकिन यही सच है. यही राजनीति की प्रकृति है. जब उच्च गतिविधि का समय होता है, तो आप यथासंभव से अधिक कर जाते हैं. वहीं जब यह निष्क्रियता में जाता है, तो आप अपना समय बिताते हैं. कुछ तो होगा. मंत्री या नौकरशाह बदल जाएंगे. यदि आप लंबा खेल खेल रहे हैं, तो आप इस प्रकार की चीजों से निपट सकते हैं.' UIDAI योजना को राजनीति से दूर रखने के लिए, नंदन और उनकी टीम ने एक ऐसा नाम भी चुना जो गैर-राजनीतिक था. 'मैं ऐसी वैसी XYZ योजना नहीं चाहता था, इसलिए हमने सावधानीपूर्वक बहुत रिसर्च की और "आधार" मिला, जिसका अर्थ है नींव; आपकी पहचान ही नींव है.'
इससे भी महत्वपूर्ण बात, 'आधार' शब्द लगभग सभी भारतीय भाषाओं में काम करता है. लेकिन राजनीतिकरण से बचने के प्रयास में, नंदन बताते हैं कि कैसे इसका एक-एक अक्षर राजनीतिक हो गया.
'योजना का नारा है "आम आदमी का अधिकार." उस समय आम आदमी पार्टी द्वारा 'आम आदमी' को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने से पहले तक यह नारा अक्सर कांग्रेस इस्तेमाल करती थी. केवल दो लोगों ने इस पर ध्यान दिया- सोनिया गांधी और नरेंद्र मोदी. जब मैं मोदी जी से मिला, तो उन्होंने कहा, "आपने कांग्रेस का नारा का क्यों प्रयोग किया है?" फिर एक दिन, श्रीमती गांधी ने मुझे बताया कि उनका मानना था कि मैं आधार पर भाजपा के रंगों का इस्तेमाल कर रहा था, जो लोगों को भेजा जा रहा था. इस पर मैंने कहा कि यह तिरंगे के रंग हैं. मुझे उन्हें दिखाने के लिए नमूने लेने थे कि वे वास्तव में राष्ट्रीय ध्वज के रंग थे. अब यहां एक अरब लोगों के लिए एक कार्ड जा रहा था, तो जाहिर है कि एक व्यक्ति इसके लिखावट, प्रतीकों और रंगों के बारे में चिंतित होगा. वह कहते हैं, फिर भी पूरे सिस्टम में मेरे लिए आश्चर्य की बात ये थी कि इस बारे में केवल सोनिया गांधी और मोदी जी ने इसके बारे में पूछा!
"...... और फिर नंदन नीलेकणि और आधार के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ आया. 2014 का चुनाव और अपनी घरेलू सीट, बैंगलोर दक्षिण से एक सांसद का चुनाव लड़ने का उनका फैसला. वह भाजपा के स्वर्गीय अनंत कुमार से चुनाव हार गए. नंदन की चुनावी हार संभवत: किसी चीज में उनकी पहली असफलता थी. यह अनुभव उन्होंने बेबाकी से सुनाया. यहां तक कि इसमें आधार की भी भूमिका थी.
'2014 के चुनावों में, मुझे भाजपा ने 'आधार मैन' के रूप में सबके सामने लाया - यहां तक कि मोदी जी ने भी आकर मेरे और आधार के खिलाफ अभियान चलाया. खैर यही राजनीति है.'
व्यक्तिगत हार के अलावा, नंदन और आधार के लिए उनके विजन के लिए यूपीए की हार ज्यादा चिंताजनक थी. वह याद करते हैं, 'मैं घबरा गया क्योंकि आधार का कोई और पैरोकार नहीं था. विपक्ष में बैठी बीजेपी की की आधिकारिक स्थिति इसे खत्म करने की थी.
गृह मंत्रालय, जिससे में अब तक दूर ही रहा था, ने अचानक अवसर देखा और दखल देना शुरू कर दिया. अंतत: मैंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और आधार व उससे देश को होने वाले फायदों के बारे में चर्चा की. तब उन्होंने मुझसे वही सामान्य से सवाल पूछे, जिनमें से एक यह था कि अगर बांग्लादेशियों को ये मिल गए तो? मैंने उन्हें बताया कि यह कोई नागरिकता नंबर नहीं है बल्कि पहचान (आईडी) नंबर है. मैंने उन्हें बताया कि इससे सरकारकी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी जिससे सरकार को काफी बचत होगी और भ्रष्टाचार भी कम होगा. उस वक्त, सौभाग्य से तेल की कीमतें भी बहुत ज्यादा थीं. इसलिए सरकार बचत पर ध्यान दे रही थी. अंत में वो आधार के सबसे बड़े पैरोकार बन गए.
प्रधानमंत्री का आधार को समर्थन देना और लगभग इसे टेकओवर कर लेने के बाद अलग तरह की परेशानियां हुईं. कांग्रेस ने जल्दबाजी में इसे बंद कर दिया. राहुल गांधी के एक फोन कॉल के साथ शुरू हुई यात्रा के बाद अब कॉल करने वाले व्यक्ति खुद नंदन थे. 'मैंने उन्हें इस प्रोजेक्ट को अपनाने का आग्रह करने के लिए एक संदेश भेजा क्योंकि यह शायद यूपीए-2 की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. वे साफ तौर पर कहते हैं कि उन्हें लगता है कि कांग्रेस ने ये मौका बर्बाद कर दिया.
पेंगुइन इंडिया से अनुमति के तहत सोनिया सिंह की किताब 'डिफाइनिंग इंडिया: थ्रू देयर आइज' के अंश. किताब की प्रति के ऑर्डर करें.
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