नई दिल्ली: 
                                        पुलित्जर पुरस्कार विजेता लेखक झुम्पा लाहिड़ी ने अपनी नयी किताब में पुस्तकों के कवर का लेखकों और पाठकों के लिए क्या महत्व है, इस पर रोशनी डाली है. इसके अलावा उन्होंने लेखनी और चित्र, लेखक और डिजाइन तथा कला और वाणिज्य के जटिल संबंधों की भी व्याख्या की है.
लेखक का कोई धर्म नहीं होता: नासिरा शर्मा
पेंग्विन रैन्डम हाउस द्वारा प्रकाशित ‘‘द क्लोथिंग ऑफ बुक्स’’ में बताया गया है कि किस तरह किताबों का कवर बनता है और कवर का पाठकों और लेखकों के लिए क्या महत्व होता है.
हम किताबों के कवर का निर्णय कैसे करते हैं? क्या पुस्तकों के कवर उसी तरह से होते हैं जैसे हम कपड़े पहनना पसंद करते हैं और वे हमारे बारे में क्या बताते हैं? और आप जिस तरह से अपने लिए कपड़े चुनते हैं उससे इसकी क्या समानता है? अपनी पुस्तक में लाहिड़ी ऐसे ही सवालों का उत्तर देने का प्रयास कर रही हैं.
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                                लेखक का कोई धर्म नहीं होता: नासिरा शर्मा
पेंग्विन रैन्डम हाउस द्वारा प्रकाशित ‘‘द क्लोथिंग ऑफ बुक्स’’ में बताया गया है कि किस तरह किताबों का कवर बनता है और कवर का पाठकों और लेखकों के लिए क्या महत्व होता है.
हम किताबों के कवर का निर्णय कैसे करते हैं? क्या पुस्तकों के कवर उसी तरह से होते हैं जैसे हम कपड़े पहनना पसंद करते हैं और वे हमारे बारे में क्या बताते हैं? और आप जिस तरह से अपने लिए कपड़े चुनते हैं उससे इसकी क्या समानता है? अपनी पुस्तक में लाहिड़ी ऐसे ही सवालों का उत्तर देने का प्रयास कर रही हैं.
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