
महिलाओं में बांझपन की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. खराब लाइफस्टाइल और स्ट्रेस उनसे उनकी मां बनने की क्षमता को कम करते जा रहा है. इसी का नतीजा है कि Test Tube Baby या In vitro fertilisation की डिमांड बढ़ती जा रही है. इसी कदम में अब IUI भी बहुत पॉपुलर हो रहा है.
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आईयूआई (Intrauterine Insemination) एक तकनीक है, जिसके द्वारा महिला का कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराया जाता है. नई आईयूआई (IUI) तकनीक अधिक सफल होते हुए भी पुरानी तकनीक के मुकाबले सस्ती है. यह बात न्यूटेक मेडीवल्र्ड की निदेशक डॉ. गीता सर्राफ ने कही. उन्होंने कहा कि विश्व में आईयूआई के पहले प्रयास की सफलता दर 10 से 15 प्रतिशत थी, जबकि नई आईयूआई तकनीक की सफलता दर 71 प्रतिशत हो गई है.
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डॉ. गीता ने कहा, "यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आखिर एक औरत कब और क्यों शादी के बाद मां नहीं बन पाती. आज बदलती जीवन शैली में प्रदूषण और तनाव के साथ-साथ बदलती समाजिक और व्यावहारिक मान्यताओं ने कई समस्याएं होती हैं. यह बदली जीवनशैली की ही देन है कि महिलाओं में बांझपन की समस्या बढ़ती जा रही है. वास्तव में सच तो यह है कि आज राजधानी दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में परखनली शिशुओं (Test Tube Baby) की आबादी तेजी से बढ़ रही है."
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उन्होंने कहा, "इस नई आईयूआई तकनीक से अभी तक कई दर्जन शिशुओं को जन्म दिया जा चुका है. वास्तव में आज हमारे सामाजिक सोच में भी काफी बदलाव आ रहा है और लोग प्राकृतिक रूप से बच्चा न होने पर कृत्रिम विधि से बच्चा जनने की नई एवं प्रभावी तकनीकों की तरफ अग्रसर हो रहे हैं. आज यह भी संभव है कि जिन पुरुषों के वीर्य (सीमन) में शुक्राणु नहीं है, उनके शुक्राणु सीधे टेसा से प्राप्त कर लिए जाएं. इस तरह अपर्याप्त शुक्राणुओं वाले पुरुषों का भी पिता बन सकना संभव हो गया है."
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उन्होंने बताया, "भारी प्रदूषण, तनाव एवं खान-पान की खराब आदतें बढ़ते बांझपन के मुख्य कारण हैं. इस कारण यहां के पुरुषों की प्रजनन क्षमता में लगातार कमी हो रही है. नशीली दवाओं का सेवन करने वाले और कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल करने वाले लोगों में भी प्रजनन की क्षमता प्रभावित होती है. महिलाओं में इसका कारण तनाव, शारीरिक असंतुलन, देर से गर्भधारण करने की चाह के साथ-साथ ध्रूमपान और मदिरापान भी प्रजनन क्षमता में कमी के लिए जिम्मेदार हैं."
डॉ. गीता के अनुसार, आईयूआई में पति या दानकर्ता के शुक्राणु को सीधे महिला के गर्भ में स्थापित कर दिया जाता है, जबकि परखनली शिशु तकनीक में भ्रूण को सामान्यतया अंडाणु निकलने के दो दिन या चार घंटे बाद वापस गर्भ में रखा जाता है. इसके लिए इन्क्युबटेर्स का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी पहले प्रयास की सफलता की दर 18 से 22 प्रतिशत के बीच होती है.
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