
Healthy Diet: दाल संतुलित आहार का अहम हिस्सा होती है. अगर खानपान में दाल (Pulses) शामिल ना की जाए तो इससे सेहत एक नहीं बल्कि कई तरह से प्रभावित होती है. लेकिन, दाल को तुंरत ही पकाकर नहीं खाया जाता है बल्कि इसे भिगोकर रखने के बाद खाने की सलाह दी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि दाल भिगोकर (Soaked Pulses) रखने के बाद खाई जाए तो इसमें मौजूद पौषक तत्व बढ़ जाते हैं. इससे न्यूट्रिएंट्स का एब्जोर्प्शन शरीर में बेहतर तरह से होता है, शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व हटते हैं और पेट दाल को बेहतर तरह से पचा पाता है. ऐसे में न्यूट्रिशनिस्ट लीमा महाजन ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वे बता रही हैं कि किस दाल को कितनी देर भिगोकर रखने के बाद खाया जाना चाहिए. आप भी जानिए दाल भिगोने की सही समयावधि के बारे में.
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दाल कितनी देर भिगोकर रखनी चाहिए | How Long Should Pulses Be Soaked
बिना छिलके वाली दाल - जो दालें बिना छिलके की होती हैं जैसे लाल मसूर, मूंग दाल और अरहर की दाल, इन्हें कम से कम 30 मिनट यानी आधा घंटा भिगोकर रखना चाहिए. मगर टूटी हुई दालों को जिनमें छिलका है उन्हें कम से कम 2 से 4 घंटे भिगोकर रखना चाहिए. इससे दालों का फाइबर मुलायम हो जाता है.
टूटी चना दाल - यह एक सख्त दाल होती है इसीलिए इसे कम से कम 2 से 4 घंटे तक भिगोकर रखना चाहिए और उसके बाद ही पकाकर खाना चाहिए.
साबुत दालें - साबुत दालों के ऊपर छिलका होता है इसीलिए इन्हें लंबे समय तक भिगोकर रखना जरूरी है. इन दालों को कम से कम 6 से 8 घंटों तक भीगने देना चाहिए.
राजमा, चना, छोले- इन लेग्यूम्स (Legumes) को रातभर भिगोकर रखना चाहिए. इन्हें एक तेजपत्ता, मोटी इलायची और एक लौंग के साथ उबालने के लिए रखना चाहिए. लेकिन, हर दाल के साथ हींग, अदरक और जीरे का तड़का जरूर लगाना चाहिए. इससे ब्लोटिंग (Bloating) कम होती है.
दालें क्यों भिगोनी चाहिए- दाल भिगोकर रखने पर एंटी न्यूट्रिएंट्स जैसे फाइटिक एसिड और टैनिंस जो आयरन, जिंक और कैल्शियम के एब्जोर्प्शन को ब्लॉक करते हैं, दूर हो जाते हैं.
- जिन स्पेशल शुगर को पेट पचा नहीं पाता है वो दाल भिगोकर खाने पर ब्रेक डाउन होती है. इससे गैस नहीं बनती है.
- एंजाइम्स एक्टिवेट होते हैं. अगर दाल भिगोई जाए तो अंकुरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिससे प्रोटीन, बी विटामिंस और खनिज बनते हैं और बायोअवेलेबल हो जाते हैं.
- दाल भिगोकर खाने पर इन्हें पकाने में भी कम समय लगता है जिससे पोषक तत्व खत्म नहीं होते, दाल मुलायम हो जाती है और दाल का टेक्सचर भी बेहतर रहता है.
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