फाइल फोटो
नई दिल्ली:
18 मई 2017 को जमशेदपुर के पास दो अलग-अलग जगहों पर बच्चा चोरी के शक में 7 लोगों की भीड़ ने हत्या कर दी. अफ़वाहों की शुरुआत कहां से हुई जब पुलिस ने इसकी जांच-पड़ताल शुरू की तो वह लोकल पत्रकार शंकर गुप्ता
और सुशील अग्रवाल तक पहुंची. पुलिस का दावा है कि हमले से 7 दिन पहले इस तरह के मैसेज व्हाट्सऐप पर फैलने शुरू हुए.
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पुलिस को जांच में पता चला कि शंकर गुप्ता ने 11 मई को ये मैसेज पोस्ट किए. इस मैसेज में लिखा था कि बच्चा चोर जादूगोड़ा में घुस चुके हैं. इसके बाद दुरकू गांव में एक बच्चे को अगवा करने की कोशिश कर रहे लोगों को सुबह 8 बजे लोगों ने पकड़ा. गांववालों की सूचना के बाद पुलिस ने बच्चा चोरों को पकड़ लिया. इसके बाद अग्रवाल ने कुछ घंटों बाद ये मैसेज पोस्ट किया. अगवा करने वालों के पास ATM कार्ड, चॉकलेट, गेंदें और बेहोशी की दवा मिली है. गुप्ता के मैसेज उस ग्रुप पर चले जिसका वो एडमिनिस्ट्रेटर है. इस ग्रुप से 225 लोग जुड़े हुए हैं, जिनमें पत्रकार, पुलिस अधिकारी और लोकल अफसर शामिल हैं.
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पुलिस का कहना है ये सारे मैसेज फ़र्ज़ी हैं. उसने गुप्ता को गिरफ्तार किया और अग्रवाल से पूछताछ की. गुप्ता ज़मानत पर बाहर है और उसका कहना है कि ये मैसेज उसने भेजने शुरू नहीं किये थे. व्हाट्सऐप पर संदेश फैलने से पहले 1 और 6 मई को ये लेख हिंदुस्तान और प्रभात खबर में छपे. दोनों ही इस इलाके में काफी तादाद में पढ़े जाने वाले अखबार हैं. दोनों ने ही जमशेदपुर के पास चाकुलिया गांव से 12 साल के एक लड़के को अगवा करने की कोशिश की खबर छापी. 5 दिन बाद खबर छपी कि मानसिक रूप से परेशान एक शख्स को बच्चा चोरी करने की कोशिश के आरोप में पास के गांव में भीड़ ने मार डाला. ये खबर किसकी है ना तो उस संवाददाता का नाम था, ना पुलिस का बयान, लेकिन लड़के का फोटो छपा था.
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पुलिस के पास अपहरण के बारे में कोई जानकारी नहीं है. 13 साल के सुपाई का पता लगाने के लिए हम चाकुलिया गांव गए. सुपाई अपनी बहन और दादा-दादी के साथ रहता है, उसने बताया कि उसके घर में कोई घुस आया था लेकिन ये साफ नहीं है कि वो चोर था या बच्चा अगवा करने वाला है, लेकिन जब हमने स्थानीय लोगों से बात की तो कहानी अपहरण की तरफ मुड़ गई. अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में बच्चा चोरी के मामले बढ़ रहे हैं. 2014 से 2016 के बीच जितने अपहरण हुए उसके 3 गुना 2017 में हुए हैं.
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झारखंड में बच्चों के अपहरण
2014: 94
2015: 122
2016: 288
स्रोत: NCRB रिपोर्ट
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लेकिन पुलिस मानती है कि झूठी अफवाहों से बढ़ते अपहरणों का कोई लेना देना नहीं है. यानी वो फर्जी खबरें कहां से आती हैं. उनके बारे में पूरी गहराई से पड़ताल होनी चाहिए, जिनसे पीट-पीटकर मारने की घटनाएं होती हैं.
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और सुशील अग्रवाल तक पहुंची. पुलिस का दावा है कि हमले से 7 दिन पहले इस तरह के मैसेज व्हाट्सऐप पर फैलने शुरू हुए.
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पुलिस को जांच में पता चला कि शंकर गुप्ता ने 11 मई को ये मैसेज पोस्ट किए. इस मैसेज में लिखा था कि बच्चा चोर जादूगोड़ा में घुस चुके हैं. इसके बाद दुरकू गांव में एक बच्चे को अगवा करने की कोशिश कर रहे लोगों को सुबह 8 बजे लोगों ने पकड़ा. गांववालों की सूचना के बाद पुलिस ने बच्चा चोरों को पकड़ लिया. इसके बाद अग्रवाल ने कुछ घंटों बाद ये मैसेज पोस्ट किया. अगवा करने वालों के पास ATM कार्ड, चॉकलेट, गेंदें और बेहोशी की दवा मिली है. गुप्ता के मैसेज उस ग्रुप पर चले जिसका वो एडमिनिस्ट्रेटर है. इस ग्रुप से 225 लोग जुड़े हुए हैं, जिनमें पत्रकार, पुलिस अधिकारी और लोकल अफसर शामिल हैं.
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पुलिस का कहना है ये सारे मैसेज फ़र्ज़ी हैं. उसने गुप्ता को गिरफ्तार किया और अग्रवाल से पूछताछ की. गुप्ता ज़मानत पर बाहर है और उसका कहना है कि ये मैसेज उसने भेजने शुरू नहीं किये थे. व्हाट्सऐप पर संदेश फैलने से पहले 1 और 6 मई को ये लेख हिंदुस्तान और प्रभात खबर में छपे. दोनों ही इस इलाके में काफी तादाद में पढ़े जाने वाले अखबार हैं. दोनों ने ही जमशेदपुर के पास चाकुलिया गांव से 12 साल के एक लड़के को अगवा करने की कोशिश की खबर छापी. 5 दिन बाद खबर छपी कि मानसिक रूप से परेशान एक शख्स को बच्चा चोरी करने की कोशिश के आरोप में पास के गांव में भीड़ ने मार डाला. ये खबर किसकी है ना तो उस संवाददाता का नाम था, ना पुलिस का बयान, लेकिन लड़के का फोटो छपा था.
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पुलिस के पास अपहरण के बारे में कोई जानकारी नहीं है. 13 साल के सुपाई का पता लगाने के लिए हम चाकुलिया गांव गए. सुपाई अपनी बहन और दादा-दादी के साथ रहता है, उसने बताया कि उसके घर में कोई घुस आया था लेकिन ये साफ नहीं है कि वो चोर था या बच्चा अगवा करने वाला है, लेकिन जब हमने स्थानीय लोगों से बात की तो कहानी अपहरण की तरफ मुड़ गई. अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में बच्चा चोरी के मामले बढ़ रहे हैं. 2014 से 2016 के बीच जितने अपहरण हुए उसके 3 गुना 2017 में हुए हैं.
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झारखंड में बच्चों के अपहरण
2014: 94
2015: 122
2016: 288
स्रोत: NCRB रिपोर्ट
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लेकिन पुलिस मानती है कि झूठी अफवाहों से बढ़ते अपहरणों का कोई लेना देना नहीं है. यानी वो फर्जी खबरें कहां से आती हैं. उनके बारे में पूरी गहराई से पड़ताल होनी चाहिए, जिनसे पीट-पीटकर मारने की घटनाएं होती हैं.
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