प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
महात्मा गांधी नरेगा योजना दुनिया का सबसे बड़ा लोक निर्माण कार्यक्रम है। वर्ल्ड बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में यह बात कही है। वर्ल्ड बैंक के तहत अभी तक भारत में 18.2 करोड़ लोगों को फायदा मिल चुका है और 15 फीसदी ज़रूरतमंद लोगों को इस योजना से सामाजिक सुरक्षा मिलती है।
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ऐसे वक्त पर आई है, जब महात्मा गांधी नरेगा योजना के भविष्य को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं और इस योजना की कमज़ोरियों को लेकर बहस चलती रही है। ये महत्त्वपूर्ण है कि पिछले साल मोदी सरकार के सत्ता मैं आने के बाद से ही महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
महात्मा गांधी नरेगा योजना का ताज़ा हाल जानने जब मैं गाजियबाद के गालंद गांव पहुंचा, तो एक अलग ही तस्वीर नज़र आई। गांव के प्रधान ने बताया की मज़दूर अक्सर फैक्ट्री या प्राइवेट कंपनियों में काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि वहां उन्हें ज्यादा पैसा मिलता है। इसलिए महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम करने वाले ज्यादा लोग नहीं आते हैं। जब उन्हें कहीं काम नहीं मिल पता है, तभी वह महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम खोजते हैं।
प्रधान के भाई अनिल शर्मा ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत स्थायी काम संभव नहीं होता। उन्होंने गांव के एक तालाब की सफाई महात्मा गांधी नरेगा योजना फंड से करवाई थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद तालाब फिर से गंदा हो गया, क्योंकि गांव के लोगों ने तालाब में कचरा फेंकना बंद नहीं किया था। वो कहते हैं महात्मा गांधी नरेगा योजना कानून में संशोधन होना चाहिए, जिससे मज़दूरों को ज्यादा पेमेंट मिल सके और इसके तहत स्थायी एसेट्स बनाया जा सके।
लेकिन गांव में महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यहां के ज्यादातर बेरोज़गार युवा इसके बारे में कुछ नहीं जानते। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि इसके बारे में हमने कभी सुना तक नहीं है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि ज़रुरत के बावजूद क्यों करीब एक दशक बाद भी इतनी अहम योजना के बारे में जानकारी ज़रूरतमंदों के पास नहीं पहुंच पा रही है। इतनी खामियों के बावजूद इस योजना का फायदा अगर 28 करोड़ से ज्यादा लोगों तक पहुंचा है, तो इससे इस योजना की क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ऐसे वक्त पर आई है, जब महात्मा गांधी नरेगा योजना के भविष्य को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं और इस योजना की कमज़ोरियों को लेकर बहस चलती रही है। ये महत्त्वपूर्ण है कि पिछले साल मोदी सरकार के सत्ता मैं आने के बाद से ही महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
महात्मा गांधी नरेगा योजना का ताज़ा हाल जानने जब मैं गाजियबाद के गालंद गांव पहुंचा, तो एक अलग ही तस्वीर नज़र आई। गांव के प्रधान ने बताया की मज़दूर अक्सर फैक्ट्री या प्राइवेट कंपनियों में काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि वहां उन्हें ज्यादा पैसा मिलता है। इसलिए महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम करने वाले ज्यादा लोग नहीं आते हैं। जब उन्हें कहीं काम नहीं मिल पता है, तभी वह महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम खोजते हैं।
प्रधान के भाई अनिल शर्मा ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत स्थायी काम संभव नहीं होता। उन्होंने गांव के एक तालाब की सफाई महात्मा गांधी नरेगा योजना फंड से करवाई थी, लेकिन कुछ ही दिन बाद तालाब फिर से गंदा हो गया, क्योंकि गांव के लोगों ने तालाब में कचरा फेंकना बंद नहीं किया था। वो कहते हैं महात्मा गांधी नरेगा योजना कानून में संशोधन होना चाहिए, जिससे मज़दूरों को ज्यादा पेमेंट मिल सके और इसके तहत स्थायी एसेट्स बनाया जा सके।
लेकिन गांव में महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यहां के ज्यादातर बेरोज़गार युवा इसके बारे में कुछ नहीं जानते। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि इसके बारे में हमने कभी सुना तक नहीं है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि ज़रुरत के बावजूद क्यों करीब एक दशक बाद भी इतनी अहम योजना के बारे में जानकारी ज़रूरतमंदों के पास नहीं पहुंच पा रही है। इतनी खामियों के बावजूद इस योजना का फायदा अगर 28 करोड़ से ज्यादा लोगों तक पहुंचा है, तो इससे इस योजना की क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
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