
पीएम नरेंद्र मोदी के साथ एम वेंकैया नायडू.(फाइल फोटो)
- वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को देश के 13वें उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली
- मूल रूप से आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं नायडू
- 28 साल की उम्र में पहली बार एमएलए बने
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1. दक्षिण भारत से नाता
एम वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने पहले ही राष्ट्रपति के रूप में उत्तर भारत से रामनाथ कोविंद को चुना. इसलिए क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से दक्षिण भारत को ध्यान में रखते हुए उपराष्ट्रपति पद के लिए वेंकैया नायडू को चुना.
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2. मजबूत आधार की तलाश
दूसरी बात यह है कि बीजेपी अपेक्षाकृत दक्षिण भारत के राज्यों में कमजोर हैं. पार्टी इन क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाना चाहती है और 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने आधार को मजबूत करना चाहती है. इसलिए भी दक्षिण भारत से इस पद के लिए पार्टी ने उम्मीदवार चुना.
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3. राज्यसभा में अनुभव
वेंकैया नायडू चार बार राज्यसभा के सदस्य रहे. इस लिहाज से उच्च सदन में उनका लंबा अनुभव है. बीजेपी अब भले ही उच्च सदन में सबसे बड़ी पार्टी बन गई हो लेकिन संख्याबल के लिहाज से अभी भी यूपीए के पक्ष में ही आंकड़ा है. वेंकैया नायडू के सभी दलों के नेताओं से बेहतर संबंध रहे हैं. संसदीय मामलों की बेहतर समझ है. इस लिहाज से माना जा रहा है कि उनके नेतृत्व में उच्च सदन को चलाना आसान होगा.
4. बीजेपी कार्यकर्ता
नायडू हमेशा से संघ और बीजेपी के सदस्य रहे हैं. 1975 में इमरजेंसी के दौर में जेल में भी रहे हैं. उनकी नियुक्ति के साथ ही देश के तीन सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बीजेपी की पृष्ठभूमि वाले नेता आसीन हो गए हैं.
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5. वरिष्ठता
पीएम मोदी की कैबिनेट में वेंकैया नायडू की पांचवीं पोजीशन थी. पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बाद उनकी पोजीशन थी. जब बीजेपी ने तय किया कि उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार दक्षिण भारत से होना चाहिए तो वरिष्ठता और संसदीय मामलों की समझ के लिहाज से वेंकैया नायडू पार्टी की सहज पसंद बने. मोदी सरकार के संकटमोचक की छवि भी रही है.
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