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घोषणा पत्र में अनुच्छेद-370 पर चुप्पी क्यों साध गई कांग्रेस, कैसा रहा है उसके नेताओं का रवैया

कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जा की बहाली के अलावा नौकरियों, सरकारी ठेकों, जमीन आबंटन में जम्मू-कश्मीर के निवासियों को पहली प्राथमिकता का वादा किया है. इसके साथ ही उसने दरबार हाल को छह-छह महीने के लिए जम्मू और श्रीनगर करने की परंपरा फिर शुरू करने का भी वादा किया है.

घोषणा पत्र में अनुच्छेद-370 पर चुप्पी क्यों साध गई कांग्रेस, कैसा रहा है उसके नेताओं का रवैया
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में एक विधेयक के जरिए जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया था.इसके बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराए जा रहे हैं.कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से दो दिन पहले अपना घोषणापत्र जारी किया.इसे 'हाथ बदलेगा हालात'नाम दिया गया है.कांग्रेस के घोषणा पत्र की खास बात यह है कि इसमें अनुछेद 370 का जिक्र तक नहीं है.इस मुद्दे पर उसकी गठबंधन सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस काफी मुखर है.उसने इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में भी जगह दी है. ऐसे में कांग्रेस की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं.हालांकि घोषणापत्र में कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर को उसका पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाने का वादा किया है. 

जम्मू कश्मीर और अनुच्छेद 370

नरेंद्र मोदी की सरकार ने पांच अगस्त 2019 में संसद में एक विधेयक लाकर अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. इसके साथ ही सरकार ने जम्मू कश्मीर को लद्दाख और जम्मू कश्मीर के नाम के दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया था. इसका घाटी में काफी विरोध हुआ था. घाटी में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार ने काफी समय तक राज्य में इंटरनेट सेवाओं को बंद रखा था. इसके साथ ही सैकड़ों नेताओं को उनके ही घरों में नजरबंद कर दिया गया था और काफी को गिरफ्तार कर लिया गया था. सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से इस फैसले को वैध बताया था. 

अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस का ऊहापोह

कांग्रेस पहले सरकार के इस कदम का विरोध करती रही हैं.कांग्रेस ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में कहा गया कि अनुच्छेद 370, 1947 में जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच विलय पत्र की शर्तों की संवैधानिक मान्यता थी.बैठक में  कहा गया था कि यह तब तक सम्मान के योग्य है जब तक कि सभी वर्गों के लोगों के परामर्श के बाद और सख्ती से नियमों के मुताबिक इसमें संशोधन नहीं किया गया हो. हालांकि संसद में कांग्रेस नेताओं की राय सरकार के इस कदम पर बंटी हुई थी.उस समय कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुष्मिता देव के साथ-साथ दीपेंदर हुड्डा, जनार्दन द्विवेदी  और भुवनेश्वर कलिता जैसे नेता सरकार के इस कदम के समर्थन में थे. यहां तक की राहुल गांधी जैसे मुखर नेता भी इस मुद्दे पर मुखर नहीं थे. यह पार्टी के अंदर इस विषय पर राय की ओर से इशारा कर रहे थे. 

इससे पहले जम्मू कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में चार अगस्त 2019 को श्रीनगर के गुपकार रोड पर स्थित नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला के आवास पर राज्य के आठ दलों की एक बैठक हुई थी. इसके बाद गुपकार गठबंधन अस्तित्व में आया था. इसमें कांग्रेस भी शामिल थी. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के एक साल बाद फिर गुपकार गठबंधन की बैठक हुई.इसमें अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए की वापसी की बात की गई.लेकिन नवंबर 2020 में कांग्रेस ने कहा कि वह गुपकार गठबंधन का हिस्सा नहीं है. कांग्रेस ने यह कदम तब उठाया जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुपकार गठबंधन को निशाने पर लिया. 

कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर के लोगों से वादे क्या किए हैं
  
कांग्रेस ने पिछले कुछ समय से उनसे अपना रुख बदल लिया है.कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपनी कश्मीर यात्रा पर भी इस पर कुछ बोलने से परहेज किया था. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जा की बहाली के अलावा नौकरियों, सरकारी ठेकों, जमीन आबंटन में जम्मू-कश्मीर के निवासियों को पहली प्राथमिकता का वादा किया है.इसके साथ ही उसने खाली पड़े सरकारी पदों पर भर्ती, युवाओं को एक साल तक साढ़े तीन हजार रुपये प्रतिमाह का बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया. इसके साथ ही कांग्रेस ने दरबार मूव को भी बहाल करने का वादा किया है.

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