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This Article is From Jan 12, 2023

संसद के बनाए कानून को किसी भी संस्था की ओर से अमान्य करना प्रजातंत्र के लिए सही नहीं : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

न्यायपालिका, संसद की संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकती : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को केशवानंद भारती मामले में उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया जिसने देश में ‘संविधान के मूलभूत ढांचे का सिद्धांत' दिया था. धनखड़ ने इस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका, संसद की संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकती. उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यदि संसद के बनाए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा, बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.''

साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ‘‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.'' उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर काम करने की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है. क्या संविधान में कोई नयी संस्था है, जो कहेगी कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा.''

उन्‍होंने कहा, ‘‘1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी. वर्ष 1973 में केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं. न्यायपालिका के प्रति सम्मान प्रकट करने के साथ, कहना चाहूंगा कि मैं इसे नहीं मान सकता.'' उन्होंने कहा, ‘‘यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.''

संसद द्वारा पारित एनजेएसी अधिनियम को उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम पारित किया गया. ऐसे कानून को उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया...दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.''

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘कार्यपालिका को संसद से निकलने वाले संवैधानिक नुस्खे के अनुपालन के लिए नियुक्त किया गया है. यह एनजेएसी का पालन करने के लिए बाध्य है. न्यायिक फैसले इसे निरस्त नहीं कर सकते.'' उन्होंने आगे कहा, ‘‘संसदीय संप्रभुता को कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.''

उनका बयान न्यायपालिका में उच्च पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर जारी बहस के बीच आया है जिसमें सरकार वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है और सर्वोच्च न्यायालय इसका बचाव कर रहा है.

धनखड़ ने कहा कि कोई भी संस्था लोगों के जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है. उन्होंने सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों से कहा कि लोगों की संप्रभुता की रक्षा करना संसद और विधायिकाओं का दायित्व है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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