उपहार सिनेमा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
उद्योगपति अंसल बंधुओं को बुधवार को उस समय बड़ी राहत मिली जब उच्चतम न्यायालय ने 1997 के उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में उन्हें तीन महीने के भीतर 30-30 करोड रुपये का जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया। हिन्दी फिल्म ‘बार्डर’ के प्रदर्शन के दौरान हुए इस अग्निकांड में 59 दर्शकों की मृत्यु हो गई थी।
न्यायमूर्ति एआर दवे, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने सुशील और गोपाल अंसल द्वारा जेल में बिताई गई अवधि तक ही उनकी सजा सीमित करते हुए उन्हें निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर दिल्ली सरकार के पास 60 करोड़ रुपये जमा करायें। दिल्ली सरकार इस धनराशि का इस्तेमाल कल्याणकारी योजना के लिए करेगी।
इस अग्निकांड में दोषी ठहराए गए सुशील अंसल अब तक पांच महीने से अधिक समय जेल में बिता चुके थे जबकि उनके भाई गोपाल अंसल चार महीने से अधिक समय जेल में रह चुके थे।
पीठ ने सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का यह अनुरोध ठुकरा दिया कि दोषियों को सजा की शेष अवधि के लिए जेल भेजा जाए।
न्यायालय ने जब साल्वे से उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई से उन्हें निर्देश है कि वह उनकी हिरासत के लिए जोर दें।’’ उपहार अग्निकांड के पीड़ितों के संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने भी कहा कि दोषियों को सिर्फ जेल ही नहीं भेजा जाए बल्कि उनकी सजा भी बढ़ाई जाए।
दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क क्षेत्र में स्थित उपहार सिनेमा में बार्डर फिल्म के प्रदर्शन के दौरान 13 जून, 1997 को हुए अग्निकांड में बालकनी में बड़ी संख्या में दर्शक फंस गए थे। इस अग्निकांड में 59 व्यक्ति मारे गए थे और इस दौरान हुई भगदड़ में एक सौ से अधिक जख्मी हो गए थे।
इससे पहले, न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र (अब सेवानिवृत्त) की पीठ ने 5 मार्च, 2014 को अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया था लेकिन उन्हें दी जाने वाली सजा को लेकर दोनों न्यायाधीश मतैक्य नहीं थे। न्यायमूर्ति ठाकुर ने 2008 के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय से सहमति व्यक्त की थी जिसने अंसल बंधुओं को एक-एक साल की कैद की सजा सुनाई थी।
लेकिन न्यायमूर्ति मिश्रा ने सुशील अंसल की उम्र को ध्यान में रखते हुए उनकी सजा जेल में बिताई गई अवधि तक सीमित कर दी थी मगर उन्होंने दूसरे भाई गोपाल की सजा बढ़ाकर दो साल कर दी थी।
इसके बाद, इस प्रकरण को तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास फैसले के लिए भेजा गया था।
इस मामले में आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने अग्निकांड के लिए दिल्ली विद्युत बोर्ड के कर्मचारियों पर आरोप लगाया और कहा कि सरकारी कर्मचारी होने की वजह से वे बच गए।
उन्होंने कहा कि इस हादसे वाले दिन ट्रांसफार्मर में मामूली आग लगी थी और दिल्ली विद्युत बोर्ड ने किसी ‘मिस्त्री’ को इसे ठीक करने के लिए भेजा था।
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘जेठमलानी जी आप दोषसिद्धि के खिलाफ बहस नहीं कर सकते। हम सिर्फ सजा की मात्रा पर आपको सुन सकते हैं। पूर्ववर्ती पीठ ने पहले ही दोषसिद्धि को बरकरार रखा है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि आप इसे चुनौती देना चाहते हैं तो पुनर्विचार याचिका दायर कीजिये।’’ इस मुद्दे पर जेठमलानी और उपहार अग्निकांड के पीड़ितों के संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे तुलसी के बीच कुछ तकरार भी हुई।
इससे पहले, अंसल बंधुओं ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए दावा किया था कि इस अग्निकांड के लिए वे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि यह आग तो दिल्ली विद्युत बोर्ड के ट्रांसफार्मर से लगी थी।
सीबीआई ने अंसल बंधुओं की सजा कम करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 19 दिसंबर, 2008 के निर्णय को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एआर दवे, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने सुशील और गोपाल अंसल द्वारा जेल में बिताई गई अवधि तक ही उनकी सजा सीमित करते हुए उन्हें निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर दिल्ली सरकार के पास 60 करोड़ रुपये जमा करायें। दिल्ली सरकार इस धनराशि का इस्तेमाल कल्याणकारी योजना के लिए करेगी।
इस अग्निकांड में दोषी ठहराए गए सुशील अंसल अब तक पांच महीने से अधिक समय जेल में बिता चुके थे जबकि उनके भाई गोपाल अंसल चार महीने से अधिक समय जेल में रह चुके थे।
पीठ ने सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का यह अनुरोध ठुकरा दिया कि दोषियों को सजा की शेष अवधि के लिए जेल भेजा जाए।
न्यायालय ने जब साल्वे से उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई से उन्हें निर्देश है कि वह उनकी हिरासत के लिए जोर दें।’’ उपहार अग्निकांड के पीड़ितों के संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने भी कहा कि दोषियों को सिर्फ जेल ही नहीं भेजा जाए बल्कि उनकी सजा भी बढ़ाई जाए।
दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क क्षेत्र में स्थित उपहार सिनेमा में बार्डर फिल्म के प्रदर्शन के दौरान 13 जून, 1997 को हुए अग्निकांड में बालकनी में बड़ी संख्या में दर्शक फंस गए थे। इस अग्निकांड में 59 व्यक्ति मारे गए थे और इस दौरान हुई भगदड़ में एक सौ से अधिक जख्मी हो गए थे।
इससे पहले, न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र (अब सेवानिवृत्त) की पीठ ने 5 मार्च, 2014 को अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया था लेकिन उन्हें दी जाने वाली सजा को लेकर दोनों न्यायाधीश मतैक्य नहीं थे। न्यायमूर्ति ठाकुर ने 2008 के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय से सहमति व्यक्त की थी जिसने अंसल बंधुओं को एक-एक साल की कैद की सजा सुनाई थी।
लेकिन न्यायमूर्ति मिश्रा ने सुशील अंसल की उम्र को ध्यान में रखते हुए उनकी सजा जेल में बिताई गई अवधि तक सीमित कर दी थी मगर उन्होंने दूसरे भाई गोपाल की सजा बढ़ाकर दो साल कर दी थी।
इसके बाद, इस प्रकरण को तीन सदस्यीय खंडपीठ के पास फैसले के लिए भेजा गया था।
इस मामले में आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने अग्निकांड के लिए दिल्ली विद्युत बोर्ड के कर्मचारियों पर आरोप लगाया और कहा कि सरकारी कर्मचारी होने की वजह से वे बच गए।
उन्होंने कहा कि इस हादसे वाले दिन ट्रांसफार्मर में मामूली आग लगी थी और दिल्ली विद्युत बोर्ड ने किसी ‘मिस्त्री’ को इसे ठीक करने के लिए भेजा था।
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘जेठमलानी जी आप दोषसिद्धि के खिलाफ बहस नहीं कर सकते। हम सिर्फ सजा की मात्रा पर आपको सुन सकते हैं। पूर्ववर्ती पीठ ने पहले ही दोषसिद्धि को बरकरार रखा है।’’
(फोटो : पीड़ितों की नुमाइंदगी करने वाली नीलम कृष्णामूर्ति)
न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि आप इसे चुनौती देना चाहते हैं तो पुनर्विचार याचिका दायर कीजिये।’’ इस मुद्दे पर जेठमलानी और उपहार अग्निकांड के पीड़ितों के संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे तुलसी के बीच कुछ तकरार भी हुई।
इससे पहले, अंसल बंधुओं ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए दावा किया था कि इस अग्निकांड के लिए वे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि यह आग तो दिल्ली विद्युत बोर्ड के ट्रांसफार्मर से लगी थी।
सीबीआई ने अंसल बंधुओं की सजा कम करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 19 दिसंबर, 2008 के निर्णय को चुनौती दी थी।
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