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This Article is From Feb 07, 2017

दीनी के साथ दुनियावी तालीम भी, वर्चुअल क्लास रूम से जुड़े दो मदरसे

दीनी के साथ दुनियावी तालीम भी, वर्चुअल क्लास रूम से जुड़े दो मदरसे
मुंबई और बनारस में मदरसों में वर्चुअल क्लासरूम शुरू किए जाएंगे (प्रतीकात्मक फोटो).
मुंबई: देश के मदरसों में नई तालीम देने के नाम पर कई कोशिशें की गई हैं. अब उन्हें वर्चुअल क्लास-रूम से जोड़ने की योजना है, जिसकी शुरुआत मुंबई और बनारस के दो मदरसों से हुई है. यहां दीनी तालीम के अलावा बच्चे अंग्रेजी और गणित भी पढ़ रहे हैं. अगले चरण में आठ और मदरसों को वर्चुअल क्लास-रूम से जोड़ने की योजना है.
      
आम तौर पर माना जाता है कि मदरसे में दीनी तालीम हासिल करने के बाद बच्चे हाफिज़ या मौलवी बनेंगे. दस्तार, यानी पगड़ी बांधकर देशभर के हजारों मदरसों से निकलने वाले छात्रों के पास सिर्फ एक ही विकल्प होता था. लेकिन अब मदरसों से सिर्फ आलिम-फाजिल नहीं डॉक्टर-इंजीनियर भी निकल सकते हैं. शुरुआत बनारस और मुंबई के दारूल उलूम अली हसन अहलेसुन्नत मदरसे से हुई है. फिलहाल एक घंटे की क्लास में मुंबई के शिक्षक इन दो मदरसों के बच्चों को एक साथ पढ़ाते हैं. साकीनाका के मदरसे में तकरीबन 1200 बच्चे हैं, जिसमें 300 यहीं रहते हैं.

इस नई पहल से यहां के मुफ्ती और बच्चों में नई उम्मीद जगी है. यहां पढ़ने वाले छात्र मोहम्मद इशाक ने कहा " मुझे बहुत खुशी है कि यहां से पढ़ाई करने का बाद मैं डॉक्टर या इंजीनियर भी बन सकता हूं." वहीं मुफ्ती मंज़र अशरफी ने कहा "पहले लोगों को लगता था कि यहां से पढ़कर बच्चे सिर्फ मौलवी बनेंगे लेकिन अब अलग-अलग विषय पढ़कर दीनी तालीम के साथ वे अपनी पसंद का काम भी कर सकते हैं.''
    
तालीम-ए-तरबियत के तहत इन बच्चों को धार्मिक शिक्षा के अलावा गणित, विज्ञान और अंग्रेजी भी पढ़ाई जाएगी. 8वीं, नवीं, दसवीं के यह बच्चे 70 इंच के टीवी के सामने बैठकर वर्चुअल तरीके से तैयारी करेंगे. मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी उन्हें मदद करेगी. यूनिवर्सिटी के चांसलर जफर सरेशवाला ने कहा " हमने मदरसों से कहा उन्हें कुछ घटाना नहीं है, यानी उनके विषयों में बगैर दखल दिए हमने अंग्रेजी, साइंस, मैथ्स पढ़ाने की बात की. इस काम के लिए हमने दस मदरसों को चुना है. अच्छा लगेगा अगर इन मदरसों से डॉक्टर, इंजीनियर, फॉर्मासिस्ट भी निकलें.
      
मिशन में अभी और आठ मदरसे वर्चुअल क्लास रूम से जोड़े जाएंगे जिसके लिए सरकारी के साथ कई निजी हाथ भी मदद के लिए आगे आए हैं. देशभर में महज चार फीसदी बच्चे ही मदरसों का रुख करते हैं, फिर भी यह तादाद कम नहीं है. इन बच्चों को दीनी के साथ दुनियाबी तालीम देकर ही उन्हें रोज़ी कमाने के जरियों से जोड़ा जा सकता है.

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