फाइल फोटो
नई दिल्ली:
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में भारी-भरकम बदलावों की घोषणा सरकार ने पिछले महीने की थी। उसके बाद से विपक्षी दलों समेत सत्तारूढ़ भाजपा से ताल्लुक रखने वाली कई ट्रेड यूनियनों ने इन बदलावों के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर रखा है।
यह असंतोष सरकार के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है संभवतया इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस ने इन यूनियनों और सरकार के बीच एक संवाद के लिए एक मध्यस्थता सत्र का मंगलवार को आयोजन किया है। इसमें अरुण जेटली, निर्मला सीतारमण जैसे वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को मुलाकात की।
आरएसएस के श्रम संगठन भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि नई नीतियां लोकल और छोटे उद्योगों को खत्म कर देंगी और इससे हजारों नौकरियों का खात्मा हो जाएगा। दरअसल आरएसएस इस बात से चिंतित है कि जब तक इस गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकलता तब तक उसकी खुद की यूनियनें नई नीतियों के खिलाफ विपक्षी दलों के सुर में बोलती नजर आएंगी। यानी वो विपक्षी दलों के साथ खड़ी दिखाई देंगी।
उल्लेखनीय है कि जून में इन नीतियों की घोषणा की गई थीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ''इनके चलते भारत एफडीआई के मामले में अब पूरी दुनिया में सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था के रूप में तब्दील हो जाएगा।'' वस्तुत: दक्षिणपंथी यूनियनें प्रमुख रूप से ई-कॉमर्स, देश में निर्मित खाद्य वस्तुओं के व्यापार के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई के खिलाफ हैं।
कुछ आरएसएस यूनियनें रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देने की भी मुखर रूप से आलोचना कर रही हैं। उनके मुताबिक इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने की आशंका है।
यह असंतोष सरकार के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है संभवतया इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस ने इन यूनियनों और सरकार के बीच एक संवाद के लिए एक मध्यस्थता सत्र का मंगलवार को आयोजन किया है। इसमें अरुण जेटली, निर्मला सीतारमण जैसे वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को मुलाकात की।
आरएसएस के श्रम संगठन भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि नई नीतियां लोकल और छोटे उद्योगों को खत्म कर देंगी और इससे हजारों नौकरियों का खात्मा हो जाएगा। दरअसल आरएसएस इस बात से चिंतित है कि जब तक इस गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकलता तब तक उसकी खुद की यूनियनें नई नीतियों के खिलाफ विपक्षी दलों के सुर में बोलती नजर आएंगी। यानी वो विपक्षी दलों के साथ खड़ी दिखाई देंगी।
उल्लेखनीय है कि जून में इन नीतियों की घोषणा की गई थीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ''इनके चलते भारत एफडीआई के मामले में अब पूरी दुनिया में सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था के रूप में तब्दील हो जाएगा।'' वस्तुत: दक्षिणपंथी यूनियनें प्रमुख रूप से ई-कॉमर्स, देश में निर्मित खाद्य वस्तुओं के व्यापार के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई के खिलाफ हैं।
कुछ आरएसएस यूनियनें रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति देने की भी मुखर रूप से आलोचना कर रही हैं। उनके मुताबिक इससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने की आशंका है।
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