फाइल फोटो
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा टाउन हॉल कार्यक्रम और तेलंगाना में गाय की सुरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों पर सख्त टिप्पणी के बाद बीजेपी शासित मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश के गौ पालन और पशुधन संवर्धन बोर्ड के एक्जीक्यूटिव कौंसिल के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने कहा है कि तीसरा विश्व युद्ध गाय के कारण ही होगा।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक स्वामी अखिलेश्वरानंद ने कहा कि गाय पर आज से नहीं हमेशा से तकरार होती रही है। उन्होंने कहा, "पौराणिक कथाओं में भी इसके संदर्भ हैं और 1857 में आजादी की पहली लड़ाई भी गाय पर ही शुरू हुई थी।" इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां पशुओं को पाला जाता है और यह लोगों की आमदनी का एक जरिया भी है। ऐसे में मरी या घायल गायों से भरी गाड़ियों को देखकर गौरक्षकों को गुस्सा आना स्वाभाविक है, क्योंकि उनके लिए यह भावनाओं से जुड़ा मसला है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि गौरक्षकों को कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए। ऐसे वाहनों को रोकने के बाद उन्हें पुलिस को सूचित कर उनके आने का इंतजार करना चाहिए।
कौन हैं स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि
स्वामी अखिलेश्वरानंद को मार्च 2010 में निरंजन अखाड़ा ने महामंडलेश्वर बनाया गया था। उन्हें यह उपाधि संन्यास लेने के 12 साल बाद मिली। संन्यास लेने से पहले स्वामी अखिलेश्वरानंद वीएचपी के नेता थे और वह राम जन्मभूमि अभियान में भी हिस्सा ले चुके हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक स्वामी अखिलेश्वरानंद ने कहा कि गाय पर आज से नहीं हमेशा से तकरार होती रही है। उन्होंने कहा, "पौराणिक कथाओं में भी इसके संदर्भ हैं और 1857 में आजादी की पहली लड़ाई भी गाय पर ही शुरू हुई थी।" इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां पशुओं को पाला जाता है और यह लोगों की आमदनी का एक जरिया भी है। ऐसे में मरी या घायल गायों से भरी गाड़ियों को देखकर गौरक्षकों को गुस्सा आना स्वाभाविक है, क्योंकि उनके लिए यह भावनाओं से जुड़ा मसला है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि गौरक्षकों को कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए। ऐसे वाहनों को रोकने के बाद उन्हें पुलिस को सूचित कर उनके आने का इंतजार करना चाहिए।
कौन हैं स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि
स्वामी अखिलेश्वरानंद को मार्च 2010 में निरंजन अखाड़ा ने महामंडलेश्वर बनाया गया था। उन्हें यह उपाधि संन्यास लेने के 12 साल बाद मिली। संन्यास लेने से पहले स्वामी अखिलेश्वरानंद वीएचपी के नेता थे और वह राम जन्मभूमि अभियान में भी हिस्सा ले चुके हैं।
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