यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) के मुताबिक पृथ्वी पर 22 जुलाई को 84 वर्षों में सबसे अधिक गर्म दिन दर्ज किया गया और वैश्विक औसत तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड उच्चतम स्तर पर पहुंच गया.
गर्मी के मासिक रिकॉर्ड की एक श्रृंखला पर गौर करने से यह पता चलता है कि जून तक, लगातार पिछले 12 महीने से हर माह वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच रहा है. पिछले वर्ष जून के बाद से हर महीने सबसे अधिक गर्मी रिकॉर्ड की जा रही है. सी3एस के प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक, 1940 के बाद इस साल का 22 जुलाई सबसे अधिक गर्म दिन था.
इसमें कहा गया है, ‘‘हालांकि वैज्ञानिक इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि सोमवार का दिन इस अवधि का सबसे गर्म दिन था, लेकिन मानव द्वारा कृषि की शुरूआत करने से बहुत पहले से औसत तापमान इतना अधिक नहीं रहा है.'' जुलाई 2023 से पहले अगस्त 2016 में पृथ्वी का दैनिक औसत तापमान रिकॉर्ड 16.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. हालांकि, तीन जुलाई 2023 के बाद से 57 दिन ऐसे रहे हैं जब तापमान पिछले रिकॉर्ड से अधिक रहा है.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता की 2010 से 2016 तक प्रमुख रहीं क्रिस्टियाना फिगुएर्स ने कहा, ‘‘अभूतपूर्व शब्द अब उस भयावह तापमान का वर्णन नहीं कर सकता, जिसका हम सामना कर रहे हैं.''
उन्होंने कहा, ‘‘जी20 देशों के सामने एक खतरनाक वास्तविकता है, जिसका समाधान उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में तेजी लाने और जीवाश्म ईंधनों को विवेकपूर्ण नजरिये के साथ चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की नीतियों के साथ करना होगा. वैश्विक बिजली का एक तिहाई हिस्सा अकेले सौर और पवन ऊर्जा से उत्पादित किया जा सकता है, लेकिन लक्षित राष्ट्रीय नीतियों को उस परिवर्तन को संभव बनाना होगा. अन्यथा हम सभी झुलस जाएंगे और जल जाएंगे.''
उत्तरी गोलार्ध की गर्मी के कारण वैश्विक औसत तापमान आमतौर पर जून के अंत और अगस्त की शुरुआत के बीच चरम पर होता है. सी3एस के वैज्ञानिकों ने दैनिक वैश्विक तापमान में अचानक वृद्धि के लिए अंटार्कटिका के बड़े हिस्से में औसत से बहुत अधिक तापमान को जिम्मेदार ठहराया.
जलवायु विज्ञान गैर-लाभकारी संस्था बर्कले अर्थ ने पिछले सप्ताह अनुमान लगाया था कि 2024 में नया वार्षिक ताप रिकॉर्ड स्थापित होने की 92 प्रतिशत संभावना है.
वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन की तेजी से बढ़ती सांद्रता के कारण पृथ्वी के सतह का तापमान पहले ही लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. इस गर्मी को दुनिया भर में रिकॉर्ड सूखे, जंगल की आग और बाढ़ का कारण माना जाता है.
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