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This Article is From Jul 12, 2019

बालाकोट जैसे निशानों पर हमले के लिए बनाया जा रहा ड्रोन विमानों का झुंड, पायलटों को नहीं होगा खतरा

अब से एक दशक बाद ऐसा वक्त भी आ सकता है, जब भारत में बने मानवरहित ड्रोन विमानों का झुंड (स्वार्म याswarm) दुश्मन के इलाके में घुसेगा,अपने आप निशाने तक उड़कर पहुंचेगा, और फिर...

शुरुआती ड्रोन प्रोटोटाइप को हॉक एडवान्स्ड जेट ट्रेनर से लॉन्च किया जाने की संभावना है...

नई दिल्ली:

अब से एक दशक बाद ऐसा वक्त भी आ सकता है, जब भारत में बने मानवरहित ड्रोन विमानों का झुंड (स्वार्म या swarm) दुश्मन के इलाके में घुसेगा, अपने आप निशाने तक उड़कर पहुंचेगा, और फिर अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम की मदद से बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र सरीखे निशानों पर कतई सधे हुए समन्वित हमले करेगा.

इस तरह के हर झुंड में दर्जनों ड्रोन विमान हो सकते हैं. अगर उन्हें दुश्मन सीमा में देख भी लिया गया, तो कुछ ड्रोन मार गिराए जाएंगे, लेकिन झुंड में मौजूद विमानों की संख्या इतनी ज़्यादा हो सकती है कि सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों वाले दुश्मन के रक्षा कवच के पलटवार के बावजूद कुछ विमान चकमा देकर मिशन को पूरा कर सकेंगे.

यह कोई वैज्ञानिक कपोल-कल्पना नहीं है...

अगली पीढ़ी की विमानन तकनीक को सामने लाने की कोशिश के तहत सरकारी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Ltd) तथा बेंगलुरू स्थित स्टार्टअप न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज़ (NewSpace Research and Technologies) में मौजूद इंजीनियरों और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों की टीम अथक प्रयास कर रही है, ताकि दो साल के भीतर पहले भारतीय स्वार्म (झुंड) ड्रोन प्रोटोटाइप को उड़ा सकें. और हां, इन ड्रोन विमानों का एक नाम भी है -ALFA-S, यानी एयर-लॉन्च्ड फ्लेक्सिबल एसेट (स्वार्म). 

नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा, "एरियल वॉरफेयर (हवाई युद्धक प्रणाली) का यही भविष्य है..." प्रोजेक्ट मैनेजर का कहना था, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी में लगातार आती परिपक्वता के चलते, ऐसे स्मार्ट ड्रोन, जो हम बनाना चाहते हैं, सबसे ज़्यादा खतरनाक मिशनों में कम से कम कुछ हद तक पायलटों की जगह ले सकेंगे, और वायुसेना को युद्ध अभियानों में अस्वीकार्य सीमा तक पायलट नहीं खोने पड़ेंगे..."

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यह स्वार्म ड्रोन प्रोजेक्ट इस वजह से खासतौर से प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि 'पाकिस्तान के हवाई सुरक्षा नेटवर्क को बढ़ाने की योजना' तैयार है...

झुंड में काम करने वाले ALFA-S ड्रोन में फोल्ड हो सकने वाले दो पंख होते हैं, और उनकी लम्बाई एक से दो मीटर के बीच होती है. कई ड्रोन को भारतीय वायुसेना के विमानों के पंखों के नीचे लगे कनस्तर-नुमा बक्से में फिट कर दिया जाता है. फिर भारतीय वायुसेना का पायलट विमान को ऐसी ऊंचाई पर ले जाता है, जहां वह दुश्मन विमानों तथा मिसाइलों से सुरक्षित हो, और फिर ड्रोन को रिलीज़ कर दिया जाता है. इसके बाद अपने पंखों को फैलाकर उड़ना शुरू करने वाले ड्रोन में लगी बैटरी उन्हें 100 किलोमीटर प्रति घंटे से भी तेज़ रफ्तार देने में सक्षम होती है. बैटरी इस तरह बनाई गई है कि वह दो घंटे तक चलती है, और इतने वक्त में ड्रोन विमानों का झुंड निशाने तक पहुंच जाएगा.

शुरुआती ड्रोन प्रोटोटाइप को हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स में तैयार किए जा रहे हॉक एडवान्स्ड जेट ट्रेनर (Hawk Advanced Jet Trainer) से लॉन्च किया जाने की संभावना है, लेकिन अंततः इन ड्रोनों को भारतीय वायुसेना के विमानों - लड़ाकू जेट या परिवहन विमान - से ही लॉन्च किया जाना है.

प्रोजेक्ट मैनेजर के मुताबिक, "सभी ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक डेटा-लिंक्स के ज़रिये एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े रहते हैं... अपने इन्फ्रारेड तथा इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसरों का इस्तेमाल करते हुए ड्रोन दुश्मन की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली, दुश्मन के रडार और सतह पर खड़े दुश्मन विमानों जैसे अपने निशानों को तलाश लेते हैं... हर ड्रोन को इतना 'होशियार' बनाया गया है, ताकि वह 'समझ' सके कि क्या तलाश किया गया है, और फिर निशाने अलग-अलग ड्रोन को सौंप दिए जाते हैं..."

इसके बाद हर ड्रोन आत्मघाती हमला करता है - अपने भीतर मौजूद विस्फोटकों के साथ वह निशाने से टकरा जाता है.

इसके लिए देश में ही विकसित की जा रही बहुत-सी तकनीक बाज़ार में उपलब्ध नहीं है. अमेरिका, चीन, रूस तथा कुछ यूरोपीय देश अपने स्वार्म-ड्रोन स्ट्राइक पैकेज के शुरुआती हिस्से विकसित करने में जुटे हैं. ALFA-S सिस्टम के प्रोजेक्ट डिज़ाइनरों में से एक ने कहा, "इस क्षेत्र में सारी दुनिया में परीक्षण किए जा रहे हैं, और कोई भी देश किसी भी और देश के साथ स्वार्मिंग टेक्नोलॉजी नहीं बांटेगा..."

यह स्वार्म ड्रोन प्रोजेक्ट इस वजह से खासतौर से प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि 'पाकिस्तान के हवाई सुरक्षा नेटवर्क को बढ़ाने की योजना' तैयार है, जिसके तहत संभवतः चीन-निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली HQ-9 मिसाइल सिस्टम को हासिल किया जा सकता है.

HQ-9 को आने वाले विमान को लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर ही डिटेक्ट कर इंटरसेप्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. निकट भविष्य में इस तरह भारी सुरक्षा के ज़ेरेसाया रहने वाले हवाई इलाकों से पार पाने के लिए 'मानवरहित प्लेटफॉर्मों को शामिल करना ही होगा...'

स्वदेशी स्वार्मिंग ड्रोनों को विकसित करने की योजना कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम प्रोजेक्ट या CATS का हिस्सा है,जिसके तीन विभिन्न हिस्से हैं. ALFA-S स्वार्म ड्रोनों के अलावा रोबोटिक विंगमैन, जो मानवयुक्त लड़ाकू विमान के साथ युद्ध में जाएगा, भी विकसित किया जा रहा है.

CATS का अंतिम हिस्सा अल्ट्रा-हाई एल्टीट्यूड ड्रोन विकसित करना होगा, जो एक ही बार में तीन हफ्ते तक उड़ता रह सकेगा, और रीयल-टाइम तस्वीरें और वीडियो भेजता रहेगा.

केंद्र सरकार अपने 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के तहत कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम का पूरा समर्थन कर रही है.'मेक इन इंडिया' के तहत भारतीय सशस्त्र सेनाओं की अगली पीढ़ी की ज़रूरतों के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट पर फोकस करने के लिए भारतीय रक्षा उपकरण निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाता है. वर्ष 2018 में रक्षा मंत्रालय ने डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइज़ेशन के अंतर्गत iDEX, यानी इनोवेशन्स फॉर डिफेंस एक्सीलेंस का गठन किया था. डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइज़ेशन एक गैर-मुनाफा कंपनी है, जिसका काम भारत की रक्षा व एयरोस्पेस ज़रूरतों की दिशा में काम करने वाली हाईटेक स्वदेशी कंपनियों के लिए उच्चस्तरीय नीतिगत सलाह देना होता है.

प्रोजेक्ट मैनेजरों में से एक ने कहा, "धीरे-धीरे युद्ध के सभी स्वरूप ड्रोन से ही चलेंगे... इन तकनीकों के लिए हमारा विकास कार्यक्रम दुनियाभर में हो रहे इस तरह के प्रयासों के साथ ही चल रहा है..." 

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