नई दिल्ली:
दागी सांसदों और विधायकों को सुप्रीम कोर्ट ने जोरदार झटका देते हुए कहा है कि अगर सांसदों और विधायकों को किसी आपराधिक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद दो साल से ज्यादा की सजा हुई, तो ऐसे में उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द हो जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि ये सांसद या विधायक सजा पूरी कर लेने के बाद भी छह साल बाद तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माने जाएंगे।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों और विधायकों को संरक्षण देने वाले कानूनी प्रावधान को रद्द कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला भावी मामलों में ही लागू होगा और उन सांसदों, विधायकों या अन्य जन प्रतिनिधियों के मामलों में लागू नहीं होगा, जो यह फैसला सुनाए जाने से पहले ही दोषी ठहराने के निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील दायर कर चुके हैं।
न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को अधिकारातीत करार देते हुए कहा कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है। अब तक लागू जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के अनुसार आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, यदि उसने ऊपरी अदालत में अपील दायर कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। याचिका में कहा गया था कि संविधान में एक अपराधी के मतदाता के रूप में पंजीकृत होने या फिर उसके सांसद या विधायक बनने पर प्रतिबंध है, लेकिन जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान दोषी सांसद और विधायकों को अदालत के निर्णय के खिलाफ दायर अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करता है। याचिका के अनुसार यह प्रावधान पक्षपात करने वाला है और इससे राजनीतिक के अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है।
(इनपुट भाषा से भी)
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों और विधायकों को संरक्षण देने वाले कानूनी प्रावधान को रद्द कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला भावी मामलों में ही लागू होगा और उन सांसदों, विधायकों या अन्य जन प्रतिनिधियों के मामलों में लागू नहीं होगा, जो यह फैसला सुनाए जाने से पहले ही दोषी ठहराने के निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील दायर कर चुके हैं।
न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को अधिकारातीत करार देते हुए कहा कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है। अब तक लागू जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के अनुसार आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, यदि उसने ऊपरी अदालत में अपील दायर कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। याचिका में कहा गया था कि संविधान में एक अपराधी के मतदाता के रूप में पंजीकृत होने या फिर उसके सांसद या विधायक बनने पर प्रतिबंध है, लेकिन जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान दोषी सांसद और विधायकों को अदालत के निर्णय के खिलाफ दायर अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करता है। याचिका के अनुसार यह प्रावधान पक्षपात करने वाला है और इससे राजनीतिक के अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है।
(इनपुट भाषा से भी)
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