अरविंद केजरीवाल के साथ सुच्चा सिंह की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए खम ठोक रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने राज्य में पार्टी के संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर को पद से हटा दिया है. एक कथित स्टिंग ऑपरेशन में छोटेपुर कथित रूप से विधानसभा टिकट के ऐवज में पैसे लेते दिख रहे हैं, हालांकि वह इसे अपने खिलाफ साजिश करार देते हैं. उन्होंने जिस तल्ख अंदाज में पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर हमला किया और उन्हें 'सिख विरोधी' तक बता डाला, उससे यह साफ है कि आगामी चुनाव में वह पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.
अकाली दल और फिर कांग्रेस पार्टी से होते हुए आखिर में आम आदमी पार्टी से जुड़ने वाले छोटेपुर का 50 वर्षों का लंबा राजनीतिक सफर बेदाग रहा है और विरोधी भी उनकी ईमानदारी के कायल बताए जाते हैं. पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी और सीएम पद के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कुछ दिन पहले ही उन्हें 'बेदाग राजनीतिक करियर' वाला नेता बताया था. अब ऐसी अटकलें ही छोटेपुर आप से नाता तोड़ अपने पुरानी साथी अमरिंदर का साथ देने के लिए कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं.
सुच्चा सिंह छोटेपुर को उनके स्वतंत्र विचारों के लिए जाना जाता रहा है. इसका अंदाजा इसी बात से मिलता है कि 1986 में जब अमृतसर में 'ऑपरेशन ब्लैक थंडर' चलाया, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे छोटेपुर ने इसके विरोध में पद से इस्तीफा दे दिया था.
छात्र जीवन से ही राजनीति में रम गए छोटेपुर
सुच्चा सिंह का जन्म पंजाब के माझा इलाके में गुरुदासपुर जिले के छोटेपुर गांव में हुआ. 67 वर्षीय छोटेपुर कॉलेज के दिनों में ही राजनिति में रम गए थे. वह गुरुदासपुर गवर्मेंट कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष से लेकर अपने गांव के सरपंच तक रहे. एक धर्मिक सिख परिवार में जन्में छोटेपुर ने छात्र राजनीति के बाद आकाली दल का दामन थामा और फिर संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरचरण सिंह तोहरा जैसे अकाली नेताओं से करीबी बन गए.
अपनी ही पार्टी के खिलाफ उठाई आवाज़
पंजाब में वर्ष 1974 के पंचायत चुनाव में वह ब्लॉक समिति के अध्यक्ष चुने गए इकलौते अकाली नेता थे. इस जीत से उनका राजनीतिक कद काफी बढ़ गया और फिर पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के सदस्य चुने गए और बाद में 1980 से 1986 के बीच गुरुदासपुर के पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे. इसी दौरान 1985 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने धारीवाल सीट से भाग्य आजमाया और विजयी रहे. तब राज्य के सीएम रहे सुरजीत सिंह बरनाला ने मार्च 1986 में छोटेपुर को स्वास्थ्य, पर्यटन के साथ कृषि विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया. हालांकि दो महीने बाद ही जब 29-30 अप्रैल की रात ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया गया था, तो इसके विरोध में उन्होंने बरनाला मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसे ऑपरेशन को लेकर छोटेपुर के अपनी पार्टी की सरकार से रिश्ते तल्ख होते गए और नौबत यहां तक आ गई कि उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
सीएम अमरिंदर को कुर्सी बचाने में की थी मदद
इसके बाद छोटेपुर ने अकाली दल (मान) का दामन थामा और 1992 में लोकसभा और 97 में विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार मिली. इसके बाद साल 2002 के विधानसभा चुनाव में छोटेपुर ने धारीवाल सीट से निर्दलीय चुनाव जीता और विधानसभा चुनाव में निर्दलीय विधायकों के नेता बने. उस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी और कैप्टेन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने थे. फिर एक वक्त ऐसा भी आया, जब अमरिंदर के खिलाफ उनकी ही पार्टी के नेताओं ने बगावत कर दी और तब छोटेपुर ने निर्दलीय विधायकों के साथ कैप्टन को अपनी कुर्सी बचाने में मदद की. इसी का नतीजा है कि कैप्टन आज भी छोटेपुर की तारीफ करते हैं.
फिर साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान छोटेपुर गुरुदासपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह बाजवा का समर्थन करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि कांग्रेस के साथ उनका रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल पाया. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने काहनुवां सीट से बाजवा की पत्नी को टिकट दे दिया, तो छोटेपुर ने पार्टी से बगावत करते हुए इसी सीट पर निर्दलीय खड़े हुए, लेकिन हार गए.
आप में हाशिये पर धकेल दिए गए थे छोटेपुर
इसके बाद छोटेपुर ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा और साल 2014 लोकसभा चुनाव में गुरुदासपुर सीट से पार्टी के उम्मीदवार बने, लेकिन फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इस हार का पार्टी में उनके भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ा और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उन्हें राज्य का संयोजक बना दिया. हालांकि उन्होंने विधानसभा चुनावों की कमान संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को दे दी. बीते कुछ दिनों के दौरान पार्टी में छोटेपुर को लगभग हाशिये पर धकेल दिया गया था और टिकट वितरण में भी उनकी कुछ खास चलती नहीं दिख रही थी. राज्य में आप विधानसभा उम्मीदवारों की दो लिस्ट जारी कर चुकी है, लेकिन इनमें छोटेपुर का नाम नदारद था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छोटेपुर के करीबी उन्हें 'षड्यंत्र का शकार' बता रहे हैं', वहीं कुछ विपक्षी नेता बताते हैं कि 'उनकी केजरीवाल से ज़्यादा बन नहीं रही थी'. ऐसे में अब उनके खिलाफ पार्टी की इस कार्रवाई से इस बात की अटकलें तेज हो गई हैं कि वह पार्टी का दामन छोड़ अपने पुराने साथी अमरिंदर सिंह के साथ जा सकते हैं.
पंजाब के माझा से ताल्लुक रखने वाले छोटेपुर की इलाके के पार्टी नेताओं पर खासी पैठ है और समझा जा रहा है कि छोटेपुर ने अगर आप छोड़ा तो उनके साथ कई दूसरे नेता भी उनके साथ पार्टी का दामन छोड़ देंगे. ऐसे में केजरीवाल और उनकी पार्टी को माझा की 24 सीटों पर छोटेपुर की काट खोजनी होगी, जो कि फिलहाल तो टेढ़ी खीर लगती है.
अकाली दल और फिर कांग्रेस पार्टी से होते हुए आखिर में आम आदमी पार्टी से जुड़ने वाले छोटेपुर का 50 वर्षों का लंबा राजनीतिक सफर बेदाग रहा है और विरोधी भी उनकी ईमानदारी के कायल बताए जाते हैं. पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी और सीएम पद के उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कुछ दिन पहले ही उन्हें 'बेदाग राजनीतिक करियर' वाला नेता बताया था. अब ऐसी अटकलें ही छोटेपुर आप से नाता तोड़ अपने पुरानी साथी अमरिंदर का साथ देने के लिए कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं.
सुच्चा सिंह छोटेपुर को उनके स्वतंत्र विचारों के लिए जाना जाता रहा है. इसका अंदाजा इसी बात से मिलता है कि 1986 में जब अमृतसर में 'ऑपरेशन ब्लैक थंडर' चलाया, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे छोटेपुर ने इसके विरोध में पद से इस्तीफा दे दिया था.
छात्र जीवन से ही राजनीति में रम गए छोटेपुर
सुच्चा सिंह का जन्म पंजाब के माझा इलाके में गुरुदासपुर जिले के छोटेपुर गांव में हुआ. 67 वर्षीय छोटेपुर कॉलेज के दिनों में ही राजनिति में रम गए थे. वह गुरुदासपुर गवर्मेंट कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष से लेकर अपने गांव के सरपंच तक रहे. एक धर्मिक सिख परिवार में जन्में छोटेपुर ने छात्र राजनीति के बाद आकाली दल का दामन थामा और फिर संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरचरण सिंह तोहरा जैसे अकाली नेताओं से करीबी बन गए.
अपनी ही पार्टी के खिलाफ उठाई आवाज़
पंजाब में वर्ष 1974 के पंचायत चुनाव में वह ब्लॉक समिति के अध्यक्ष चुने गए इकलौते अकाली नेता थे. इस जीत से उनका राजनीतिक कद काफी बढ़ गया और फिर पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के सदस्य चुने गए और बाद में 1980 से 1986 के बीच गुरुदासपुर के पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे. इसी दौरान 1985 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने धारीवाल सीट से भाग्य आजमाया और विजयी रहे. तब राज्य के सीएम रहे सुरजीत सिंह बरनाला ने मार्च 1986 में छोटेपुर को स्वास्थ्य, पर्यटन के साथ कृषि विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया. हालांकि दो महीने बाद ही जब 29-30 अप्रैल की रात ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया गया था, तो इसके विरोध में उन्होंने बरनाला मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसे ऑपरेशन को लेकर छोटेपुर के अपनी पार्टी की सरकार से रिश्ते तल्ख होते गए और नौबत यहां तक आ गई कि उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
सीएम अमरिंदर को कुर्सी बचाने में की थी मदद
इसके बाद छोटेपुर ने अकाली दल (मान) का दामन थामा और 1992 में लोकसभा और 97 में विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों बार हार मिली. इसके बाद साल 2002 के विधानसभा चुनाव में छोटेपुर ने धारीवाल सीट से निर्दलीय चुनाव जीता और विधानसभा चुनाव में निर्दलीय विधायकों के नेता बने. उस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी और कैप्टेन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने थे. फिर एक वक्त ऐसा भी आया, जब अमरिंदर के खिलाफ उनकी ही पार्टी के नेताओं ने बगावत कर दी और तब छोटेपुर ने निर्दलीय विधायकों के साथ कैप्टन को अपनी कुर्सी बचाने में मदद की. इसी का नतीजा है कि कैप्टन आज भी छोटेपुर की तारीफ करते हैं.
फिर साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान छोटेपुर गुरुदासपुर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह बाजवा का समर्थन करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि कांग्रेस के साथ उनका रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल पाया. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने काहनुवां सीट से बाजवा की पत्नी को टिकट दे दिया, तो छोटेपुर ने पार्टी से बगावत करते हुए इसी सीट पर निर्दलीय खड़े हुए, लेकिन हार गए.
आप में हाशिये पर धकेल दिए गए थे छोटेपुर
इसके बाद छोटेपुर ने आम आदमी पार्टी का दामन थामा और साल 2014 लोकसभा चुनाव में गुरुदासपुर सीट से पार्टी के उम्मीदवार बने, लेकिन फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इस हार का पार्टी में उनके भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ा और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उन्हें राज्य का संयोजक बना दिया. हालांकि उन्होंने विधानसभा चुनावों की कमान संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को दे दी. बीते कुछ दिनों के दौरान पार्टी में छोटेपुर को लगभग हाशिये पर धकेल दिया गया था और टिकट वितरण में भी उनकी कुछ खास चलती नहीं दिख रही थी. राज्य में आप विधानसभा उम्मीदवारों की दो लिस्ट जारी कर चुकी है, लेकिन इनमें छोटेपुर का नाम नदारद था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छोटेपुर के करीबी उन्हें 'षड्यंत्र का शकार' बता रहे हैं', वहीं कुछ विपक्षी नेता बताते हैं कि 'उनकी केजरीवाल से ज़्यादा बन नहीं रही थी'. ऐसे में अब उनके खिलाफ पार्टी की इस कार्रवाई से इस बात की अटकलें तेज हो गई हैं कि वह पार्टी का दामन छोड़ अपने पुराने साथी अमरिंदर सिंह के साथ जा सकते हैं.
पंजाब के माझा से ताल्लुक रखने वाले छोटेपुर की इलाके के पार्टी नेताओं पर खासी पैठ है और समझा जा रहा है कि छोटेपुर ने अगर आप छोड़ा तो उनके साथ कई दूसरे नेता भी उनके साथ पार्टी का दामन छोड़ देंगे. ऐसे में केजरीवाल और उनकी पार्टी को माझा की 24 सीटों पर छोटेपुर की काट खोजनी होगी, जो कि फिलहाल तो टेढ़ी खीर लगती है.
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