
- उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ अब दरक रहे हैं, जिससे भूस्खलन और मिट्टी का बहाव बढ़ रहा है, जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है.
- इस मॉनसून में हिमाचल में 75 और उत्तराखंड में 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि पिछले सप्ताह 16 बड़े भूस्खलन हुए.
- टूरिज्म के बढ़ते दबाव के कारण पहाड़ों पर अत्यधिक विकास हुआ है, जिसमें सुरंगें, सड़कें, होटल और रिसॉर्ट्स शामिल हैं.
एनडीटीवी इंडिया के स्पेशल शो ‘कचहरी' में इस बार जिरह का एक विषय था– हिमालय की टूटती चुप्पी. इस शो में शुभांकर मिश्रा ने बताया कि कैसे उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़, जो कभी मजबूती और सुकून का प्रतीक थे, अब दरक रहे हैं. इस एपिसोड में यह चेतावनी दी गई कि यह सिर्फ भूस्खलन नहीं, बल्कि प्रकृति की कचहरी में इंसान को मिला दोष साबित हो रहा है.
शो में दिखाया गया कि इन पहाड़ों की चुप्पी अब डराने लगी है. गहराते दरारें, हर दिन हो रहे भूस्खलन और लगातार बहती मिट्टी बता रही हैं कि अब पहाड़ थक चुके हैं. इस मानसून में हिमाचल में 75 मौतें और उत्तराखंड में 22 जानें जा चुकी हैं. पिछले एक हफ्ते में 16 बड़े भूस्खलन हुए हैं. यानी हर दिन दो बार हिमालय दरक रहा है.
टूरिज्म का बढ़ता दबाव
लेकिन सवाल है कि आखिर ये पहाड़ अचानक इतने कमजोर क्यों हो गए? शो में बताया गया कि इसका सबसे बड़ा कारण इंसानी लालच और अनियंत्रित विकास है. सुरंगों, सड़कों, होटलों और रिसॉर्ट्स के लिए पहाड़ों को काटा गया. जंगल उजाड़ दिए गए और नदियों पर बांध बना दिए गए. अब वही नदियां रास्ता नहीं, तबाही खोज रही हैं.
हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में टूरिज्म एक बड़ा दबाव बन चुका है. हिमाचल की 78 लाख की आबादी पर हर साल करीब 1.8 करोड़ टूरिस्ट आते हैं और उत्तराखंड में 6 करोड़ पर्यटक, जो उसकी आबादी से पांच गुना ज्यादा है. शो में कहा गया कि यह अनुपात पर्यावरण के संतुलन के लिए खतरनाक है.
यहां देखें पूरा वीडियो
एक अहम कारण बताया गया ‘सोइल इरोजन' यानी मिट्टी का बहाव. उत्तराखंड में हर हेक्टेयर से 40 टन मिट्टी बह रही है, जबकि देश का औसत 21 टन है. यह असंतुलन भूस्खलन और ज़मीन धंसने का बड़ा कारण बन रहा है.
विकास या तबाही, सवाल कायम
सवाल उठाया गया कि क्या सरकारें आज भी इस तबाही को विकास के तौर पर देख रही हैं. नई सड़कें, सुरंगें और टूरिज्म प्रोजेक्ट्स तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन बिना यह सोचे कि पहाड़ इनका बोझ सह भी पाएंगे या नहीं.
अंत में सावधान किया गया कि अगर अब भी नहीं चेते, तो ये पहाड़ सिर्फ तस्वीरों, किस्सों और डॉक्यूमेंट्री में ही बचेंगे. विकास जरूरी है, लेकिन पहाड़ों की तबाही की कीमत पर नहीं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं