लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र (Narendra Modi) एक बार फिर पांच साल के लिए देश के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान होने जा रहे हैं. इस बार के चुनाव में उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पिछले लोकसभा चुनाव 2014 (282) से ज्यादा (303) सीटें मिली हैं. इस बार भाजपा के नेतृत्व में एनडीए ने लोकसभा की 542 सीटों में से 351 पर जीत दर्ज की है. जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए के सांसदों को संबोधित किया. उनके इस संबोधन पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता शिवानंद तिवारी ने एक फेसबुक पोस्ट लिखी है. अपनी पोस्ट में तिवारी ने कहा कि लोकसभा का पिछला चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र भाई मोदी जब पहली मर्तबा संसद भवन में प्रवेश कर रहे थे उन्होंने उसके चौखट पर माथा टेका था. इस मर्तबा उन्होंने संविधान की किताब पर अपना सर झुकाया. प्रधानमंत्री ने कल (शनिवार) एनडीए (NDA) के सांसदों को संबोधित करते हुए कुछ अच्छी भी बातें भी कही. अगर उन पर अमल होता है तो यह देश के लिए बहुत शुभ होगा. अपने संबोधन में उन्होने कहा कि 'वाणी से, बर्ताव से और आचरण से आपको अपने को बदलना होगा.' दूसरी महत्वपूर्ण बात जो बात उन्होंने कही, वह यह कि 'अल्पसंख्यकों के मन में डर बैठा कर उनको अलग-थलग किया गया है, उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. उनके मन से उस डर को निकाल कर सबको साथ लेकर चलना होगा.'
इसके बाद तिवारी अपनी पोस्ट में लिखते हैं, 'गांधी जी कहते थे कि 'हमारे मस्तिष्क में असंख्य निष्क्रिय विचार हो सकते हैं. लेकिन वे निर्जीव अंडों की तरह होते हैं. उनका कोई मूल्य नहीं होता. लेकिन एक ही सक्रिय विचार यदि हृदय की गहराई से निकले. जो मूलत: शुद्ध हो और प्राण की संपूर्ण शक्ति से पूर्ण हो तो वह सक्रिय और गतिशील बनकर इतिहास का निर्माण कर सकता है.'
तिवारी लिखते हैं, 'नरेंद्र भाई मोदी जी ने अपने भाषण में जो विचार व्यक्त किए हैं वे सक्रिय हैं या निष्क्रिय ! लोहिया इनके एवज़ में सगुण और निर्गुण शब्द का इस्तेमाल करते थे. भारतीय राजनीति में निष्क्रिय या निर्गुण बातें ही ज़्यादा होती हैं. प्रधानमंत्री जी के कल के भाषण को अगर उनके पिछले कार्यकाल की पृष्ठभूमि में देखा जाए तो वे निर्गुण लगते हैं. लेकिन जब जगे तभी सवेरा. कल जो उन्होने कहा उसको सगुण रूप दिया जा रहा है या नहीं इसको परखने की कसौटी क्या होगी ! पहली कसौटी प्रज्ञा ठाकुर को ले कर बनाई जा सकती है. क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर ने नाथूराम गोड्से और महात्मा गांधी के संदर्भ जो बयान दिया था उसके लिए प्रधानमंत्री जी ने 'घृणा' जैसे कठोर शब्द का इस्तेमाल किया था. उन्होने कहा था कि उस बयान से उनको घृणा हुई है और प्रज्ञा ठाकुर को वे इस बयान के लिए कभी माफ़ नहीं करेंगे. इस बीच चुनाव जीतकर प्रज्ञा संसद में भी आ चुकी हैं. उनको लेकर प्रधानमंत्री जी अब क्या करेंगे ? क्या अपनी बात को सगुण रूप देने के लिए पार्टी से प्रज्ञा ठाकुर को अलग करने की दृढ़ता दिखा पाएँगे ? प्रधानमंत्री जी का भाषण निष्क्रिय या निर्गुण था या सचमुच उसको वे सक्रिय या सगुण रूप देना चाहते हैं यह जाँचने के लिए एक कसौटी यह भी हो सकती है.
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इसके आगे तिवारी लिखते हैं, 'दूसरी कसौटी अल्पसंख्यको के मन से डर को निकालने के संदर्भ में बनाई जा सकती है. डर वाली बात सही है. डर का लाभ उठाकर वोटबैंक के रूप में उनका इस्तेमाल किया जाता है प्रधानमंत्री जी के इस आरोप में भी दम है, लेकिन यह डर किन से है ! कौन लोग उनको डरा रहे हैं! अपने संबोधन में उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है. मुझे लगता है कि अल्पसंख्यकों के मन में डर की बड़ी वजह समाज में उनके विरूद्ध फैलाई जा रही नफ़रत से है. कौन फैला रहा है नफ़रत? क्या प्रधानमंत्री जी को यह बतलाने की ज़रूरत है! हद तो यह है कि क़ब्र से निकालकर इनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करेंगे, यहाँ तक कहा गया है! किसने यह कहा है, प्रधानमंत्री जी को यह भी बताने की ज़रूरत है क्या? दफ़्न के लिए तीन गज ज़मीन चाहिए तो वंदेमातरम कहना होगा! प्रधानमंत्री जी की मंत्रीमंडल में शामिल एक सदस्य ऐसा कहते हैं. ऐसा कहने का साहस इनमें कहाँ से आता है! ऐसा इसलिए कि उनको लगता है कि प्रधानमंत्री जी ऐसी भाषा पसंद करते हैं. वे ग़लत भी नहीं हैं. ऐसा ही बोलते मंत्री बन गए. दंगे के आरोपी भी मंत्रिमंडल में शामिल हैं.'
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अपनी पोस्ट के आखिर में उन्होंने लिखा, 'इसलिए प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कल जो कुछ कहा है उसके प्रति वे वाक़ई गंभीर हैं और उनको सक्रिय और सगुण रूप देना चाहते है तो उसकी शुरूआत दो छोटे क़दमों से वे कर सकते हैं. पहला, प्रज्ञा ठाकुर को अपने दल से बाहर निकाल कर और दूसरा अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वाले सदस्यों को मंत्रिमंडल से बाहर रखकर. ये दो छोटे क़दम बड़ा संदेश देंगे और प्रधानमंत्री जी अल्पसंख्यकों को वोटबैंक से मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे. इसी रास्ते उस ओर भी बढ़ा जा सकता है जिसकी ओर चलने के लिए हमारा संविधान निदेश देता है.'
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