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This Article is From Feb 04, 2014

रवीश उवाच : निजी राय रखने का स्टेटस

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार... वसंत पंचमी मुबारक। वैसे मैं गुलाबी कमीज पहन कर आ गया हूं। खैर। हमारी लोकतांत्रिक पार्टियों में निजी राय भी एक स्टेटस है। अगर आपकी हैसियत ठीक-ठाक है, तो आप निजी राय रखते हुए ऐसी राय रख सकते हैं, जिसे खुद पार्टी तक न रख पाए। जनार्दन द्विवेदी जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ हो गए हैं। अभी तक कांग्रेस में उनके कोई खिलाफ नहीं हुआ है।

कम इंटरव्यू देने वाले जनार्दन द्विवेदी ने पीटीआई और एएनआई से कहा है कि अब मायावती जी की पार्टी में भी ब्राह्मण सम्मेलन होते हैं। क्षत्रिय सम्मेलन होते हैं, वैश्य सम्मेलन होते हैं। मैं समझता हूं कि इसको स्वीकार कर लिया गया है। अब वह असमानता नहीं रही और जहां रही उसका संघर्ष चलता रहेगा। यह जो समानता का सिद्धांत था, वह लागू नहीं हो पाया, इसका कारण यह नहीं है कि उसमें कोई दोष है, यह समाप्त हो जाना चाहिए था। पहले 10 साल के लिए था, फिर और 10 साल के लिए था, लेकिन क्यों नहीं हो पाया। क्या पिछड़ों में सही पिछड़ों को आरक्षण मिलता है? क्या दलितों में जो समाज में सबसे नीचे है, उसे आरक्षण मिलता है? ये सब ऊपर−ऊपर वालों को मिलता है। यानि मैं कहना यह चाहता हूं कि एक नया वर्ण बन गया है।

जनार्दन द्विवेदी इसके जरिए बीजेपी को फिर से पोजीशन लेने पर मजबूर तो नहीं कर रहे या कांग्रेस को फंसा रहे हैं। क्योंकि जाट, गुज्जर और अल्पसंख्यकों को आरक्षण देते समय उन्हें यह ज्ञान क्यों नहीं प्राप्त हुआ? हमारे सहयोगी उमाशंकर सिंह बताते हैं कि 29 अगस्त 1990 में राजीव गांधी के समय भी कांग्रेस कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था की बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की वकालत की थी। पहले आर्थिक आधार पर आरक्षण हो और बाकी बच जाए तो जाति आधार पर दिया जाए। यह प्रस्ताव है।

द्विवेदी आगे कहते हैं कि सरकार जितना सुविधाएं दे दे, लेकिन वहां भी बड़ों को ही मिलेगा। मैं समझता हूं कि ये भी एक प्रकार का अन्याय है। देखिए सामाजिक न्याय और जातिवादी में अंतर होता है। अब ये सामाजिक न्याय की अवधारणा जातिवाद में बदल गई है और सभी राजनीतिक दल उसमें फंसते हैं। मैं मानता हूं कि इसको तोड़ने की जरूरत है। मैं राहुल जी की शैली से आपके माध्यम से अपनी पार्टी को सलाह दे रहा हूं, हमारी पार्टी का घोषणा पत्र बन रहा है। उसमें उन्होंने बहुत सारे लोगों को शामिल किया है, तो मैं भी उसका लाभ उठाते हुए उन्हीं की शैली से उनसे यह अनुरोध करता हूं कि वह हिम्मत करके एक बड़ा और कड़ा फैसला करें आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कही जाए और यह बात सामने आए और उसे पूरा किया जाए।

तो क्या राहुल गांधी कड़ा फैसला करेंगे। अब जब उनका दूसरा इंटरव्यू कोई अंग्रेजी का पत्रकार करेगा, तो पहला या दूसरा सवाल तो यह हो ही जाएगा। जवाब देकर राहुल कहीं 84 की तरह फंस न जाएं। मतलब एक बात कह रहे हैं और इस पर चुप रह कर कांग्रेस इस पर रोज फंस भी सकती है।

यह वीडियो यूटूब से लिया गया है, जो हैदराबाद के एक अभियान का है। शांति चक्र इंटरनेशनल नाम का अंबेडकरवादियों का ग्लोबल नेटवर्क है, जो बाबा साहब के जन्मदिन के मौके पर ऐसी दौड़ का आयोजन करता है। हैदराबाद की सड़कों पर हजारों लोग जाति मुक्त भारत के लिए दौड़ लगाते हैं। हमारे दल जाति मुक्त भारत नहीं, बल्कि जाति युक्त गठबंधन की बात करते हैं। सही है कि कई लोग जातियों का बंधन तोड़ कर रिश्ते बनाते हैं और कई लोग जाति व्यवस्था में रहते हुए इसमें यकीन नहीं रखते हैं, मगर उससे कहीं ज्यादा देश में जाति आधारित हिंसा और अन्याय के दर्दनाक किस्से रोज सामने आते हैं।

समाज बदल तो रहा है, मगर सामाजिक यथार्थ भी बदल रहे हैं क्या? दिसंबर 2013 में चंद्र भान प्रसाद और मिलिंद कांबले ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिख कर बताया है कि उत्तर प्रदेश में ही जन्म से जुड़े पारंपरिक पेशे समाप्त हो रहे हैं। न चरवाहा है न हरवाहा। दलित जाति के स्थानीय बंधनों से मुक्त हो रहे हैं। दलित उद्योगपतियों ने फिक्की की तर्ज पर एक संगठन डिक्की बनाया है। जिसका नारा है 'हमें कंसेशन, नहीं कनेक्शन चाहिए'।

पेशे को लेकर जाति और जन्म का रिश्ता बदल जाने से जातिवाद भी खत्म हो जाता है क्या? आरक्षण की राजनीति में इतना ही बदलाव आया है कि तमाम दल धीरे-धीरे आर्थिक आधार पर कमजोर तबके को आरक्षण देने की बात करते हैं। बीएसपी, बीजेपी, कांग्रेस सब, लेकिन इसके बाद भी यह कहते हुए दो तीन दशक तो गुजर ही गए। आम आदमी पार्टी ने अपने विजन डाक्यूमेंट में लिखा कि हम मानते हैं कि वंचित और हाशिए के तबके के विकास के लिए आरक्षण जरूरी है। साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि आरक्षण का लाभ वंचितों में उस तक जरूर पहुंचे, जिसे ज्यादा जरूरत है। आरक्षण उनके लिए विकल्प नहीं होना चाहिए, जिन्हें इसका लाभ पहले ही मिल चुका है। यह सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए ही होना चाहिए।

योगेंद्र यादव ने इकोनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में साफ करते हुए कहा कि हम वंचित तबके के लिए और अधिक आरक्षण के लिए काम करेंगे। भारत में जाति के आधार पर भेदभाव काफी गहरा है। लिंग और वर्ग के आधार पर भी उतना ही बुरा है। हम उन सभी के लिए काम करेंगे, जो ऐसे भेदभाव के शिकार रहे हैं। क्या जाति का आधार मिटा कर आर्थिक आधार पर आरक्षण से आरक्षण का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। संविधान में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था है, आर्थिक आधार पर नहीं है। कांग्रेस का यह नया द्विवेदी युग मुझे तो खतरनाक लग रहा है।

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