
RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का खुलासा
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पूर्व आरबीआई गवर्नर ने किया एक और खुलासा.
राजन ने कहा कि उन्होंने पीएमओ को लिस्ट भेजी थी.
उन्होंने कहा कि कुछ बड़े नामों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती थी.
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रघुराम राजन ने कहा, ‘जब मैं गवर्नर था तो रिजर्व बैंक ने धोखाधड़ी निगरानी प्रकोष्ठ बनाया था, जिससे धोखाधड़ी के मामलों की जांच एजेंसियों को रिपोर्ट करने के कार्य में समन्वय किया जा सके. मैंने पीएमओ को बहुचर्चित मामलों की सूची सौंपी थी. मैंने कहा था कि समन्वित कार्रवाई से हम कम से कम एक या दो लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं. मुझे नहीं पता कि इस मामले में क्या प्रगति हुई. इस मामले को हमें तत्परता के साथ सुलझाना चाहिए.’ बता दें कि राजन सितंबर, 2016 तक तीन साल के लिए केंद्रीय बैंक के गवर्नर रहे थे. अभी वह शिकॉगो बूथ स्कूल आफ बिजनेस में पढ़ा रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि प्रणाली अकेले किसी एक बड़े धोखाधड़ी मामले को अंजाम तक पहुंचाने में प्रभावी नहीं है. उन्होंने कहा कि धोखाधड़ी सामान्य गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) से भिन्न होती है. उन्होंने कहा, ‘जांच एजेंसियां इस बात के लिए बैंकों को दोष देती हैं कि वे धोखाधड़ी होने के काफी समय बाद उसे धोखाधड़ी का दर्जा देते हैं. वहीं बैंकर्स इस मामले में धीमी रफ्तार से इसलिए चलते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि एक बार वे किसी लेनदेन को धोखाधड़ी करार देते हैं तो धोखेबाजों को पकड़ने की दिशा में कोई खास प्रगति हो न हो, उन्हें जांच एजेंसियां परेशान करेंगी.’ राजन का यह बयान नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी द्वारा जाली गारंटी पत्रों के जरिये पंजाब नेशनल बैंक को करीब 14,000 करोड़ रुपये का चूना लगाने का मामला सामने आने के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो जाता है.
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पंजाब नेशनल बैंक की मुंबई शाखा ने धोखाधड़ी के तरीके से नीरव मोदी समूह की कंपनियों को मार्च, 2011 से गारंटी पत्र या एलओयू जारी किए थे. नीरव मोदी और उससे जुड़े समूह तथा संबंधियों को कुल 1,213 एलओयू जारी किए गए थे वहीं मेहुल चोकसी तथा उसके संबंधियों और गीतांजलि समूह को 377 एलओयू जारी किए गए थे. यह पूछे जाने पर कि क्या नियामक इस बारे में बेहतर कर सकता था, राजन ने कहा कि स्वआकलन करना काफी मुश्किल है लेकिन रिजर्व बैंक को बैंकों के रिण कारोबार में उछाल के शुरुआती चरण में इस बारे में रिणों की गुणवत्ता के बोर में संभवत: और अधिक सवाल उठाने चाहिए थे.
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उन्होंने यह भी कहा अब पीछे से सोचने पर लगता है कि हमें ढ़ील के लिए राजी नहीं होना चाहिए था. लेकिन सवाल यह भी है कि सफाई के किसी हथियार के बिना बैंक करते भी क्या. उन्होंने कहा कि नए औजार के लिए पहल हमें पहले शुरू कर देनी चाहिए थी और दिवाला संहिता को जल्द पारित करने पर जोर देना चाहिए था. ऐसा हुआ होता तो हम ऋणों की गुणवत्ता की समीक्षा (एक्यूआर) का काम जल्दी शुरू कर सकते थे. उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक को अनुपालन नहीं करने वाले बैंकों पर जुर्माना लगाने के मामले में अधिक निर्णायक तरीके से काम करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि यह सौभाग्य है कि ढ़िलाई की यह संस्कृति हाल के वर्षों में बदलनी शुरू हो गयी है.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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