![राफेल सौदा : सिर्फ BJP ही नहीं, कांग्रेस भी रक्षा सौदों की जानकारी सार्वजनिक करने से कर चुकी है इनकार राफेल सौदा : सिर्फ BJP ही नहीं, कांग्रेस भी रक्षा सौदों की जानकारी सार्वजनिक करने से कर चुकी है इनकार](https://i.ndtvimg.com/i/2017-11/rafale_650x400_51511458289.jpg?downsize=773:435)
राफेल विमान (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मोदी सरकार 58000 करोड़ की राफेल लड़ाकू विमान सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रही है, जिस वजह से कांग्रेस सरकार पर हमलावर रुख अपनाई हुई है. कांग्रेस लगातार हमले से सरकार पर राफेल सौदे को सार्वजनिक करने का दवाब बना रही है और साथ ही यह भी आरोप लगा रही है कि इस सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है. मगर रक्षा मंत्रालय ने सौदे की गोपनीयता के फैसले का बचाव किया और कांग्रेस पर फैक्ट से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया.
सरकार का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2016 में खरीदे गये 36 राफेल विमान सौदे को लेकर लगातार हमला बोल रहे हैं. राहुल गांधी ने मंगलवार को पूछा था कि राफेल सौदे पर प्रधानमंत्री ने कितने रुपये खर्च किए. वहीं, आज राहुल ने दोबारा दवाब बनाने की कोशिश की और कहा कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ पीएम मोदी चुप हैं. इसका मतलब है कि इसमें जरूर कुछ घपला हुआ है.
राफेल सौदे पर कांग्रेस का मोदी सरकार पर निशाना, राहुल ने पीएम से पूछा- घपला हुआ है या नहीं?
मगर राहुल गांधी के हमले के बाद कुछ देर बाद ही सरकार ने पलटवार किया है. सरकार ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा कि उनके द्वारा लगाये जा रहे आरोप बेबुनियाद है. मगर वो इस तरह के बयान से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल रहे हैं. निर्मला सीतारमण ने इस बारे में राज्यसभा में जानकारी देते हुए कहा कि गोपनीयता की शर्तों के मुताबिक राफेल सौदे के मूल्य और ब्योरे को लेकर जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है.
रक्षा मंत्रालय ने न सिर्फ कांग्रेस पर हमला बोला है, बल्कि यह भी बताया है कि क्यों इस सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती. सरकार ने कहा कि एनडीए सरकार 2008 में भारत और फ्रांस के बीच साइन किये गये समझौते के तहत केवल गोपनीय प्रावधानों का पालन कर रही है, जिस पर यूपीए सरकार ने हस्ताक्षर किये थे. कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उसने भी इस समझौते का पालन किया था.
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि आइटम वाइज लागत और अन्य सूचनाएं बताने पर वे सूचनाएं भी आम हो जाएंगी, जिनके तहत इन विमानों का कस्टमाइजेशन और वेपन सिस्टम से लैस किया जाएगा. यह काम विशेष तौर पर मारक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. अगर इनका खुलासा हुआ तो सैन्य तैयारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसका असर पड़ सकता है. बता दें कि भारत ने फ्रांस से सितंबर 2016 में 36 राफेल विमान खरीदे थे. उम्मीद की जा रही है कि सितंबर 2019 से राफेल विमानों की डिलीवरी शुरू कर दी जाएगी.
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मगर राज्यसभा से प्राप्त दस्तावेंजों के आधार पर यह स्पष्ट है कि यह पहली बार नहीं है कि कोई सरकार इस तरह के सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं करना चाह रही है. यानी सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस की सरकार ने भी रक्षा सौदों की जानकारी सार्वजनिक करने से पहले कई बार इनकार कर चुकी है. दस्तावेज की मानें तो कांग्रेस सरकार में प्रणव मुखर्जी और एके एंटनी ने क्रमश: 2005 और 2008 में रक्षा सौदों से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था.
जब अगस्त 2005 में प्रणव मुखर्जी रक्षा मंत्री थे, तब उनकी ही पार्टी के सांसद जनार्दन पूजारी ने रक्षा खरीद से संबंधित जानकारी मांगी थी, तो राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर प्रणव मुखर्जी ने उनकी मांग को ठुकरा दिया था. तीन साल बाद जब 2008 में एके एंटनी रक्षा मंत्री थे, तब भी ऐसा ही मामला सामने आया था. दिसंबर 2008 में सीपीएम के दो सांसद प्रसंता चटर्जी और मोहम्मद आमीन ने बड़े रक्षा सौदों के सप्लायर्स देश और खरीद की जानकारी मांगी थी, मगर उस वक्त भी एके एंटनी ने सप्लायर्स देशों का नाम तो बता दिया था, मगर इससे अधिक जानकारी देने से मना कर दिया था.
VIDEO: राफेल डील पर राहुल गांधी ने पीएम मोदी से किया सवाल
एके एंटनी ने रक्षा सप्लायर्स देशों जैसे यूएसए, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इजराइल आदि देशों का नाम तो बता दिया था, मगर इससे अधिक जानकारी देने से साफ मना कर दिया था. बता दें कि 2007 में सीताराम येचुरी ने भी इजराइल से मिसाइल खरीद की जानकारी मांगी थी, तो उन्हें भी ठीक वैसा ही जवाब मिला था. तब के रक्षा मंत्री एके ऐंटनी ने कहा इस मामले के ब्योरे सदन में रखना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं है. यानी कि खरीद में लागत के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.
सरकार का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 2016 में खरीदे गये 36 राफेल विमान सौदे को लेकर लगातार हमला बोल रहे हैं. राहुल गांधी ने मंगलवार को पूछा था कि राफेल सौदे पर प्रधानमंत्री ने कितने रुपये खर्च किए. वहीं, आज राहुल ने दोबारा दवाब बनाने की कोशिश की और कहा कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ पीएम मोदी चुप हैं. इसका मतलब है कि इसमें जरूर कुछ घपला हुआ है.
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मगर राहुल गांधी के हमले के बाद कुछ देर बाद ही सरकार ने पलटवार किया है. सरकार ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा कि उनके द्वारा लगाये जा रहे आरोप बेबुनियाद है. मगर वो इस तरह के बयान से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाल रहे हैं. निर्मला सीतारमण ने इस बारे में राज्यसभा में जानकारी देते हुए कहा कि गोपनीयता की शर्तों के मुताबिक राफेल सौदे के मूल्य और ब्योरे को लेकर जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है.
रक्षा मंत्रालय ने न सिर्फ कांग्रेस पर हमला बोला है, बल्कि यह भी बताया है कि क्यों इस सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती. सरकार ने कहा कि एनडीए सरकार 2008 में भारत और फ्रांस के बीच साइन किये गये समझौते के तहत केवल गोपनीय प्रावधानों का पालन कर रही है, जिस पर यूपीए सरकार ने हस्ताक्षर किये थे. कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब उसने भी इस समझौते का पालन किया था.
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि आइटम वाइज लागत और अन्य सूचनाएं बताने पर वे सूचनाएं भी आम हो जाएंगी, जिनके तहत इन विमानों का कस्टमाइजेशन और वेपन सिस्टम से लैस किया जाएगा. यह काम विशेष तौर पर मारक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. अगर इनका खुलासा हुआ तो सैन्य तैयारियों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसका असर पड़ सकता है. बता दें कि भारत ने फ्रांस से सितंबर 2016 में 36 राफेल विमान खरीदे थे. उम्मीद की जा रही है कि सितंबर 2019 से राफेल विमानों की डिलीवरी शुरू कर दी जाएगी.
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मगर राज्यसभा से प्राप्त दस्तावेंजों के आधार पर यह स्पष्ट है कि यह पहली बार नहीं है कि कोई सरकार इस तरह के सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं करना चाह रही है. यानी सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस की सरकार ने भी रक्षा सौदों की जानकारी सार्वजनिक करने से पहले कई बार इनकार कर चुकी है. दस्तावेज की मानें तो कांग्रेस सरकार में प्रणव मुखर्जी और एके एंटनी ने क्रमश: 2005 और 2008 में रक्षा सौदों से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था.
जब अगस्त 2005 में प्रणव मुखर्जी रक्षा मंत्री थे, तब उनकी ही पार्टी के सांसद जनार्दन पूजारी ने रक्षा खरीद से संबंधित जानकारी मांगी थी, तो राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर प्रणव मुखर्जी ने उनकी मांग को ठुकरा दिया था. तीन साल बाद जब 2008 में एके एंटनी रक्षा मंत्री थे, तब भी ऐसा ही मामला सामने आया था. दिसंबर 2008 में सीपीएम के दो सांसद प्रसंता चटर्जी और मोहम्मद आमीन ने बड़े रक्षा सौदों के सप्लायर्स देश और खरीद की जानकारी मांगी थी, मगर उस वक्त भी एके एंटनी ने सप्लायर्स देशों का नाम तो बता दिया था, मगर इससे अधिक जानकारी देने से मना कर दिया था.
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एके एंटनी ने रक्षा सप्लायर्स देशों जैसे यूएसए, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इजराइल आदि देशों का नाम तो बता दिया था, मगर इससे अधिक जानकारी देने से साफ मना कर दिया था. बता दें कि 2007 में सीताराम येचुरी ने भी इजराइल से मिसाइल खरीद की जानकारी मांगी थी, तो उन्हें भी ठीक वैसा ही जवाब मिला था. तब के रक्षा मंत्री एके ऐंटनी ने कहा इस मामले के ब्योरे सदन में रखना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं है. यानी कि खरीद में लागत के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.
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