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This Article is From Jul 23, 2016

मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क नहीं रहे, साहित्य जगत में शोक की लहर

मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क नहीं रहे, साहित्य जगत में शोक की लहर
नीलाभ अश्क की फाइल तस्वीर
नई दिल्ली: मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क का शनिवार को संक्षिप्त बीमारी के बाद नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 70 वर्ष के थे। 16 अगस्त, 1945 को मुंबई में जन्मे नीलाभ ने इलाहाबाद में शिक्षा हासिल करने के बाद साहित्य का एक लंबा रास्ता तय किया।

उनकी मशहूर काव्य कृतियों में 'अपने आप से लंबी बातचीत', 'जंगल खामोश है', 'उत्तराधिकार', 'चीजें उपस्थित हैं', 'शब्दों से नाता अटूट है', 'खतरा अगले मोड़ के उस तरफ है', 'शोक का सुख' और 'ईश्वर को मोक्ष' शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने 'हिन्दी साहित्य का मौखिक इतिहास' नामक एक चर्चित पुस्तक लिखी। उन्होंने अरुंधति राय की बुकर पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक 'द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स' का अनुवाद 'मामूली चीजों का देवता' शीर्षक से किया था। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने उनके निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा, 'नीलाभ हिन्दी के क्रांतिकारी कवि थे। उनसे साहित्य को बहुत उम्मीदें थीं। उनके निधन का मुझे बहुत दुख है।'

मशहूर साहित्यकार मंगलेश डबराल ने उन्हें बहुत प्रतिभाशाली साहित्यकर्मी बताते हुए कहा कि आज के समय में विरले ही चार भाषाओं -  हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और पंजाबी के जानकार मिलते हैं और नीलाभ उनमें से एक थे।

नीलाभ 1980 में बीबीसी की विदेश प्रसारण सेवा की हिन्दी सर्विस में बतौर प्रोड्यूसर लंदन चले गए और वहां चार वर्ष तक काम किया। इसके अलावा उन्होंने शेक्सपीयर, ब्रेख्त और लोर्का के कई नाटकों का काव्यात्मक अनुवाद किया। नीलाभ ने लेर्मोन्तोव के उपन्यास 'हमारे युग का एक नायक' का भी अुनवाद किया। उन्होंने शेक्सपीयर के चर्चित नाटक 'किंग लियर' का अनुवाद 'पगला राजा' शीर्षक से किया था।

हिन्दी के मशहूर लेखक उपेन्द्रनाथ अश्क के पुत्र नीलाभ ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका 'नटरंग' का संपादन भी किया। इस समय वह अपने संस्मरणों पर आधारित ब्लॉग 'नीलाभ का मोर्चा' लिख रहे थे।

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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