
किसी भी देश की तरक्की उसके शिक्षण संस्थानों में शिक्षा और शोध की गुणवत्ता पर काफ़ी निर्भर करती है. इस लिहाज़ से देश के उच्च शिक्षण संस्थानों का हाल क्या है, उनमें प्रवेश के लिए परीक्षाएं कैसे ली जा रही हैं, उनमें फैकल्टी यानी शिक्षकों की स्थिति क्या है. क्या छात्रों के लिए शिक्षक पर्याप्त संख्या में हैं. छात्रों को क्या उनकी योग्यता के हिसाब से नौकरी और अन्य मौके मिल रहे हैं, ये वो बड़े सवाल हैं जिन पर लगातार चर्चा होनी चाहिए. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में आज इसी सबपर ख़ास बात करेंगे. सबसे पहले देश में परीक्षा लेने से जुड़ी सबसे बड़ी संस्था NTA यानी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी पर बात जिस पर हर परीक्षा के साथ कोई न कोई सवाल खड़ा हो जाता है. पिछले साल मेडिकल की अंडर ग्रेजुएट प्रवेश परीक्षा NEET परीक्षा को लेकर हुए विवाद को कोई भूला नहीं है. अब इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा Joint Entrance Exam यानी जेईई (मेन्स) को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं.

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जेईई (मेन्स) परीक्षा देश के इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए सबसे बड़ा और सबसे ख़ास इम्तिहान है जिसका नतीजा आने को है. लेकिन उससे पहले ही जेईई मेन्स के अप्रैल में हुई दूसरे सत्र की परीक्षा के सवालों को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. आपको बता दें कि जेईई मेन्स के आधार पर देश के एनआईटी, ट्रिपल आईटी समेत कई प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला होता है. जेईई मेंस के ही ज़रिए जेईई एडवांस्ड के लिए भी छात्रों का चयन होता है जो आईआईटी में प्रवेश की परीक्षा है. जेईई परीक्षा के लिए छात्र सालों कड़ी मेहनत करते हैं. लिहाज़ा जेईई मेन्स की परीक्षाओं पर उठने वाला सवाल बहुत गंभीर हो जाता है.
नौ सवालों में ग़लतियों का आरोप
NTA ने जब से जेईई मेन्स के अप्रैल सत्र की परीक्षा की अंतरिम आन्सर की जारी की है, तब से परीक्षा में पूछे गए कम से कम नौ सवालों में ग़लतियों का आरोप लग रहा है. कई वेबसाइट्स में ये ख़बर सुर्ख़ियों में है कि NTA ने एक बार फिर सवालों को तय करने में ढिलाई बरती है. फ़िज़िक्स के चार प्रश्नों में ग़लती का आरोप है, कैमिस्ट्री के तीन सवालों और मैथ्स के दो प्रश्नों में ग़लती के आरोप हैं. जेईई की परीक्षा देने वाले छात्रों ने आंसर की के आधार पर ये सवाल उठाए हैं. NTA द्वारा पूछे गए सवालों में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, लगभग हर बार होता रहा है. इसी साल जेईई मेन्स परीक्षा के जनवरी सत्र की फाइनल आंसर की जारी होने के बाद 12 सवालों को ड्रॉप कर दिया गया था क्योंकि उनमें गड़बड़ी पाई गई थी. इन बारह में से आठ प्रश्न फ़िज़िक्स के थे जो ग़लत पूछे गए थे, कैमिस्ट्री और मैथ्स के दो-दो सवाल भी इसी वजह से ड्रॉप किए गए थे. बीते सालों में भी जेईई मेन्स में कई सवाल ग़लत पूछे जाते रहे हैं. सवाल ये है कि देश में परीक्षा लेने वाली सबसे बड़ी केंद्रीय संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी इस गड़बड़ी का हल क्यों नहीं निकाल पा रही है.

किसी सवाल में गड़बड़ी होने पर NTA कैसे देता है अंक
सवाल ये है कि अगर किसी सवाल में गड़बड़ी हो तो ऐसे में NTA उन सवालों पर कैसे अंक देता है. NTA ने इसके लिए एक प्रक्रिया तय की हुई है. जेईई मेन्स में Multiple-choice questions (MCQs) होते हैं यानी बहु वैकल्पिक प्रश्न. कंप्यूटर आधारित परीक्षा में छात्रों को कुल 75 सवाल दिए जाते हैं. फ़िज़िक्स, कैमिस्ट्री और मैथ्स तीनों के 25-25 सवाल. कुल 300 अंक का पेपर होता है. सवाल के सही जवाब पर चार अंक मिलते हैं और ग़लत जवाब पर एक अंक कट जाता है यानी नेगेटिव मार्किंग होती है.

अगर प्रश्न का कोई भी विकल्प सही न हो और सवाल ग़लत हो या सवाल ड्रॉप कर दिया जाए तो सभी छात्रों को पूरे चार अंक दिए जाते हैं चाहे छात्र ने उस सवाल का जवाब दिया हो या न दिया हो. अगर किसी सवाल के सभी विकल्प सही होते हैं तो जिस भी छात्र ने कोई भी जवाब दिया है उसे पूरे चार अंक दिए जाते हैं.

ख़ास बात ये है कि जेईई मेन्स के आधार पर ही जेईई एनडवांस्ड की कटऑफ़ तैयार होती है. जेईई एडवांस्ड परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर आईआईटी में दाखिला दिया जाता है. जेईई एडवांस्ड दुनिया के सबसे मुश्किल इम्तिहानों में से एक माना जाता है.
लेकिन जेईई एडवांस्ड की परीक्षा NTA के हाथ में नहीं होती. इसे एक ज्वॉइंट एडमिशन बोर्ड कराता है जिसमें देश के सात बड़े और पुराने आईआईटी शामिल हैं. जेईई एडवांस्ड के प्रश्न पत्र पर ऐसे सवाल नहीं उठते लेकिन जेईई मेन्स पर हर साल ये सवाल उठते हैं.
इस बार फिर एक ही दिन NEET की अंडर ग्रेजुएट प्रवेश परीक्षा हो रही है. परीक्षा 4 मई को है और पेन-पेपर मोड से ही होगी. उम्मीद है इस बार मेडिकल की प्रवेश परीक्षा NEET के इम्तिहान में कोई गड़बड़ी नहीं होगी, पेपर लीक नहीं होगा जिस वजह से पिछले साल NTA की प्रतिष्ठा पर ही गंभीर सवाल खड़े हो गए थे.
प्लेसमेंट में आई गिरावट

जेईई के आधार पर देश के आईआईटी, एनआईटी और ट्रिपल आईटी जैसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्रों को प्रवेश मिलता है. इन संस्थानों में पढ़ना छात्रों का सपना होता है जिसके लिए वो कड़ी मेहनत करते हैं. अभी तक का ट्रैक रिकॉर्ड कहता है कि इन संस्थानों में अच्छे से पढ़ाई करने वाले छात्रों को अच्छी नौकरियां मिलती हैं, अच्छी कंपनियों में प्लेसमेंट होता है. लेकिन पिछले एक दो साल से चिंता की बात ये है कि इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को नौकरियों के मौके कम हो गए हैं. शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल मामलों से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने 26 मार्च को राज्यसभा में जो रिपोर्ट पेश की है उसमें इस मुद्दे पर चिंता जताई गई है. सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में बने इस संसदीय पैनल ने आईआईटी, एनआईटी और ट्रिपल आईटी में इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के प्लेसमेंट में आई गिरावट का मुद्दा उठाया है.
- डेटा के मुताबिक 2021-22 से लेकर 2023-24 तक के बीच देश के 23 में से 22 आईआईटी के प्लेसमेंट्स में गिरावट आई है.
- सभी आईआईटी में सिर्फ़ आईआईटी-बीएचयू ही अपवाद है.
- 15 आईआईटी के प्लेसमेंट्स में 10% से अधिक की गिरावट आई है.
- आईआईटी धारवाड़ के प्लेसमेंट्स में 25% की गिरावट आई है.
- आईआईटी खड़गपुर के प्लेसमेंट्स में सबसे कम 2.88% की गिरावट आई है.
पहली जनरेशन के आईआईटी जिन्हें पुराने आईआईटी कहा जाता है, वहां प्लेसमेंट में गिरावट ज़्यादा आई है. 2021-22 से 2023-24 के बीच आईआईटी मद्रास के प्लेसमेंट में 12.42% की गिरावट आई है. आईआईटी कानपुर के प्लेसमेंट में 11.15% की गिरावट आई है. अगर सेकंड जनरेशन आईआईटी को देखें तो वहां भी प्लेसमेंट में गिरावट का यही ट्रेंड दिखता है. यहां कई आईआईटी हैं जहां 2021-22 के मुक़ाबले 2023-24 में प्लेसमेंट में 10% से अधिक की गिरावट आई है. पुराने आईआईटी से होड़ करते आईआईटी हैदराबाद में 17.19% की गिरावट देखी गई. आईआईटी मंडी के प्लेसमेंट्स में 14.1% की गिरावट आई. आईआईटी रोपड़ में 13.15% की गिरावट आई, आईआईटी इंदौर के प्लेसमेंट्स में 11.03% की गिरावट देखी गई. तीसरी जनरेशन के आईआईटी माने जाने वाले आईआईटी जम्मू में 21.83%की गिरावट रही,आईआईटी तिरुपति और आईआईटी पलक्कड़ में भी प्लेसमेंट में गिरावट आई.

संसदीय पैनल की इसी रिपोर्ट में देश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई से जुड़े National Institute of Technology यानी NITs के प्लेसमेंट्स में भी ऐसी ही गिरावट का ज़िक्र है. 2022–23 के मुक़ाबले 2023–24 में 31 NITs में से 27 NITs के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के सैलरी पैकेज में गिरावट आई है. 31 NIT में 2022-23 में 18,957 छात्र-छात्राओं का प्लेसमेंट हुआ था जो 2023-24 में घटकर 16,915 रह गया. 10.77% यानी दो हज़ार से भी ज़्यादा की गिरावट. मौजूदा साल 204-25 के प्लेसमेंट अभी चल ही रहे हैं.
Information Technology के क्षेत्र में इंजीनियरिंग के विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए देश में IIITs की स्थापना की गई है. IIIT यानी Indian Institute of Information Technology. लेकिन यहां भी प्लेसमेंट में गिरावट का ही चलन है. 25 IIIT में से पांच केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाले फंड पर चलती हैं और बाकी 20 पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड पर स्थापित की गई हैं.

आंकड़ों के मुताबिक 25 में से 23 IIIT जिनमें पांच पुराने IIIT शामिल हैं उनमें 2021-22 से 2023-24 के बीच प्लेसमेंट में गिरावट आई है. इनमें से 16 IIIT में 10% से ज़्यादा की गिरावट आई है. 23 IIIT में सबसे ज़्यादा गिरावट IIIT अगरतला में आई है जहां प्लेसमेंट में 63.16 की भारी गिरावट दर्ज की गई. सबसे कम 2.76 की गिरावट IIIT कोट्टायम में दर्ज की गई. सिर्फ़ IIIT श्री सिटी चित्तूर के प्लेसमेंट में बढ़ोतरी हुई जबकि IIIT रायचूर के 2021-22 के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे.

2021-22 में 24 IIIT में प्लेसमेंट के लिए बैठे कुल 2,924 छात्रों में से 88.78% को नौकरियां मिलीं. जबकि 2023-24 में 25 IIIT में प्लेसमेंट के लिए बैठे कुल 4,045 छात्रों में से 71.32% को ही नौकरियां मिल पाईं. प्लेसमेंट में इस गिरावट पर जानकारों का कहना है कि कैंपस रिक्रूटमेंट में बुनियादी बदलाव हो रहे हैं और कंपनियां अब छात्रों के कौशल पर ज़्यादा ध्यान दे रही हैं. इसके अलावा इंटर्नशिप के दौरान छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें नौकरियां दी जा रही हैं. इसके अलावा Artificial Intelligence (AI) जैसी नई प्रौद्योगिकी के तेज़ी से इस्तेमाल ने भी इंजीनियरिंग संस्थानों के प्लेसमेंट्स पर असर डाला है. ऐसे में छात्रों को नए बदलावों के मद्देनज़र तैयार किए जाने की ज़रूरत है.
उच्च शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी ज़रूरत से काफ़ी कम
शिक्षण संस्थानों में प्लेसमेंट का बेहतर होना कई बातों पर निर्भर करता है. इनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है फैकल्टी यानी वो शिक्षक जो इन छात्रों को पढ़ाते हैं, उन्हें बेहतर बनाते हैं, नई चुनौतियों के लिए तैयार करते हैं. लेकिन चिंता की बात ये है कि हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी ज़रूरत से काफ़ी कम है. संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कई आंकड़ों के आधार पर इस मुद्दे पर भी ध्यान दिलाया है.

संसदीय पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक 31 जनवरी, 2025 तक IIT, IIM, NIT, IISER और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे शिक्षण संस्थानों में शिक्षण से जुड़े कुल 18,940 स्वीकृत पदों में से 28.56% पद 31 जनवरी 2025 तक खाली पड़े थे. यानी शिक्षकों के स्वीकृत पदों में से हर चार में से एक से ज़्यादा पद खाली पड़ा है. ये बहुत की चिंता की बात है. देश में वैसे ही छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत ही कम है. ऐसे में इन उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के इतने पद खाली होना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ से कम नहीं.
संसदीय पैनल ने इस मुद्दे की और गहराई से पड़ताल की है. पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक IIT, IIM, NIT, IISER और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसर स्तर के 2,540 स्वीकृत पदों में से 56.18% पद खाली पड़े हैं. यानी प्रोफ़ेसर स्तर के आधे से ज़्यादा पद खाली हैं. उच्च शिक्षा में प्रोफ़ेसर का पद सबसे वरिष्ठ पद है जो किसी भी संस्थान की गुणवत्ता की दशा-दिशा तय करता है. मध्य स्तर पर आने वाले एसोसिएट प्रोफ़ेसर के 5,102 पदों में से 38.28% पद खाली पड़े हैं. यानी 10 में से 4 पद खाली पड़े हैं. उच्च शिक्षण संस्थानों में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की बात करें तो उनके 11,298 स्वीकृत पदों में से 17.97% पद खाली पड़े हैं.
देश के इन उच्च शिक्षण संस्थानों जिनमें कई तकनीकी संस्थान हैं, वहां शिक्षकों का इतना कम होना छात्र-शिक्षक अनुपात को प्रभावित करता है जिसका सीधा मतलब है पढ़ाई की गुणवत्ता यानी क्वॉलिटी में गिरावट आना. संसदीय पैनल ने शिक्षा मंत्रालय को दी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन उच्च शिक्षण संस्थानों के बेहतर काम करने के लिए ज़रूरी है कि वहां ठोस और कार्यकुशल शिक्षकों को होनी चाहिए. संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि सभी भर्ती प्रक्रियाएं पूरी तरह पारदर्शी, योग्यता आधारित, निष्पक्ष होनी चाहिए जिसमें कोई भेदभाव न हो और सबको बराबर मौका मिले.
संसदीय पैनल की इस रिपोर्ट में एक और ख़ास पहलू पर ध्यान दिलाया गया है. पैनल ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित पदों के बड़े पैमाने पर खाली होने पर भी सवाल उठाए हैं. जैसे ओबीसी के लिए 3,652 पदों में से 1,521 खाली पड़े हैं. इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 2,315 पदों में से 788 पद खाली पड़े हैं. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 1,154 पदों में से 472 पद खाली पड़े हैं.
पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नॉन टीचिंग स्टाफ़ के लिए आरक्षित पदों में भी काफ़ी पद खाली पाए गए. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी के लिए आरक्षित 4,495 नॉन टीचिंग स्टाफ़ के पदों में से 1,983 पद खाली पड़े हैं. इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नॉन टीचिंग स्टाफ़ के 2013 पदों में से 1,011 पद खाली पड़े हैं. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 3,409 पदों में से 1,491 पद खाली पड़े हैं. कमेटी ने इस बात पर भी चिंता जताई कि इन पदों को कॉन्ट्रैक्ट केे आधार पर या शॉर्ट टर्म अपॉइंटमेंट के तौर पर भरा जा रहा है. इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि सरकारी नौकरियों में0- SC, ST, OBC, EWS, PwD और हाशिए पर पड़े अन्य लोगों के लिए किए गए संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन न किया जाए.
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