सीएम हरीश रावत... (फाइल फोटो)
नैनीताल / नई दिल्ली:
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य विधानसभा में कल होने वाले हरीश रावत सरकार के शक्ति परीक्षण पर पर स्टे लगा दिया है। मामले की अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होगी।
इससे पहले, केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में कहा कि राज्य में बहुमत परीक्षण पर सिंगल बेंच का फैसला 3 दिन के लिए टाला जाए। एजी ने कहा कि अगले हफ्ते इस मामले में सुनवाई हो।
दरअसल, कोर्ट की सिंगल बेंच ने 31 मार्च को बहुमत साबित करने का फैसला दिया था, जिसके विरोध में केंद्र ने याचिका दायर की थी। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने यह दलील भी दी कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा निलंबित है तो बहुमत परीक्षण का आदेश कैसे लागू किया जा सकता है। वहीं कांग्रेस 9 बाग़ियों को वोट का हक़ देने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रख रही है।
गौरतलब है कि हाई कोर्ट में सिंगल बेंच और डबल बेंच दोनों होती हैं। सिविल मामलों में सिंगल बेंच के किसी आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी जा सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में, लेकिन क्रिमिनल मामलों में सिंगल बेंच की अपील सीधे सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 31 मार्च को होने वाला बहुमत परीक्षण कोर्ट के रजिस्ट्रार की देखरेख में होगा। वहीं बताया जा रहा है कि बागियों में से कुछ विधायक फिर से कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं।
सूत्रों की मानें तो आने वाले चुनावों में टिकट ना काटे जाने की शर्त पर कुछ विधायक कांग्रेस के साथ आने को तैयार हैं। बागियों को मनाने की जिम्मेदारी राज्य की वित्त मंत्री इंदिरा ह्रदयेश को दी गई है।
क्या है राष्ट्रपति शासन की धारा 356
- केन्द्र को किसी भी राज्य सरकार को भंग करने का अधिकार।
- बशर्ते राज्य में संवैधानिक तंत्र नाकाम हो गया हो।
- किसी दल को साफ बहुमत नहीं होने पर भी राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
- राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति संभालते हैं राज्य की सत्ता।
धारा 356 पर अहम फैसला
(एसआर बोम्मई बनाम केन्द्र सरकार)
- 1989 में कर्नाटक की एसआर बोम्मई सरकार बर्खास्त।
- गवर्नर ने सदन में बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया।
- बोम्मई ने केन्द्र के फैसले को चुनौती दी।
- मार्च 1994 में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, सरकार के बहुमत का फैसला सदन के भीतर ही होगा।
- 1994 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया
- अगर किसी राज्य में आर्टिकल 356 का दुरुपयोग कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया है तो कोर्ट पुरानी सरकार को बहाल कर सकती है।
- इसका पता लगाने का सबसे बेहतर तरीका है कि फ्लोर टेस्ट कर पता लगाया जाए कि पुरानी सरकार बहुमत में है या नहीं।
- राष्ट्रपति शासन तभी लगाया जाए जब राज्य मे संविधानिक मशीनरी फेल हो जाए ना कि प्रशासनिक मशीनरी
- कोर्ट राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का ज्यूडिशियल रिव्यू कर सकता है और केंद्र से सवाव जवाब कर सकता है
- केंद्र सरकार को कोर्ट के मांगने पर तमाम दस्तावेज और दलीलें पेश करनी होंगी
सवाल हैं कई
इससे पहले, केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में कहा कि राज्य में बहुमत परीक्षण पर सिंगल बेंच का फैसला 3 दिन के लिए टाला जाए। एजी ने कहा कि अगले हफ्ते इस मामले में सुनवाई हो।
दरअसल, कोर्ट की सिंगल बेंच ने 31 मार्च को बहुमत साबित करने का फैसला दिया था, जिसके विरोध में केंद्र ने याचिका दायर की थी। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने यह दलील भी दी कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा निलंबित है तो बहुमत परीक्षण का आदेश कैसे लागू किया जा सकता है। वहीं कांग्रेस 9 बाग़ियों को वोट का हक़ देने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रख रही है।
गौरतलब है कि हाई कोर्ट में सिंगल बेंच और डबल बेंच दोनों होती हैं। सिविल मामलों में सिंगल बेंच के किसी आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी जा सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में, लेकिन क्रिमिनल मामलों में सिंगल बेंच की अपील सीधे सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 31 मार्च को होने वाला बहुमत परीक्षण कोर्ट के रजिस्ट्रार की देखरेख में होगा। वहीं बताया जा रहा है कि बागियों में से कुछ विधायक फिर से कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं।
सूत्रों की मानें तो आने वाले चुनावों में टिकट ना काटे जाने की शर्त पर कुछ विधायक कांग्रेस के साथ आने को तैयार हैं। बागियों को मनाने की जिम्मेदारी राज्य की वित्त मंत्री इंदिरा ह्रदयेश को दी गई है।
क्या है राष्ट्रपति शासन की धारा 356
- केन्द्र को किसी भी राज्य सरकार को भंग करने का अधिकार।
- बशर्ते राज्य में संवैधानिक तंत्र नाकाम हो गया हो।
- किसी दल को साफ बहुमत नहीं होने पर भी राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
- राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति संभालते हैं राज्य की सत्ता।
धारा 356 पर अहम फैसला
(एसआर बोम्मई बनाम केन्द्र सरकार)
- 1989 में कर्नाटक की एसआर बोम्मई सरकार बर्खास्त।
- गवर्नर ने सदन में बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया।
- बोम्मई ने केन्द्र के फैसले को चुनौती दी।
- मार्च 1994 में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, सरकार के बहुमत का फैसला सदन के भीतर ही होगा।
- 1994 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया
- अगर किसी राज्य में आर्टिकल 356 का दुरुपयोग कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया है तो कोर्ट पुरानी सरकार को बहाल कर सकती है।
- इसका पता लगाने का सबसे बेहतर तरीका है कि फ्लोर टेस्ट कर पता लगाया जाए कि पुरानी सरकार बहुमत में है या नहीं।
- राष्ट्रपति शासन तभी लगाया जाए जब राज्य मे संविधानिक मशीनरी फेल हो जाए ना कि प्रशासनिक मशीनरी
- कोर्ट राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का ज्यूडिशियल रिव्यू कर सकता है और केंद्र से सवाव जवाब कर सकता है
- केंद्र सरकार को कोर्ट के मांगने पर तमाम दस्तावेज और दलीलें पेश करनी होंगी
सवाल हैं कई
- हालांकि कोर्ट को फैसले के बाद अब भी कई सवाल सामने आ रहे हैं
- जिन 9 विधायकों की मान्यता रद्द की गई है, उनके वोटों का क्या होगा?
- क्या उन पर पार्टी व्हिप लागू होगा?
- अगर होगा तो उनको कांग्रेस के हक में वोट देना होगा।
- हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने फ्लोर टेस्ट के आदेश तो दिए, लेकिन राष्ट्रपति शासन को छुआ तक नहीं
- यानी आदेश के मुताबिक, राष्ट्रपति शासन भी बरकरार है
- फ्लोर टेस्ट के आदेश से प्रदेश में हालात ऐसे हो गए हैं कि राष्ट्रपति शासन भी मौजूद है और एक तरीके से राज्य सरकार भी
- अगर राष्ट्रपति शासन को स्टे किया जाता तो ये हालात नहीं होते
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