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This Article is From Jul 06, 2023

NCP की जंग: ऐसे मामलों में चुनाव आयोग कैसे करता है फैसला? पूर्व CEC एसवाई कुरैशी ने बताया

पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने एनसीपी में टूट पर कहा कि ये को प्रॉपर्टी का झगड़ा नहीं है, जो दोनों भाइयों के बीच बंटवारा करने से खत्म हो जाएगा. ऐसे मामलों में चुनाव आयोग को तय करना होता है कि कौन सा गुट असल में पार्टी है. इसमें वक्त लगता है. ये झगड़ा फिलहाल चलता रहेगा.

एसवाई कुरैशी ने कहा कि एनसीपी को लेकर शरद पवार और अजित पवार गुट के बीच ये झगड़ा तो अब चलता रहेगा.

नई दिल्ली:

अपने चाचा शरद पवार (Sharad Pawar) से बगावत कर अजित पवार के शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी की गठबंधन सरकार में शामिल होने के बाद एनसीपी (NCP Crisis) पर कब्जे की लड़ाई शुरू हो गई है. शरद पवार गुट और अजित पवार (Ajit Pawar Faction) गुट दोनों ने ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) पर दावा किया है. दोनों गुटों ने इस बारे में चुनाव आयोग को भी चिट्ठी लिख दी है. बुधवार को अजित पवार ने खुद को एनसीपी अध्यक्ष बताया था. आज शरद पवार ने एनसीपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई और खुद को एनसीपी का अध्यक्ष बताया. अजित पवार ने इस मीटिंग को गैरकानूनी बताते हुए कहा कि इस बैठक में जो भी फैसला लिया जाएगा वो अमान्य होगा. इस पूरे मामले को लेकर NDTV ने भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी से खास बातचीत की है. उन्होंने बताया कि अब चुनाव आयोग क्या करेगा.

एसवाई कुरैशी ने कहा, "एनसीपी को लेकर शरद पवार और अजित पवार गुट के बीच ये झगड़ा तो अब चलता रहेगा. विधानसभा स्पीकर फैसला तो लेंगे. लेकिन ऐसा तभी होता है, जब सेशन चल रहा हो. यानी महाराष्ट्र में विधानसभा सत्र चलने की स्थिति में ही स्पीकर फैसला ले सकता है. लेकिन फिलहाल मामला चुनाव आयोग के पास आया है. चुनाव आयोग फैसला लेने से पहले देखती है कि कौन से गुट में बहुमत है. चुनाव आयोग को ये अधिकार द इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1968 के पैराग्राफ 15 से मिलता है."

बहुमत के सिद्धांत के आधार पर होगा फैसला
कुरैशी बताते हैं, "ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में माना है कि पार्टी में टूट की स्थिति में पार्टी का नाम और निशान किसे मिलेगा, ये 'द इलेक्शन सिंबल्स ऑर्डर' के बहुमत के सिद्धांत के आधार पर तय होना चाहिए. इस सिद्धांत के आधार पर एनसीपी में टूट का मामला चुनाव आयोग के पास गया है."

ऐसे मामलों में चुनाव आयोग की पोजिशन अच्छी
पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा, "महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना में टूट और शिंदे गुट-उद्धव ठाकरे गुट का मामला भी इसी बहुमत सिद्धांत के आधार पर चुनाव आयोग के पास गया था. इस मामले में चुनाव आयोग की पोजिशन अच्छी है. ऐसे मामलों में चुनाव आयोग पहले खुद से कुछ नहीं करती. अगर पार्टी में टूट के बाद एक गुट चुनाव आयोग पहुंचता है और बहुमत साबित करने के लिए जरूरी नंबर और दस्तावेज दिखाता है, तभी आयोग दूसरे गुट को नोटिस भेजती है कि ऐसा मामला आया है और आप इसपर क्या कहेंगे."

पार्टी में वर्टिकल बंटवारे की होगी जांच
कुरैशी बताते हैं, "चुनाव आयोग में मामला पहुंचने पर वह पार्टी में वर्टिकल बंटवारे की जांच करता है. इसके लिए सबूत मांगे जाते हैं, किस गुट के पास कितने नंबर हैं, इसकी भी जांच-परख की जाती है. विधायिका और संगठन दोनों के नंबर देखे जाते हैं." उन्होंने बताया, "इसके अलावा चुनाव आयोग बंटवारे से पहले पार्टी की टॉप कमेटियों की लिस्ट निकालता है. इससे ये जानने की कोशिश करता है कि इसमें से कितने मेंबर्स या पदाधिकारी किस गुट में हैं. गुट में सांसदों और विधायकों के नंबर भी देखे जाते हैं."

ऐसे मिलेगा पार्टी का नाम और निशान
चुनाव आयोग पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर फैसला कैसे करेगा? इस सवाल के जवाब में कुरैशी बताते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में कहा है कि ये को प्रॉपर्टी का झगड़ा नहीं है, जो दोनों भाइयों के बीच बंटवारा करने से खत्म हो जाएगा. ऐसे मामलों  में चुनाव आयोग को तय करना होता है कि कौन सा गुट असल में पार्टी है. ज्यादातर मामलों में आयोग ने पार्टी के पदाधिकारियों और चुने हुए प्रतिनिधियों के समर्थन के आधार पर सिंबल देने का फैसला दिया है. लेकिन इसमें वक्त लगता है. तकरीबन 3 से 5 महीने तो लगते ही हैं. क्यों दोनों गुट अपने-अपने समर्थक विधायकों और सांसदों की लिस्ट देगी. इसमें सबके साइन होंगे, कई बार साइन एक से ज्यादा बार हो जाते हैं. इसलिए इसकी भी जांच की जाएगी." 

कुरैशी कहते हैं, "अगर किसी वजह से कोई भी गुट संगठन के अंदर समर्थन को सही तरीके से जस्टिफाई नहीं कर पाता, तो चुनाव आयोग पूरी तरह से पार्टी के सांसदों और विधायकों के बहुमत के आधार पर फैसला करता है."

स्टडी में आयोग को लगता है समय
उन्होंने कहा, "ऐसे मामलों में दस्तावेज और हालात की स्टडी करने में समय लग सकता है. चुनाव आयोग से फैसले की कोई समय-सीमा नहीं है. चुनाव होने की स्थिति में आयोग पार्टी के सिंबल को फ्रीज कर सकता है. ऐसे में दोनों गुटों को अलग-अलग नामों और अस्थायी सिंबल पर चुनाव लड़ने की सलाह दे सकता है."

कुरैशी कहते हैं कि अगर कोई गुट दो-तिहाई बहुमत दिखा देता है, तो आयोग उसे अलग पार्टी घोषित कर देती है. अगर दोनों गुटों में सुलह हो जाती है, तो वे फिर से चुनाव आयोग से संपर्क कर सकते हैं. साथ ही एक पार्टी के रूप में पहचान की मांग कर सकते हैं.

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